जोशीमठ को बचाना है चुनौती, वैज्ञानिकों की मेहनत पर अब सरकार को करना है काम
देहरादून। जोशीमठ के भूधंसाव पर आठ वैज्ञानिक संस्थानों की अध्ययन रिपोर्ट हाईकोर्ट के आदेश पर सार्वजनिक की जा चुकी है। इन रिपोर्ट का पर्याप्त अध्ययन सरकारी एजेंसियों के स्तर पर भी किया जा चुका है। जिनका सार कुल मिलाकर यह है कि जोशीमठ की स्थिति संवेदनशील तो है, लेकिन खतरनाक नहीं।
इसके साथ ही इन अध्ययन रिपोर्ट में भविष्य के निर्माण की प्रकृति को लेकर भी आगाह किया गया है। जिसका मतलब यह है कि अब जोशीमठ क्षेत्र में जो भी निर्माण किए जाएं, उनके लिए स्पष्ट मानक बनें और उनका पालन भी कराया जाए।
सभी विज्ञानी संस्थानों ने माना है कि जोशीमठ पुरातन (पेलियो) भूस्खलन के मलबे के ढेर पर बसा है। यहां की जमीन बोल्डर और ढीली प्रकृति वाली मिट्टी व रेत की बनी है। लिहाजा, इसकी क्षमता अपेक्षाकृत कम है। हालांकि, समूचे जोशीमठ में ऐसा नहीं है। यही कारण है कि विज्ञानी संस्थानों ने जोशीमठ के लिए रिस्क मैप भी तैयार किया है। जिसमें अलग-अलग क्षेत्रों को उच्च जोखिम, माध्यम जोखिम और निम्न जोखिम में रखा गया है।
इसके अलावा यह भी स्पष्ट किया है कि भूधंसाव या जमीन के विस्थापन की जो गति शुरुआत में तीव्र थी, उसमें कमी आ गई है। दूसरी तरफ यहां के प्राकृतिक जल स्रोतों की स्थिति, ड्रेनेज सिस्टम आदि को लेकर भी संस्तुतियां की गई हैं।
काम आएगा IIT रुड़की का रिस्क मैप
IIT रुड़की ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ के 50 प्रतिशत भूभाग को संवेदनशील माना है। कुल 12 स्थानों पर जमीन की क्षमता का परीक्षण अलग-अलग विज्ञानी विधि से किया गया है। जिसमें नृसिंह मंदिर के पास के लोअर बाजार क्षेत्र, सिंहधार पार्किंग लाट, मनोहरबाग में रोपवे के टावर-एक, लोनिवि गेस्ट हाउस के पास व परसारी में एटी नाला के पास की जमीन की क्षमता कमजोर पाई गई है। इसमें भी लोनिवि गेस्ट हाउस के पास की जमीन सबसे कमजोर पाई गई है।
दूसरी तरफ राजकीय महाविद्यालय, जेपी कॉलोनी गेट, सिंहधार में पंचवटी इन के पास, नगर पालिका के पास, सुनील में शिवालिक कॉटेज के पास किए गए अध्ययन में भूमि की क्षमता ठीक पाई गई है। लिहाजा, इसी धार पर रिस्क मैप तैयार करते हुए भविष्य के निर्माण की संस्तुति की गई है।
वाडिया ने खोली लगातार निगरानी की राह
वाडिया हिमालय विज्ञान संस्थान ने न सिर्फ जोशीमठ में आपदा प्रबंधन के लिए पहली बार लिडार सर्वे कर उच्च रेजोल्यूशन के मैप तैयार किए हैं, बल्कि भूकंप की छोटी से छोटी हलचल (01 मैग्नीट्यूड तक) मापने के लिए 11 सिस्मिक स्टेशन भी स्थापित किए हैं।ब्रॉडबैंड आधारित इन स्टेशन से रियल टाइम डेटा मिलेगा। इससे जोशीमठ क्षेत्र में आपदा प्रबंधन के कार्यों में मदद मिलने के साथ ही भूगर्भ की हलचल पर भी बारीक नजर रखी जा सकेगी।
विस्थापन व भूधंसाव में आई कमी
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) ने जोशीमठ में भूधंसाव की स्थिति न सिर्फ स्पष्ट की, बल्कि यह भी बताया कि भूमि एक तरफ खिसक भी रही है। जून 2019 से लेकर मार्च 2023 तक अलग-अलग समय अंतराल में सेटेलाइट से अध्ययन किया गया।
