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नागरिक संशोधन कानून : संवैधानिक प्रक्रिया का हिंसात्मक विरोध
पिछले दिनों देश के कई राज्यों के विभिन्न शहरों में नागरिक संशोधन कानून यानि कि सीएए और चर्चित राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन मुद्दे के खिलाफ विरोध के नाम पर अराजक तत्वों की ओर से व्यापक स्तर पर हिंसा व उपद्रव फैलाया गया।
ये काम जिस ढंग से किया गया, उसे देख कर ये बात साफ है कि विरोध की आ़ड़ में अराजकता उत्पन्न करना उनका मूल उद्देष्य रहा है, क्योंकि ये आन्दोलन कानून बनने के बाद बहुत ही व्यवस्थित ढंग से सभी जगहों पर शुरू हुआ। इसमें कुछ स्वार्थी तत्वों को अपने निहित उद्देष्यों को पूरा करने का एक मौका दिखने लगा और वे इसे हर स्तर पर बढ़ावा देने के लिए सक्रिय हो गए।
भारत में किसी भी संवेधानिक प्रक्रिया के अन्तर्गत बनाए गए कानून का भी इतने हिंसात्मक तरीके से विरोध किया जा सकता है, उसका ये एक बहुत ही सटीक उदाहरण है। इस विरोध के पृष्ठभूमि में दो बाते हैं, जिनका आपस में घालमेल करके लोगों को गुमराह किया गया। इसमें पहला नागरिक संशोधन कानून ( सीएए ) है और दूसरा राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन ( एनआरसी) का मुद्दा रहा है।
मजेदार बात ये भी है कि नागरिक संशोधन कानून, जो अब एक बाकायदा कानून बन गया है, वहीं पर राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन प्रक्रिया के सन्दर्भ में सरकार की ओर से अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है। लेकिन इन दोनों मुद्दों को आपस में मिला करके इनकी गलत ढंग से ऐसी व्याख्या की गई कि लोग गुमराह हुए और वे हिंसा पर उतर आए।
आन्दोलन में शामिल बहुत से लोग इसका ये कह करके विरोध कर रहे हैं कि नागरिक संशोधन कानून भारतीय संविधान में सभी नागरिकों प्रदत्त समानता के अधिकार के मूल भावना के विपरीत है। भारत के संविधान में प्रत्येक नागरिक को समानता को विभिन्न सन्दर्भो में हर प्रकार से अधिकार दिया गया है। लेकिन इसी संविधान में यह भी व्यवस्था है कि उचित आधार पर कई वर्गों के लोगों को विशेष सुविधाओं को दिया जा सकता है।अगर ऐसा नहीं होता, तो फिर सरकार की ओर से आर्थिक, सामाजिक स्तर पर पिछड़े लोगों के लिए विविध प्रकार की कल्याणकारी योजनाओं का चलाना संभव ही नहीं हो पाता।
लेकिन यहां पर ये स्थिति लागू भी नहीं होती है। नागरिक संशोधन कानून का भारतीय नागरिकों के समानता या अन्य अधिकारों से सीधा कोई संबंध भी नहीं है। इस कानून के ज़रिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रहने वाले धार्मिक आधार पर प्रताड़ना के शिकार अल्पसंख्यक हिन्दू, बौद्ध, जैन, पारसी, सिख और ईसाई धर्म के उन लोगों को भारत में नागरिकता देने की बात कही गई है, जो कि देश के विभाजन के बाद और 31 दिसम्बर 2014 से पहले भारत में रणार्थी के रूप में आये हैं। स्पष्ट है कि ये कानून मानवीय पक्ष और राष्ट्रीय दायित्वों को ध्यान में रख के ही बनाया गया है।
वहीं इस कानून का भारतीय मुसलमान या किसी अन्य धर्म के नागरिकों से कुछ भी लेना देना ही नहीं है। उनके ऊपर प्रभाव पड़ने की बात का तो कोई प्रश्न ही नहीं है। ये कानून नागरिकता प्रदान कर रहा है, न कि किसी भी व्यक्ति की नागरिकता समाप्त रहा है।
अतः स्पष्ट है कि इस कानून के अन्तर्गत पाकिस्तान, बाॅग्लादेश और अफगानिस्तान देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के सिर्फ वे नागरिक शामिल हैं, जो कि विभाजन के समय विभिन्न कारणों से भारत में नहीं आ सके थे, लेकिन बाद के दौर में इन देशों में प्रताड़ना के शिकार होने के कारण वे भारत में शरणार्थी के रूप में आए हैं।
भारत में एक लम्बे समय से वे शरणार्थी बन कर रह रहे हैं। ऐसे लोगों को भारत की नागरिकता दे कर के सरकार ने देश की अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर एक मानवतावादी और सकारात्मक छवि ही पेश की है। सरकार के इस प्रयास की देश ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा की जानी चाहिए। भारत सरकार की ओर से पूर्व में उगांडा एवं श्रीलंका देश से आए लाखों भारतीय मूल के लोगों को भारत की नागरिकता दी जा चुकी है।
