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अब मिट गया बैर… गायत्री ने छुए बाप बेटे के पैर
मंत्रिमण्डल विस्तार पर लाचार दिखी सरकार
गायत्री प्रजापति को फिर से मंत्री बनाने पर घिरे अखिलेश यादव
विधान सभा चुनाव के लिए साधा जातीय संतुलन
गायत्री प्रजापति को फिर से मंत्रिमण्डल में शामिल कर विपक्ष को बैठे बिठाये एक मुद्दा दे दिया है। अवैध खनन पर भ्रष् टाचार के आरोपों में बुरी तरह घिरे गायत्री को जब अखिलेश ने कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया था तब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव न सिर्फ नाराज हुए थे बल्कि गायत्री को खुद ही
मंत्रिमण्डल में वापस लेने का ऐलान कर दिया था जबकि यह विशेषाधिकार सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का था।
सीएम अखिलेश यादव के मंत्रिपरिषद के आठवें विस्तार में सोमवार को 10 मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। समारोह के दौरान सबसे पहले तीन महीने से शपथ का इंतजार कर रहे जियाउद्दीन ने शपथ ली। बलिया के सिकंदरपुर से 2 बार विधायक रह चुके जियाउद्दीन रिजवी मंत्री पद की शपथ के वक्त हज यात्रा पर थे। आज उन्होंने खुदा के नाम पर उर्दू में शपथ ली। जियाउद्दीन के बाद बर्खास्त किए गए गायत्री प्रजापति को शपथ दिलाई गई। गायत्री प्रजापति ने मंच पर ही सीएम अखिलेश के पैर छुए। बता दें कि सीएम ने गायत्री को भ्रष्टााचर के आरोप में बर्खास्त कर दिया था। समारोह में गायत्री प्रजापति के बाद मनोज पांडेय और शिवाकांत ओझा ने शपथ ली। इसके बाद मंत्री हाजी रियाज ने शपथ ली। उनका पीलीभीत से स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री के तौर पर प्रमोशन किया गया है। हाजी रियाज के बाद राज्यपाल ने यासर शाह को कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ दिलाई। मंत्री रविदास मेहरोत्रा का प्रमोशन कर उन्हें कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई। इसके साथ ही अभिषेक मिश्रा, नरेंद्र वर्मा और शंखलाल मांझी ने भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली। इन सभी का कैबिनेट मंत्री के तौर पर प्रमोशन किया गया है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव गायत्री को मंत्रिमण्डल में लेने को कतई तैयार नहीं थे। मुलायम सिंह यादव ने पारिवारिक दबाव के चलते अखिलेश पर भी अपना चाबुक चलाया। बीते 15 दिनों की उठापठक के बाद अखिलेश को झुकना ही पड़ा। मुलायम सिंह यादव के बेटे प्रतीक यादव व मां साधना गुप्ता को अखिलेश यादव कभी नहीं भाए। मुलायम सिंह यादव यह बात अच्छी तरह से जानते हैं इसलिए उन्होंने प्रतीक व उनकी मां को कभी राजनीति के आसपास नहीं आने दिया। लेकिन साधना गुप्ता ने राजनीति से बाहर रह कर ही बेटे प्रतीक को मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी। इसमें वह सफल भी रहीं। बेटे प्रतीक की राजनीति में आने की कोई इच्छा नहीं रही लेकिन बहू अपर्णा के लिए साधना ने रास्ता बनाया और मुख्यमंत्री व सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश की बिना सलाह लिए मुलायम सिंह ने लखनऊ कैंट से सपा प्रत्याशी तक बनवा दिया। बस यहीं से साधना गुप्ता को लग गया कि पार्टी में उनकी भी सुनी जा सकती है। वर्ष 2012 में