IANS

जब रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे शंकर

 भारतीय जीवन में गांवों से लेकर शहरों तक व्रतों एवं उत्सवों का स्थायी प्रभाव है। भारत पर्व एवं उत्सवों का देश माना जाता है। महाशिव रात्रि पर्व भी संपूर्ण भारत के साथ-साथ नेपाल व मॉरीशस सहित अन्य कई देशों में उत्साह पूवर्क मनाया जाता है।

  महाशिव रात्रि का व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। यह भगवान शिव का त्यौहार है, जिसका हर शिवभक्त वर्षभर बेसब्री से इंतजार करते हैं और शिव की भक्ति और भांग के रंग में मग्न हो जाते हैं।

पुराणों के अनुसार, इसी दिन सृष्टि के आरंभ में मध्यरात्रि में भगवान शिव ब्रह्मा की काया से रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिन को महाशिवरात्रि कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान शंकर और पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं।

शिवरात्रि के बारे में हमारे वेद, पुराणों में बताया गया है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था, उस समय समुद्र से चौदह रत्न प्राप्त हुए थे। उन रत्नों में हलाहल भी था, जिसकी गर्मी से सभी देव व दानव त्रस्त होने लगे कोई भी उसे पीने को तैयार नहीं हुआ। अंत में शिवजी ने हलाहल को पान किया। उन्होंने लोक कल्याण की भावना से अपने को उत्सर्ग कर दिया। इसलिए उनको महादेव कहा जाता है। जब हलाहल को उन्होंने अपने कंठ के पास रख लिया तो उसकी गर्मी से कंठ नीला हो गया। तभी से उन्हें नीलकंठ भी कहते हैं।

शिव का अर्थ कल्याण होता है। जब संसार में पापियों की संख्या बढ़ जाती है तो शिव उन्हें मारकर लोगों की रक्षा करते हैं, इसीलिए उन्हें शिव कहा जाता है।

पुराणों में कहा जाता है कि एक समय पार्वती शिवजी के साथ कैलाश पर बैठी थी। उसी समय पार्वती ने प्रश्न किया कि इस तरह का कोई व्रत है, जिसके करने से मनुष्य आपके धाम को प्राप्त कर सके? तब उन्होंने यह कथा सुनाई थी कि प्रत्यना नामक देश में एक व्याध रहता था, जो जीवों को मारकर या जीवित बेचकर अपना भरण पोषण करता था। वह किसी सेठ का रुपया रखे हुए था। उचित तिथि पर कर्ज न उतार सकने के कारण सेठ ने उसको शिवमठ में बंद कर दिया। संयोग से उस दिन फाल्गुन बदी त्रयोदशी थी। अत: वहां रातभर कथा, पूजा होती रही जिसे उसने सुना।

दूसरे दिन भी उसने कथा सुनी। चतुर्दशी को उसे इस शर्त पर छोड़ा गया कि दूसरे दिन वह कर्ज पूरा कर देगा। उसने सोचा रात को नदी के किनारे बैठना चाहिए। वहां जरूर कोई न कोई जानवर पानी पीने आएगा। अत: उसने पास के बेल वृक्ष पर बैठने का स्थान बना लिया। उस बेल के नीचे शिवलिंग था। जब वह अपने छिपने का स्थान बना रहा था, उस समय बेल के पत्तों को तोड़कर फेंकता जाता था जो शिवलिंग पर ही गिरते थे। वह दो दिन का भूखा था। इस तरह से वह अनजाने में ही शिवरात्रि का व्रत कर ही चुका थाए साथ ही शिवलिंग पर बेल-पत्र भी अपने आप चढ़ते गए।

