अन्तर्राष्ट्रीय

दबाव में पकिस्तान नवाज हुए हलकान

nawaz-sharif-5794dea2048c7_lसर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान की सियासी गतिविधियां तेज हो गयी हैं. इंडियन आर्मी द्वारा की गयी कार्रवाई से पैदा हुए हालात पर चर्चा के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कल फेडरल कैबिनेट की बैठक बुलायी है. उधर चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ राहील शरीफ ने नवाज शरीफ से बात कर पूरी घटानक्रम की जानकारी उन्हें दी है. राहील शरीफ ने कहा है कि पाकिस्तानी सेना युद्ध लड़ने के लिए दुनियाभर में सबसे कठोर सेना है. वहीं, पाकिस्तानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निसार जिंजुआ ने भी नवाज शरीफ से मिलकर एलओसी में पाकिस्तानी सुरक्षा को लेकर ब्रीफिंग की है. तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच नवाज शरीफ ने पाकिस्तानी संसद का संयुक्त सत्र भी बुलाया है. विपक्षी नेता इमरान खान ने कहा कि “शुक्रवार को मैं रैली कर बताऊंगा कि भारत को कैसे जवाब दिया जाता है”. इस बीच पाक विदेश मंत्रालय ने इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायुक्त गौतम बंबावले को तलब किया है. पाकिस्तान अभी बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहा है. नवंबर में होने वाले सार्क सम्मेलन में भारत ने हिस्सा लेने से इंकार कर दिया है. भारत के समर्थन में अफगानिस्तान, बंग्लादेश और भूटान ने भारत के रुख का समर्थन किया है. बड़ी संख्या में सार्क देशों के बहिष्कार से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अपनी साख बचाने में जुटा है. ज्ञात हो कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल में अपने भाषण के दौरान कहा था कि हम पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग करेंगे. उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान एक आतंकी राष्ट्र है. आज दक्षिण एशिया में कहीं भी हमला हो या तो आतंकी पाकिस्तान से आता है या फिर आतंकी घटना को अंजाम देकर पाकिस्तान वापस जाता है. भारत के इस आक्रमक रणनीति से पाकिस्तान की छवि खराब हो सकती है. पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. बढ़ते आतंकवाद से उसकी वैश्विक छवि खराब हो रही है. पाकिस्तान अगर युद्ध का मार्ग चुनना है तो पाकिस्तान को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि पाकिस्तान चीन को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है. चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है. भारत -पाकिस्तान में बढ़ते तनाव का असर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा में भी पडे़गा. चीन इसे बेहद अहम प्रोजेक्ट के रूप में देख रहा है. दबी जुबान से चीन तो पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है लेकिन उसने खुलकर युद्ध में पाकिस्तान का साथ देने की बात नहीं कही.

हालांकि चीन एक दायरे तक ही पाकिस्तान का सहयोग कर सकता है. चीन के लिए भारत भी एक बड़ा बाजार है. चीनी स्मार्टफोन कंपनियां भारत को बाजार के रूप में देखती हैं. इस लिहाज से वह कोई जोखिम लेना नहीं चाहेगा. ऐसे में भारत के साथ पैदा तनाव को निबटने में उसके पास बेहद सीमित विकल्प है.

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