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संसद, सड़क और सर्वोच्च न्यायालय ने लिखी नई इबारत

नई दिल्ली, 31 दिसम्बर (आईएएनएस)| देश में वर्ष 2018 को एक ऐतिहासिक वर्ष के रूप में देखा जाएगा, जहां संसद, सड़क, सोशल मीडिया और सर्वोच्च न्यायालय सबने ही अपनी नई इबारत लिखी।

संसद में जहां सरोगेसी व तीन तलाक विधेयक (लोकसभा में पारित) का मुद्दा गर्माया रहा, वहीं इस साल की शुरुआत में आठ साल की मासूम कठुआ पीड़िता को इंसाफ दिलाने के लिए लोग सड़कों पर उतरे। सोशल मीडिया पर अफवाहों की वजह से बुलंदशहर दहल उठा। वहीं, अलग अलग हिस्सों में हिंसा पर उतरी भीड़ ने लोगों को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिए। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी सर्वोच्चता कायम रखते हुए आधार को सशर्त हरी झंडी, समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर, सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटाने और व्यभिचार कानून को खत्म करते हुए लोगों को राहत दी।

देश के नीतिनिर्माताओं ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पहल की, जिसमें सबसे पहले तीन तलाक और सरोगेसी से संबंधित विधेयकों को पारित कर गरीब व असहाय महिलाओं को कानून के सहारे मजबूत बनाने की कोशिश की गई। लोकसभा में सरोगेसी (नियामक) विधेयक, 2016 ध्वनिमत से पारित हो गया। यह विधेयक सरोगेसी (किराए की कोख) के प्रभावी नियमन को सुनिश्चित करेगा, व्यावसायिक सरोगेसी को प्रतिबंधित करेगा और बांझपन से जूझ रहे भारतीय दंपतियों की जरूरतों के लिए सरोगेसी की इजाजत देगा।

लोकसभा में हाल ही में मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018 भी पारित हो गया, जिसके अंतर्गत तीन तलाक या तलाक-ए-इबादत को दंडनीय अपराध ठहराया गया है और इसके अंतर्गत जुर्माने के साथ-साथ तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है। विधेयक को सितंबर में लाए गए अध्यादेश के स्थान पर लाया गया है, जिसके अंतर्गत पति द्वारा ‘तलाक’ बोलकर तलाक देने पर पाबंदी लगाई गई है।

इसके अलावा लोकसभा ने आपराधिक कानून संशोधन विधेयक को पारित किया गया। आपराधिक कानून में इस बदलाव से अब 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म के दोषियों को मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है।

सड़क की बात करें, तो इस साल की शुरुआत में जम्मू से सटे कठुआ में एक आठ साल की बच्ची के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। दुष्कर्म के बाद बच्ची की क्रूर हत्या ने लोगों को सड़कों पर उतरकर देश-व्यापी विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर कर दिया। बच्चों के साथ दुष्कर्म के बढ़ते मामलों को लेकर सख्त कानून बनाने की मांग उठने उठने लगी।

इस साल 19 अक्टूबर को दशहरे के मौके पर अमृतसर के जोड़ा स्थित रेलवे क्रॉसिंग के पास रावण दहन के दौरान ट्रेन लोगों को रौंदती हुई निकल गई थी। इस घटना में 60 लोगों की मौत हुई थी, जिसके बाद लोगों ने सड़कों पर उतरकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ गुस्सा जाहिर करते हुए प्रदर्शन किया।

अमरीका से शुरू हुए मीटू मुहिम ने भारत में फिल्म अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के साथ यहां दस्तक दी। तनुश्री ने दस साल पुराने एक मामले में नाना पाटेकर के खिलाफ यौन-उत्पीड़न के आरोप लगाए। इसके बाद यह चिंगारी महज कुछ ही समय में फैल गई और फिल्म, कला, मीडिया और राजनीति से जुड़ी कुछ नामचीन हस्तियों को अपनी चपेट में ले लिया। आलम यह हुआ कि यौन शोषण के आरोपों से घिरने के केंद्रीय मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा।

सड़कों पर से उठी आवाजों को सुनते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस साल कई अहम फैसले दिए जिसमें समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करना शामिल है। प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने अपने फैसले में धारा 377 को रद्द कर दिया गया। अदालत ने धारा 377 को अतार्किक और मनमाना बताते हुए एलजीबीटी समुदाय के पास भी समान अधिकार होने की बात कही।

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े विवादित कानून की सुनवाई करते हुए व्यभिचार के लिए दंड का प्रावधान करने वाली धारा को सर्वसम्मति से असंवैधानिक घोषित कर दिया। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपने फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इस फैसले से साबित हो गया कि पति महिला का मालिक नहीं है और महिलाओं के साथ असमान व्यवहार करने वाला कोई भी प्रावधान संवैधानिक नहीं हो सकता।

इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने आधार को ‘सशर्त’ अनिवार्य कर दिया। अदालत ने 26 सितंबर को कुछ शर्तों के साथ आधार को वैध करार दिया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आधार समाज के हाशिए वाले वर्ग (गरीबों) को अधिकार देता है और उन्हें एक पहचान देता है, आधार अन्य आईडी प्रमाणों से भी अलग है क्योंकि इसे डुप्लीकेट नहीं किया जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण आदेशों में सबरीमाला में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी शामिल है। अदालत ने 10 से 50 साल तक की महिलाओं को सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा मंदिर में पूजा करने का अधिकार दिया, जिसका कुछ धार्मिक संगठनों व राजनीतिक दलों ने यह कहते हुए विरोध किया कि यह आस्था का विषय है।

इसके अतिरिक्त कुछ महत्वपूर्ण फैसलों में

* न्यायालय द्वारा संवैधानिक महत्व वाले मुद्दों की सुनवाई के सीधे प्रसारण को मंजूरी देने।

* एससी-एसटी एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी और एफआईआर पर रोक हालांकि केंद्र ने पांच महीने में ही कानून संशोधित कर फैसले को पलट दिया।

 

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