यूपी से अलग होने के बाद उत्तराखंड में नैनीताल से आज तक नहीं बना कोई मंत्री
देश व राज्य को कई बड़े नेता देने वाले नैनीताल से आज तक कोई भी मंत्री नहीं बन पाया। राज्य गठन के बाद भी नैनीताल से जीता कोई भी विधायक मंत्री पद तक पहुंचने में सफल नहीं हो सका। हालांकि इस बार नैनीताल सीट पर जीत से भाजपा काफी गदगद है, जिसका फल पार्टी सरिता आर्य को दे सकती है। दरअसल नैनीताल को कांग्रेस की पक्की सीट माना जा रहा था, पर सरिता आर्य असाधारण प्रदर्शन करते हुए नैनीताल विधानसभा सीट को भाजपा के पास ही रखने में सफल हुईं। ऐसे में संभव है कि उन्हें इस जीत का इनाम मंत्री पद देकर मिल जाए।
नैनीताल विधानसभ सीट ने कई दिग्गज नेता दिए। एनडी तिवारी ने 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में, जबकि 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में नैनीताल से चुनाव लड़ा। दोनों बार वह जीते, पर मंत्री नहीं बन पाए। 1962 में एनडी ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से नैनीताल सीट से फिर चुनाव लड़ा, लेकिन तब कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र मेहरा से हार गए। इस हार से एनडी बेहद आहत हुए और उसके बाद काशीपुर से चुनाव लड़ते रहे। इसके अलावा वर्तमान में कालाढूंगी से विधायक और उत्तराखंड भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता बंशीधर भगत नैनीताल विधानसभा सीट से लगातार तीन बार विधायक रहे। पर वह भी कभी मंत्री नहीं बन पाए। राज्य गठन के बाद भी नैनीताल से जीता कोई भी विधायक मंत्री पद तक नहीं पहुंच सका है।
महिला कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़कर आईं सरिता
सरिता आर्य महिला कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद पर थीं। कांग्रेस ने उनका टिकट काटकर संजीव आर्य को थमा दिया। हरीश रावत गुट की समर्थक होने के बावजूद सरिता को अपने टिकट कटने से काफी निराशा हुई। ऐसे में उन्होंने भाजपा का दामन थामा और मात्र 25 दिनों के भीतर कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी को हराकर नैनीताल सीट पर भाजपा का झंडा बुलंद रखा।