सपा सरकार बनने के बाद गायत्री प्रजापति को राज्य मंत्री के रूप में सपा मंत्रिमण्डल में जगह मिली। गायत्री को आगे बढऩे की कला मालूम थी। बस फिर किया। प्रतीक के बिजनेस में गायत्री विशेष रुचि दिखाने लगे। खनन मंत्रालय जो पहले मुख्यमंत्री के पास था वह ऊंची व मजबूत सिफारिशों के चलते गायत्री प्रजापति के पास चला गया। खनन मंत्री बनने के बाद गायत्री ने काली कमाई के सारे रिकार्ड तोड़ डाले। हर जिले में गायत्री के एजेंट तैनात होने लगे। धरती का सीना चीर रुपये का पहाड़ खड़ा करने वाले गायत्री ने प्रतीक के परिवार में खासी पैठ बना ली। गायत्री की काली कमाई पर लोकायुक्त की जांच भी बेअसर रही। मुख्यमंत्री अखिलेश के पास गायत्री के खिलाफ शिकायतें लगातार आ रही थीं उसके बावजूद उनका मंत्रालय मुख्यमंत्री की पकड़ से बाहर ही रहा। इतना ही नहीं अक्टूबर 2015 में मुख्यमंत्री ने कई दिग्गज मंत्रियों के विभाग बदले कुछ को बाहर किया लेकिन गायत्री प्रजापति का बाल भी बांका न हुआ। गायत्री प्रजापति न तो यादव परिवार में आते थे और न ही मुख्यमंत्री के कोई सखा फिर भी यादव परिवार में गायत्री प्रजापति का वैसा ही दखल हो रहा था जैसा कभी अमर सिंह का हुआ करता था। मुख्यमंत्री अखिलेश भी गायत्री की पहुंच जानते थे इसलिए वह कभी गायत्री पर हाथ डालने की सोचते तक नहीं थे। खनन पर जब कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाया और सीबीआई जांच की आंच सरकार तक आने लगी तब जा कर अखिलेश ने गायत्री प्रजापति को बर्खास्त किया। इसके बाद दीपक सिंघल को भी मुख्य सचिव से हटा दिया। बस इन दो फैसलों ने यादव कुनबे में भूचाल ला दिया।
एक बार फिर किसी बाहरी के कारण यादव कुनबे में घमासान मचा था। गायत्री से प्रतीक के सम्बन्ध के बावजूद गायत्री को बर्खास्त किए जाने को प्रतीक व उनकी मां ने प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। प्रतीक के परिवार ने इस मामले में शिवपाल का सहारा लिया। शिवपाल भी अपने खास मंत्री राजकिशोर व दीपक सिंघल को हटाये जाने को खुद को नीचा दिखाये जाने से जोड़ रहे थे। शिवपाल और प्रतीक के परिवार ने गायत्री के लिए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से जमकर पैरवी की। शिवपाल और अखिलेश के बीच प्रकरण को गायत्री की पैरवी ने बहुत पीछे धकेल दिया। गायत्री प्रजापति के रूप में सपा में अब दूसरे अमर सिंह की इंट्री हो चुकी है। मंत्री बनने के बाद यही गायत्री आने वाले चुनाव में प्रतीक में जब राजनीतिक महात्वाकांक्षाएं जगाएंगे जो कुनबे को जलाकर राख कर देगी। मुलायम सिंह की चिंता यही है कि आने वाले दिनों में सपा में सत्ता संग्राम को किस तरह से थामेंगे। प्रतीक की फडफ़ड़ाती राजनीतिक आकांक्षाएं मुलायम को चैन नहीं लेने देंगी। शिवपाल व रामगोपाल का युग अब जाने को है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही सपा का एकमात्र चेहरा हैं जो चुनाव में सपा को ताकत दे सकते हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश का गायत्री प्रजापति को ससम्मान वापस लेना फिलहाल लोगों की समझ में नहीं आ रहा है। एक पुत्र के रूप में पिता की इच्छा का मान रख अखिलेश ने अपनी साख तो बचा ली है लेकिन इस मामले में आने वाले विधानसभा चुनाव में जनता से सामना तो करना ही होगा।