एक पहर रात्रि बीतने पर एक गर्भवती हिरणी पानी पीने आई। व्याध ने तीर को धनुष पर चढ़ाया किंतु उसकी कातर वाणी सुनकर उसे इस शर्त पर जाने दिया कि प्रत्यूष होने पर वह स्वयं आएगी। दूसरे पहर में दूसरी हिरणी आई। उसे भी छोड़ दिया। तीसरे पहर भी एक हिरणी आई उसे भी उसने छोड़ दिया और सभी ने यही कहा कि प्रत्यूष होने पर मैं आपके पास आऊंगी। चौथे पहर एक हिरण आया। उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई कि वे तीनों हिरणियां मेरी स्त्री थीं। वे सभी मुझसे मिलने को छटपटा रही थीं। इस पर उसको भी छोड़ दिया तथा कुछ और भी बेल-पत्र नीचे गिराए। इससे उसका हृदय बिल्कुल पवित्र, निर्मल तथा कोमल हो गया।

प्रात: होने पर वह बेल-पत्र से नीचे उतरा। नीचे उतरने से और भी बेल पत्र शिवलिंग पर चढ़ गए। अत: शिवजी ने प्रसन्न होकर उसके हृदय को इतना कोमल बना दिया कि अपने पुराने पापों को याद करके वह पछताने लगा और जानवरों का वध करने से उसे घृणा हो गई। सुबह वे सभी हिरणियां और हिरण आए। उनके सत्य वचन पालन करने को देखकर उसका हृदय दुग्ध सा धवल हो गया और अति कातर होकर फूट-फूट कर रोने लगा। यह सब देखकर शिव ने उन सबों को विमान से अपने लोक में बुला लिया ओर इस तरह से उन सबों को मोक्ष की प्राप्ति हो गई।

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है। इस रात धरती के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति ऐसी होती है कि इंसान के शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति इंसान को अपने आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। इसका लाभ उठाने के लिए इस परंपरा में हमने एक खास त्यौहार बनाया जो रातभर चलता है। ऊर्जा के इस प्राकृतिक चढ़ाव में मदद करने के लिए रात भर चलने वाले इस त्यौहार का एक मूलभूत तत्व यह पक्का करना है कि आप रीढ़ को सीधा रखते हुए रात भर जागें। गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोग महाशिवरात्रि को शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले लोग इस दिन को शिव की दुश्मनों पर विजय के रूप में देखते हैं।

योगियों और संन्यासियों के लिए यह वह दिन हैए जब शिव कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। योगिक परंपरा में शिव को ईश्वर के रूप में नहीं पूजा जाता है, बल्कि उन्हें प्रथम गुरु, आदि गुरु माना जाता है, जो योग विज्ञान के जन्मदाता थे। कई सदियों तक ध्यान करने के बाद शिव एक दिन वह पूरी तरह स्थिर हो गए। उनके भीतर की सारी हलचल रुक गई और वह पूरी तरह स्थिर हो गए। वह दिन महाशिवरात्रि है। इसलिए संन्यासी महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात के रूप में देखते हैं।

योगिक परंपरा में इस दिन और रात को इतना महत्व इसलिए दिया जाता है, क्योंकि यह आध्यात्मिक साधक के लिए जबर्दस्त संभावनाएं प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक विज्ञान कई चरणों से गुजरने के बाद आज उस बिंदु पर पहुंच गया है, जहां वह प्रमाणित करता है कि हर वह चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं, वह सिर्फ एक ही ऊर्जा है जो लाखों रूपों में खुद को अभिव्यक्त करती है।

यह वैज्ञानिक तथ्य हर योगी के लिए एक जीवंत अनुभव है। योगी शब्द का मतलब है वह व्यक्ति जिसने अस्तित्व के ऐक्य को पहचान लिया है। महाशिवरात्रि की रात व्यक्ति को इसका अनुभव करने का एक अवसर देती है। योग से मतलब किसी खास अभ्यास या प्रणाली से नहीं है। असीमित को जानने की सारी इच्छाएं अस्तित्व में एकात्मकता को जानने की सारी चाहत ही योग है।

महाशिवरात्रि की रात सभी को इसका अनुभव करने का अवसर भेंट करती है। इसलिए जो लोग महाशिवरात्रि का व्रत निर्मल चित्त से करते हैं, वे बहुत ही शीघ्र शिवधाम पहुंच जाते हैं और उन्हें मुक्ति प्राप्त हो जाती है।

(लेखक रमेश सर्राफ धमोरा स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close