साथ ही जमीन पर भी इसका परीक्षण किया। जिससे पता चला कि एक समय में जमीन में परिवर्तन की दर सर्वाधिक 9.5 मिलीमीटर दैनिक होने के बाद अध्ययन के आखिरी दौर में मार्च 2023 में 0.6 मिलीमीटर दैनिक रह गई थी। इसके साथ ही सरकारी मशीनरी ने भी चैन की सांस ली।
CGWB ने खोली जल स्रोतों के संरक्षण की राह
केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board- CGWB) ने जलस्रोतों का गहन अध्ययन किया। इसमें आठ प्राकृतिक स्रोत के अलावा चार हैंडपंपों का अध्ययन भी शामिल है। जिसमें बताया गया कि जलस्रोतों के क्षेत्र में भारी निर्माण से भूगर्भ में पानी अपनी राह बदल रहा है। इसे भूधंसाव के साथ भी जोड़ा गया। साथ ही संस्तुति की गई कि जलस्रोतों के आसपास निर्माण प्रतिबंधित किए जाएं और विभिन्न स्थलन पर रिटेंशन दीवार के साथ खाई बनाई जाए।
NGRL ने भी चिह्नित किए उच्च जोखिम क्षेत्र
नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (NGRL) हैदराबाद ने भी जोशीमठ क्षेत्र की जमीन की क्षमता का परीक्षण किया। जिसमें करीब 30 प्रतिशत भूभाग को उच्च जोखिम वाला पाया गया। अध्ययन में जमीन के भीतर भी भूधंसाव का प्रभाव पाया गया। इसी के मुताबिक विज्ञानियों ने निर्माण की संस्तुति की और भविष्य के लिए आगाह भी किया।
GSI ने जोखिम और दरारों पर तस्वीर साफ की
जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (GSI) ने जोशीमठ भूधंसाव और वहां के ढाल पर स्थिति साफ की। विज्ञानियों के अध्ययन में बताया कि यहां का कौन सा भाग कितने डिग्री के ढाल पर होने के चलते किस तरह के निर्माण के लिए अनुकूल नहीं है। इसके अलावा यह भी बताया कि भूधंसाव की गति तेज होने के बाद 42 नई दरारें पाई गई हैं।
इसके अलावा भूधंसाव के प्रभाव पर व्यापक अध्ययन किया गया। इसके अलावा क्षेत्र में भविष्य में बड़े भूकंप के हिसाब से भी निर्माण की सलाह दी गई। कुल मिलाकर GSI ने जोशीमठ के साथ ही इस जैसे अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए भी सावधानी बरतने को कहा।
CBRI ने बताया भवनों का हाल
सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) रुड़की ने आपदा प्रभावित जोशीमठ क्षेत्र के एक-एक भवन का बारीकी से अध्ययन किया। जिसमें पाया गया कि 2364 भवनों में से 99 प्रतिशत में इंजीनियरिंग का नाम नहीं है। सिर्फ 37 प्रतिशत भवनों को प्रयोग योग्य बताते हुए 42 प्रतिशत भवनों का दोबारा परीक्षण कराने की सलाह दी गई।
साथ ही 20 प्रतिशत भवनों को असुरक्षित बताया और एक प्रतिशत भवनों को ध्वस्त किए जाने की संस्तुति की गई। इसके अलावा जोशीमठ समेत अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए भवन निर्माण के लिए विभिन्न अध्ययन और मानक बनाने को कहा गया।
NIH ने दूर किया टनल से भूधंसाव का भ्रम
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलाजी (NIH) रुड़की ने उस भ्रम को दूर किया, जिसमें यह कहा जा रहा था कि एनटीपीसी की टनल के चलते जेपी कालोनी में पानी का स्रोत फूटा है और भूधंसाव की दर बढ़ी है।
NIH ने टनल और जेपी कालोनी के आइसोटोप्स का अध्ययन कर स्पष्ट किया कि दोनों के पानी में भिन्नता है। यही बात जीएसआइ ने भी अपने अध्ययन में की है। जिसमें कुछ भौगोलिक अध्ययन और उसके प्रभाव को आधार बनाया गया।