मातृभाषा को जानने के लिए लोककथा का अनुशीलन जरूरी : विभा रानी
नई दिल्ली, 22 फरवरी (आईएएनएस)| मैथिली साहित्यकार और रंगकर्मी विभा रानी ने कहा कि अपनी मातृभाषा को जानने के लिए लोक कथा का अनुशीलन और परंपराओं को जानना बेहद जरूरी है।
उन्होंने कहा कि साहित्य लेखन और रंगकर्म ने उनको कैंसर जैसी घातक बीमारी से उपजी निराशा से उबरने में मदद की। विभा रानी मैथिली साहित्य महासभा की पांचवीं वार्षिक संगोष्ठी में बोल रही थी। इस संगोष्ठी का आयोजन मातृभाषा दिवस के मौके पर यहां किया गया था। कार्यक्रम में वह मुख्य वक्ता थीं। उन्होंने जीवन संघर्ष में साहित्य की भूमिका पर प्रकाश डाला।
कार्यकम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अमरनाथ मिश्र ने कहा कि संघर्ष को जानने और समझने के लिए साहित्य का अध्ययन जरूरी है।
संगोष्ठी में मैथिली भाषा के साहित्यकार अजित आजाद ने कहा, “भीड़ का हिस्सा बनने से एकाकी जीवन को भी आप सुंदर तरीके से जी सकते हैं। जीवन की महत्ता तब होती है जब आप मृत्यु के बाद याद किए जाते हैं।”
साहित्य अकादमी के प्रतिनिधि बृजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि भाषा में कोई बंधन नहीं होनी चाहिए। बांग्लादेश में भाषा की लड़ाई के बाद से ही मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा, “उस समय बांग्लादेश पर उर्दू को जबरदस्ती थोपने की कोशिश की गई थी, जिसके विरोध में 21 फरवरी को ही आंदोलन हुआ था।”
उन्होंने कहा कि भाषा खत्म होने से एक संस्कृति का लुप्त हो जाती है, इसलिए भाषा को जीवित रखने की आवश्यकता है।
डीआरडीओ के अधिकारी और मैथिली में सुंदरकांड के अनुवादक भगवान मिश्र ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है। इसे आम लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है।
साहित्यकार मनोज शांडिल्य ने संस्कारित जीवन के लिए साहित्य पर बल दिया। उन्होंने कहा कि साहित्य के जरिए ही पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारों का स्थानांतरण होता है।
साहित्य अकादमी के चंदन कुमार झा ने कहा कि हर काल में साहित्य का रंग रूप बदलता है। विचारों के साथ ही अनवरत साहित्य में बदलाव आया है।
इस मौके पर पत्रकार विनीत उत्पल द्वारा संपादित पुस्तिका का भी विमोचन किया गया। इससे पहले कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और भगवती गीत से किया गया। कार्यक्रम में पुलवामा के शहीदों और प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह के लिए दो मिनट का मौन धारण किया गया।