उत्तराखंड

देवभूमि को बंजर कर रही गाजर घास

ghassपर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र देवभूमि उत्तराखंड की नेचुरल ब्यूटी पर ग्रहण लगता जा रहा है. देवभूमि की नैसर्गिक सुंदरता के लिए खतरा बनी जहरीली गाजर घास ने जैव विविधता के धनी इस राज्य की कईं वनस्पतियों के लिऐ खतरा पैदा कर दिया है. गाजर घास यहां की सैकडों हेक्टेयर कृषि भूमि को भी बंजर भूमि में तब्दील कर रही है. यहां के वनों के लिए गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है.
हालांकि तेजी के साथ पांव पसार रही इस जहरीली घास के सरकारी स्तर पर रोकथाम के प्रयास भी किये जा रहे हैं, लेकिन ऐसे प्रयास मात्र फाइलों तक ही सीमित हैं. जैव विविधता के धनी देवभूमि उत्तराखंड में तेजी के साथ पांव पसार रही जहरीली गाजर घास ने यहां की नैसर्गिकी सुंदरता के लिऐ खतरा उत्पन्न कर दिया है.
बताया गया है कि अमेरिका से वर्ष 1950 में आयतित गेहूं के साथ पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस नामक बीज के रूप में गाजर घास भारत पहुंचा. इस जहरीली प्रजाति के पौधे ने न केवल मध्य हिमालय और शिवालिक क्षेत्रों में भी अपने पैर पसार कर वहां की जैव विविधता को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है.
यहां की सैकडों हेक्टेअर कृषि भूमि में फैल कर उसको बंजर भूमि में तब्दील कर दिया है. इतना ही नही इस जहरीली घास का विस्तार इतना घना रहता है कि ऐ जमीन में गिरे नये बीजों को भी अंकुरित नही होने देता है और उन्हें सड़ाकर नष्ट कर देता है.
देवभूमि उत्तराखंड में साइलंट प्रोबल्म के रूप में तेजी से सामने आ रही इस जहरीली घास ने यहां की कृषि योग्य भूमि को बंजर करने के साथ ही यहां के नये वनों के लिऐ भी खतरा उत्पन्न कर दिया है.
दरअसल जहां तक भी यह जहरीली गाजर घास पहुंची है, इसने चीड बांज रियांज बुरांश उत्तीस के नये वन विकसित नहीं होने दिये. जिसके चलते वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास में आये परिवर्तन के चलते वे भी इससे प्रभावित हो रहे है.
इस जहरीली गाजर के विषैलेपन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जैव विविधता को समाप्त करने के साथ ही यह मानव स्वास्थ्य के लिऐ भी हानिकारक साबित हो रही है. जिसके चलते मानव इसके प्रभाव में आकर अनेक गम्भीर बीमारियों से ग्रसित हो रहा है. गाजर घास के उन्मूलन के लिऐ सरकार गम्भीर प्रयास करती नहीं दिखती है.

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