IANS

भाजपा में कमजोर होने लगे शिवराज!

भोपाल, 13 जनवरी (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश की सियासत में बीते डेढ़ दशक में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब जो चाहा, वही हुआ। जिसे चाहा पार्टी की प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनवाया और जिसे चाहा, उसे राज्य की सियासत से बाहर कर दिया, मगर बीते माह सत्ता छिनते ही पार्टी के लोगों ने उनकी हैसियत सीमित कर दी है। अब वे जो चाहते हैं वह होता ही नहीं है।

पूर्व मुख्यमंत्री राज्य की सियासत में ही सक्रिय रहना चाहते थे और यही कारण है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद शिवराज ने अपने पहले ही बयान में साफ तौर पर ऐलान किया था, “मैं केंद्र में नहीं जाऊंगा, मध्य प्रदेश में जिऊंगा और मध्य प्रदेश में ही मरूंगा।”

शिवराज के इस बयान को एक माह का वक्त भी नहीं गुजरा था कि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने का संदेश मिल गया है।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, शिवराज खुद नेता प्रतिपक्ष या अपने चहेते को यह जिम्मदारी दिलाना चाहते थे, मगर ऐसा हुआ नहीं। कभी शिवराज के खिलाफ सीधी अदावत रखने वाले गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया।

विधानसभा चुनाव में मिली हार और उसके बाद दिए गए बयानों के बाद शिवराज विधानसभा के पहले सत्र में पूरी तरह सक्रिय दिखे, मगर पार्टी ने इसी बीच उन्हें उपाध्यक्ष बना दिया। इस पर कांग्रेस की ओर से तंज भी कसे गए। राज्य के जनसंपर्क मंत्री पी.सी. शर्मा ने कहा कि ‘राज्य से टाइगर को निष्कासित कर दिल्ली भेज दिया गया।’

शर्मा का बयान शिवराज के उस बयान को लेकर आया, जिसमें उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा था, “आप लोग चिंता न करें, क्योंकि टाइगर अभी जिंदा है।”

भाजपा के तमाम नेता शिवराज को यह जिम्मेदारी सौंपे जाने को अहम मान रहे हैं। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने भी शिवराज को इस बड़ी जिम्मेादारी मिलने पर बधाई दी है। वहीं राज्य को कोई नेता इस नियुक्ति पर कुछ ज्यादा बोलने को तैयार नहीं है।

राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का कहना है कि राज्य में भाजपा में बीते डेढ़ दशक में वही हुआ जो शिवराज ने चाहा, मगर अब हालात बदले हैं, उनके कई फैसले पार्टी को रास नहीं आए, इन स्थितियों में शिवराज को राज्य में ही कमजोर करने की कोशिश शुरू हुई है। इसकी शुरुआत नेता प्रतिपक्ष के चुनाव, फिर उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दिए जाने से हुई है। आने वाले दिनों में और भी कई बड़े फैसले हो सकते हैं, जो शिवराज की मर्जी के खिलाफ माने जाएंगे।

राज्य में शिवराज की राजनीतिक स्थिति का आकलन करें तो पता चलता है कि बीते डेढ़ दशक में पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष वही बना, जिसे शिवराज ने चाहा। प्रभात झा तमाम कोशिशों के बाद भी दोबारा अध्यक्ष नहीं बन पाए और उन्होंने कहा था कि यह तो परमाणु परीक्षण जैसा हो गया, जिसकी उन्हें खबर तक नहीं लगी। इसी तरह राज्य का प्रभारी वही बना, जिसे शिवराज ने चाहा, मगर अब हाल, हालात और हवा बदल गई लगती है।

शिवराज के करीबी सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहते, मगर पार्टी उनकी इस मर्जी को भी मानने के मूड में नहीं हैं, पार्टी अब पूरी तरह शिवराज को केंद्र की राजनीति में ले जाने का मन बना चुकी है, जो शिवराज की मर्जी के विपरीत है। इन हालात में आने वाले दिन भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं।

 

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