दामपत्य अधिकारों की बहाली की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई करेगा सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली, 5 मार्च (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ दामपत्य अधिकारों की बहाली की अनुमति देने वाले विभिन्न कानूनी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करेगी।
पीठ इस आधार पर सुनवाई करेगी कि यह एक महिला पर ‘अंसगत बोझ’ डालता है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ मंगलवार को गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के दो छात्रों द्वारा दाखिल याचिका को तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया। छात्रों ने हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम और नागरिक प्रक्रिया संहिता में दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए प्रावधानों को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की थी।
याचिकाकर्ता ओजस्व पाठक और मयंक गुप्ता ने कहा कि इन अधिकारों के लिए मुहैया कराए जाने वाले ‘विधायी पैकेज’ असंवैधानिक हैं, क्योंकि कानूनी ढांचा चेहरे से ही उदासीन है और यह महिला पर ‘अंसगत बोझ’ डालता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 (1) का उल्लंघन है।
छात्रों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने असंवैधानिक होने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9, विशेष विवाह अधिनियम की धारा 22 और नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 के नियम 32 और 33 को रद्द करने की मांग की।
इन प्रावधानों को निजता के अधिकार, व्यभिचार और भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के वैधीकरण पर शीर्ष अदालत के फैसले के मद्देनजर चुनौती दी गई है।
पाठक और गुप्ता ने कहा, “कानूनी ढांचा व्यक्ति (महिला व पुरुष दोनों) की निजता, निजी स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकारों का उल्लंघन है। इन अधिकारों की संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गारंटी दी गई है।”