बांग्लादेश : चुनाव में अवामी लीग की एकतरफा जीत, विपक्ष की दोबारा मतदान की मांग
ढाका, 31 दिसम्बर (आईएएनएस)| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग (एएल) ने आम चुनावों में एकतरफा जीत दर्ज की है और हसीना बतौर प्रधानमंत्री नए कार्यकाल के लिए तैयार हैं। आम चुनाव के लिए रविवार को मतदान हुआ था। यह चुनाव हिंसा और बड़े पैमाने पर धांधली के आरोपों से घिरा रहा।
अवामी लीग ने 300 सीटों में 288 संसदीय सीटों पर जीत दर्ज कर ली है जिसके बाद हसीना प्रधानमंत्री पद पर अपने चौथे कार्यकाल के लिए तैयार हैं।
‘बीडीन्यूज24 डॉट कॉम’ की रिपोर्ट के अनुसार, जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अगुवाई में विपक्षी गठबंधन ने सिर्फ सात सीटें ही जीती हैं और हिंसा, धमकियों और धांधली के आरोप का हवाला देते हुए मतदान में धोखाधड़ी का आरोप लगाया है।
बांग्लादेश की संसद में कुल 350 सीटें हैं जिनमें से 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने इस चुनाव को ‘देश के साथ क्रूर मजाक’ बताते हुए कहा कि पार्टी का पांच साल पहले आम चुनाव से दूर रहने का फैसला गलत नहीं था।
उन्होंने कहा, “इस तथाकथित भागीदारी चुनाव ने देश को लंबे समय के लिए नुकसान पहुंचाया है। कई लोग सोचते हैं कि बीएनपी का 2014 के चुनाव में शामिल न होना गलती थी। आज के चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि वह गलत निर्णय नहीं था।”
300 सीटों में से 221 सीटों के परिणाम पर ‘अनियमितता’ के संदेह जताए जा रहे हैं।
विपक्षी जातीय ओइक्या फ्रंट ने भी परिणामों को अस्वीकार करते हुए दोबारा मतदान की मांग की है। गठबंधन प्रमुख कमाल हुसैन ने कहा, “हम चुनाव आयोग से इस हास्यास्पद परिणाम को तुरंत रद्द करने का आग्रह करते हैं।”
उन्होंने कहा, “हम चुनाव आयोग से तटस्थ सरकार के तहत नए चुनाव कराने का आह्वान करते हैं।”
हसीना सरकार पर चुनाव के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन के भी आरोप लगे। रविवार को सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थकों और विपक्ष के बीच में हुए संघर्ष में कम से कम 17 लोगों की मौत हुई थी।
चुनावों के दौरान हिंसा को रोकने के लिए देश भर में सेना की तैनाती की गई थी।
ह्यूमन राइट्स वॉच साउथ एशिया की निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने ट्विटर पर कहा कि मतदाताओं के उन्हें धमकी देने के आरोप, विपक्षी पोलिंग एजेंटों पर प्रतिबंध और कई उम्मीदवारों द्वारा फिर से मतदान की मांग के मद्देनजर चुनाव की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।