सरकार की ओर बनाए गए नागरिक संशोधन कानून के पक्ष में आम भारतीय नागरिक हैं। उसके इस पहल का भारत के आम शिक्षित वर्ग की ओर स्वागत व समर्थन किया गया है। वहीं पर, ये भी देखने में आया है कि नागरिक संशोधन कानून के पक्ष में विविध दलों के स्थानीय स्तर के नेता भी हैं। वे बातचीत में तो इसे दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन प्रकट रूप में इसके खिलाफ ही बोल रहे हैं। यह उनकी राजनीतिक मजबूरी ही कही जा सकती है।
अब अगर बात दूसरे विषय (एनआरसी) राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन की जाए तो इसका नागरिक संशोधन कानून से कुछ भी लेना देना ही नहीं है। इसके बारे में सरकार ने अभी तक कोई विचार ही नहीं किया है। राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण का काम उसी प्रकार से जैसे वोटर कार्ड, ड्राइविंग लाईसेंस, आधार कार्ड आदि के बनाने की प्रक्रिया की जाती है। इन कार्ड के लिए एक आम भारतीय नागरिक के तौर पर जैसे बिना किसी भेद भाव के प्रत्येक नागरिक अपना प्रमाण देता है, उसी तरह से प्रस्तावित नागरिक पंजीकरण के लिए भी दिया जा सकता है।
नागरिकता प्रमाणपत्र के लिए दिए जाने वाले दस्तावेजों की प्रस्तावित सूची तो बहुत ही लम्बी है। यहां तक कि वे भारतीय नागरिक जिनके पास किसी प्रकार का कोई दस्तावेज आदि नहीं है, वे इसमें किसी गवाह के माध्यम से भी अपनी नागरिकता का पंजीकरण करा सकते हैं। नागरिकता पंजीकरण के लिए भूमिधारक होना कोई ज़रूरी नहीं है।
यहां पर दो बातें महत्वपूर्ण हैं। प्रथम यह कि ये भारत के सभी नागरिकों का एक पंजीकरण है। दूसरा ये कि इस प्रकार के पंजीकरण के सन्दर्भ में अभी किसी तरह की कोई पहल की बात भी नहीं की गई है।
इसका मूल उद्देष्य विदेशी घुसपैठियों को रोकना और उन्हें बाहर करना है। ऐसी स्थिति में इसे ले करके इतना बवाल करने के पीछे एक साजिश ही दिखती है। कोई भी सरकार अपने ही नागरिक के लिए ऐसा कोई भी काम प्रक्रिया कभी नहीं अपनाना चाहेगी, जिससे कि उन्हें किसी प्रकार की कोई समस्या हो। अतः स्पष्ट है कि इसे अगर कभी भविष्य में लाए जाने की पहल होगी, तो देश के नागरिकों की सुविधा को हर प्रकार से ध्यान में रखा जाएगा।
अब अगर देखा जाए कि कानून के विरोध में सड़कों पर कौन उतर रहे हैं, तो यही ज्ञात होता है कि, जो लोग इस कानून के बारे में कुछ भी नही जानते हैं, वे इसका विरोध पूरे जी जान से कर रहे हैं। विरोध करने वालों से जब भी इस कानून के बारे में पूछा जाता है तो वे या तो कुछ कहने से मना कर देते हैं या भ्रामक और तथ्यों से परे बातें कहते हैं। वे निहायत काल्पनिक भय की आशंका जाहिर करते हैं। स्पष्ट है कि इन लोगों को कानून के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है और वे कहीं न कहीं इस प्रकार से गुमराह किए गए हैं कि वे बहुत ही आक्रोषित हो करके ही इसका विरोध कर रहे हैं। वे इसके लिए जो कारण दे रहे हैं, उनका सीएए अथवा एनआरसी में दूर दूर तक कहीं जिक्र नहीं है।
अभी तक कई शहरों में जो भी आन्दोलन दिखे हैं, उनमें शामिल लोगों को देख करके स्पष्ट हो जाता है कि इसमें कम उम्र के ऐसे युवा शामिल हैं, जिन्हे आसानी गुमराह किया जा सकता है। उन्हें इस कानून की सच्चाई के बारे में कोई साफ जानकारी नहीं है। उन्हें भ्रमित करके समाज में अराजकता उत्पन्न करने और सरकार को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। अभी तक की जांच में जो तथ्य सामने उभर के आए हैं, उससे परिलक्षित होता है कि कुछ संगठन इसमे बहुत ही सुनियोजित ढंग से अपनी भूमिका निभाए हैं।
अब इस आन्दोलन में विपक्षी दलों की भूमिका देखें तो वह भी नकारात्मक ही दिखती है। वर्तमान सरकार द्वारा जिस प्रकार से कश्मीर में धारा 370 हटाने, तीन तलाक जैसे विषयों पर देश और मुसलिम समाज के हित में साहसिक फैसले लिए हैं, उससे विपक्ष भी न सिर्फ हैरान और परेशान हैं, वर्ना उनकी समझ में भी नहीं आ रहा है कि वे इससे कैसे निपटे। वे इसका बहुत खुल करके विरोध भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि आम जनमानस ने इन सबका स्वागत किया है। ये सभी कानून संवैधानिक प्रक्रिया के द्वारा बनाए गए हैं।
