कलाप्रेमी परिवार का संग्रह बना राष्ट्रीय खजाना (आईएएनएस विशेष)
हैदराबाद, 21 जनवरी (आईएएनएस)| चार मीनार और गोलकुंडा किला, मोतियों और महलों का नगर हैदराबाद स्थित सालार जंग संग्रहालय दुनिया में पुरातन चीजों और कलाओं का खजाना है, जो एक मुस्लिम कुलन परिवार के कला के कद्रदानों का संग्रह है।
नगर में प्रवेश करते ही मूसी नदी के तट पर स्थित सालार जंग संग्रहालय आपका यहां स्वागत करता है।
इस भव्य संग्रहालय के 40 गैलरियों से गुजरते हुए पर्यटकों को अतीत के समृद्ध अभिजात वर्ग के इतिहास और संस्कृति का दीदार होता है। भारत के तीसरे सबसे बड़े संग्रहालय में अनुपम प्राचीन कलाकृतियां देखने को मिलती हैं।
दुनिया में एक व्यक्ति द्वारा संग्रहित पुरातन वस्तुओं के सबसे बड़े संग्रहालय कि रूप में प्रसिद्ध सालार जंग संग्रहालय असल में अभिजातों के एक परिवार की तीन पीढ़ियों का संग्रह है, जिन्होंने हैदराबाद के निजामों के प्रधानमंत्री रहे। सालार जंग परिवार दुनियाभर से कलात्मक वस्तुओं के संग्रह के लिए चर्चित रहा है। यह परंपरा सालार जंग प्रथम नवाब मीर तुराब अली खान के जमाने से आरंभ हुई। उनके उत्कृष्ट संग्रहों में 1876 में रोम से उनके द्वारा लाई गई घूंघट में रेबेका की संगमरमर की मोहक प्रतिमा शामिल है।
सालार जंग द्वितीय मीर लैक अली खान का निधन 26 साल की उम्र में हो गया था। सालार जंग तृतीय नवाब मीर यूसुफ अली खान ने ज्यादातर कलाकृतियों का संग्रह किया। वह कला के कद्रदान थे। सन् 1914 में निजाम के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने दुनिया के विभिन्न हिस्सों से कलाकृतियों का संग्रह करने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी।
करीब 40 साल तक उनके द्वारा संग्रहित कीमती और दुर्लभ वस्तुएं सालार जंग संग्रहालय में मिलती हैं, जोकि इतिहास में रुचि रखने वाले और कला से आसक्ति रखने वाले विद्यार्थियों के लिए काफी रोचक व महत्वपूर्ण हैं।
सालार जंग परिवार के वारिस और सालार जंग संग्रहालय बोर्ड के सदस्य नवाब एहतेराम अली खान ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “उन्होंने कभी अपने कभी अपना धन अनावश्यक चीजों पर खर्च नहीं किया और न कभी बड़ी पार्टियों या गीत-संगीत के कार्यक्रमों में गए। उन्होंने अपने पैसे कला की दुर्लभ वस्तुएं खरीदने में खर्च किए। यही कारण है कि हजारों वर्षो की चीजें उनके दीवान देवड़ी महल में संजोई हुई थी। उनको ज्यादा से ज्यादा दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह करने की सनक थी। एक समय ऐसा आया कि उनको लगा कि उनके महल में कुछ रखने के लिए जगह नहीं बच गई है तो उन्होंने उसे दूसरे महल में स्थानांतरित करने की योजना बनाई, लेकिन इस योजना को अमलीजामा पहनाने से पहले ही उनका निधन हो गया।”
यूसुफ अली कुंवारे ही 1949 में इस दुनिया से चल बसे। उसके बाद दीवान देवड़ी में एक संग्रहालय बनाया गया, जिसमें संग्रहित कलाकृतियां रखी गईं और इसका नाम सालार जंग संग्रहालय रखा गया, क्योंकि इस परिवार के लोग कला के कद्रदान रहे हैं।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 16 दिसंबर, 1951 को इस संग्रहालय को जनता के लिए खोल दिया।
संग्रहालय की देखरेख 1958 तक सालार जंग स्टेट कमेटी द्वारा की जा रही थी। उसके बाद सालार जंग परिवार ने पूरा संग्रह भारत सरकार को दान कर दिया।
एहतेराम अली खान के दादा नवाब मीर तुराब यार जंग सालार जंग तृतीय के भतीजे थे। खान ने कहा, “यह संग्रह एक न एक दिन अंशधारकों के बीच बांटा जाता और इसकी बिक्री भी हो सकती थी, जिससे यह देश से बाहर भी जा सकता था। महत्वपूर्ण बात यह कि यह भारत में एक संग्रहालय में ये सारी चीजें संजोई हुई।”
सन् 1961 में संसद द्वारा पास एक कानून के द्वारा सालार जंग संग्रहालय को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया और उसके बाद से इसका प्रबंधन प्रदेश के राज्यपाल की अध्यक्षता में एक बोर्ड द्वारा किया जाता है। 1968 में संग्रहालय को मूसी नदी के तट पर नवनिर्मित भवन में स्थानांतरित किया गया।