टिहरी जिले का एक पुल बहुत बार चुनावों में नेताओं की नैया पार लगा चुका है. टिहरी के प्रतापनगर से देहरादून विधानसभा जाने का रास्ता साबित हुआ है. प्रतापनगर की लाइफ लाइन कहे जाने वाले डोबरा चांठी पुल की जो करीब 145 करोड़ खर्च होने के बावजूद 10 वर्षों से अधर में लटका हुआ है.
टिहरी झील बनने के बाद से जिला मुख्यालय नई टिहरी की प्रतापनगर से दूरी कम करने के लिए मई 2006 में डोबरा और चांठी को जोड़कर एक पुल बनाने का फैसला लिया गया. तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी की सरकार में पुल को स्वीकृति मिली और सर्वे का काम शुरू हुआ.
2007 में भाजपा के सत्ता में आते ही पुल के डिजाइन में फॉल्ट निकला और काम रोक दिया गया. लेकिन तब से अब तक पुल के डिजाइन की रिस्टडी सहित सर्वे और टॉवरों के खड़े करने में करीब 145 करोड़ पये से अधिक खर्च हो गए.
पुल निर्माण हो या ना हो करोड़ों के वारे न्यारे हो गए और चुनावों में नेताओं के मैनिफेस्टों में डोबरा चांठी पुल अमर हो गया. पुल निर्माण के नाम पर कभी सर्वे तो कभी रिडिजाइनिंग तो कभी ठेकेदार का भुगतान तो कभी टेस्टिंग में पैसा पानी की तरह बहाया जाता रहा, लेकिन आज तक पुल के दो टॉवर ही खड़े हो पाए हैं. वहीं प्रतापनगर विधायक विक्रम सिंह नेगी इसे भाजपा की नाकामी बता रहे है. अब कोरियाई कंपनी द्वारा पुल निर्माण किए जाने की बात कह रहे हैं.
टिहरी झील के कारण प्रतापनगर क्षेत्र की करीब एक लाख से अधिक की आबादी आज कालापानी की सजा भुगतने को मजबूर हैं और विकास से कोसों दूर हैं. लेकिन चुनावी दौर आते ही सभी नेताओं को डोबरा चांठी की याद आने लगती है. सभी अपनी अपनी तरह से प्रतापनगरवासियों के प्रति सहानभूति भरते हुए पुल निर्माण के नाम पर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं और पुल बनने का श्रेय लेने की होड़ में लगे रहते हैं.