उन्हें कश्मीर में धारा 370 हटाने और तीन तलाक पर कानून बनाने के सन्दर्भ में लोगों का समर्थन नहीं मिल सका। नागरिक संशोधन कानून एवं राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन मुद्दे पर उन्हें भी उन लोगों को गुमराह करने का मौका मिल गया, जिन्हें इस बात की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।
किसी भी लोकतांत्रिक समाज में लोगों को विरोध करने का अधिकार है, लेकिन उसका स्वरूप भी लोकतांत्रिक ही होना चाहिए। इस हिंसक आन्दोलन से समाज का कितना नुकसान हुआ है, अभी उसका आंकलन तो किया जा रहा है, लेकिन तत्काल में जो जानकारी मिल रही हैं, उससे तो यह स्पष्ट है हिंसक उपद्रव के कारण दैनिक रोजी रोटी कमाने वाले बहुत से घरों में कई दिनों से चूल्हा नहीं जल सका।
इसी प्रकार इन्टरनेट सेवा के बन्द होने से सम्बन्धित जगहों पर इससे जुड़ करके होने वाले विविध प्रकार के व्यापारिक और अन्य क्रिया कलाप भी प्रभावित हुए हैं। समाज में न जाने कितने प्रकार के सरकारी और गैरसरकारी कार्यक्रमों को रद्द या स्थगित करना पड़ा है।
विविध प्रकार के परीक्षाओं को भी स्थगित करना पड़़ा है। सरकारी और गैरसरकारी कार्यालयों के बन्द होने से लोगों की तकनीफें बढ़ी है। इसने देश और विदेश के पर्यटकों को भी प्रभावित किया है। स्पष्ट है कि इन उपद्रवकारी हिंसक आन्दोलनों से जान माल का जो तत्काल नुकसान दिखता है, ये उससे कहीं अधिक बड़ा और विकराल रूप में होता है। वर्तमान समाज की संरचना इस ढंग की बन गई है कि ऐसे हिंसक आन्दोलनों से कई आयामों में हर स्तर बहुत ही हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं।
अतः अब यह आवश्यक है कि किसी प्रकार के कानून आदि के निर्माण के सन्दर्भ में उसके समानान्तर हर स्तर पर उतनी ही तैयारी भी होनी चाहिए। देश में कई स्तरों पर सरकार द्वारा भविष्य में अभी बहुत से ऐसे काम करने का प्रस्ताव है जिसमें कि अराजक तत्व एवं विरोधी दल के लोगों को गुमराह करने और उनमें भ्रम पैदा करने का प्रयास कर सकते हैं। अतः ये सरकार के लिए आवश्यक है कि वर्तमान स्थिति को संभालने के साथ ही भविष्य में इस प्रकार की स्थितियों से निपटने के लिए भी तैयार रहे।
इस कानून के सन्दर्भ में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार ने कई स्तर पर प्रयास आरम्भ कर दिया गया है। गत् 22 दिसम्बर को स्वयं प्रधानमंत्री ने सीएए और एनआरसी के संबंध में व्याप्त भ्रम को दूर करने की कोशिश की गई । सरकार का मानना है कि यदि किसी को कोई परेशानी है तो फिर वह उसके लिए बात करने के लिए तैयार है। इस स्थिति से निपटने के सन्दर्भ में लोगों की शंकाओं को दूर करने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने संशोधित नागरिकता कानून एवं राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण के मुद्दे पर शंकाओं को दूर करने और सुझाव मांगने के लिए एक हेल्प डेस्क बनाने का फैसला किया है। ये इस कानून के सन्दर्भ में भ्रमित और गुमराह लोगों की शंकाओं को दूर करने के लिए अच्छी पहल है।
कई शहरों में इस कानून के समर्थन में आम लोग जुलूस निकाल रहे हैं। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण ये है कि जो लोग भी इस स्थिति का लाभ उठा करके समाज में अराजकता उत्पन्न करना चाहते हैं, उन्हें उचित सजा भी दी जाए , जिससे कि भविष्य में ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो सके। इसी के साथ एक आम नागरिक के रूप में लोगों का भी ये दायित्व है कि वे किसी भी विषय के बारे में न केवल सच्चाई का पता लगाए और दूसरे को भी उससे परिचित कराएं, जिससे कि ऐसी भयावह स्थिति आगे उत्पन्न ही न हो।
– डॉ. अरविन्द कुमार सिंह,
असिस्टैंट प्रोफेसर, बीबीए विष्वविद्यालय, लखनऊ