मालदीव, श्रीलंका के राजनीतिक घटनाक्रम, रोहिंग्या संकट भारत के लिए रहे मुद्दे (सिंहावलोकन-2018)
नई दिल्ली, 30 दिसम्बर (आईएएनएस)| मालदीव और श्रीलंका में राजनीतिक घटनाक्रम, म्यांमार से आया रोहिंग्या शरणार्थी संकट, नेपाल के नए नेतृत्व के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश और अफगानिस्तान की स्थिति ने भारत को इस वर्ष अधिकतर समय पड़ोस की कूटनीति के साथ व्यस्त रखा। नई दिल्ली की पड़ोस पहले की नीति इस वर्ष भूटान के साथ सकारात्मक वार्ता के साथ समाप्त हुई। भूटान के नए प्रधानमंत्री लोतेय शेरिंग ने अपने पहले आधिकारिक विदेशी दौरे के लिए भारत को चुना।
भारत-भूटान संबंधों में गर्माहाट बरकरार रखते हुए, शेरिंग के साथ शुक्रवार को बैठक के बाद मोदी ने भूटान की 12वीं पंचवर्षीय योजना (2018-2023) के लिए नई दिल्ली की ओर से 4500 करोड़ रुपये देने की घोषणा की।
भारत, भूटान का अग्रणी विकास सहयोगी है। भारत और भूटान के बीच सुरक्षा, सीमा प्रबंधन, व्यापार, अर्थव्यवस्था, पनबिजली, विकास सहयोग और जल संसाधन जैसे क्षेत्रों में कई संस्थानिक तंत्र सक्रिय हैं।
शेरिंग ने अपनी तरफ से मोदी को भूटान आने और भारत के सहयोग से बन रहे 720 मेगावाट के मांगडेछु पन-बिजली परियोजना का उद्घाटन करने का निमंत्रण दिया। इस पनबिजली परियोजना का काम लगभग पूरा हो गया है।
भारत पहले ही भूटान में कुल 1,416 मेगावाट क्षमता के साथ तीन पनबिजली परियोजनाओं को शुरू कर चुका है। करीब तीन-चौथाई ऊर्जा भारत को निर्यात की जाती है और बाकी का घरेलू खपत में इस्तेमाल किया जाता है।
पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में इस वर्ष मालदीव के साथ संबंध शुरुआत में काफी खराब हो गए थे। तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने भारत से दूरी बनाकर चीन से नजदीकी बना ली और फरवरी में वहां आपातकाल लगा दिया।
यामीन ने यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद उठाया, जिसमें न्यायालय ने नौ विपक्षी नेताओं समेत मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति को रिहा करने के आदेश दिए थे।
उस समय प्रत्यर्पित जीवन बिता रहे भारत समर्थक नाशीद ने वहां न्यायाधीशों, पूर्व राष्ट्रपति मैमून अब्दुल गयूम समेत राजनीतिक बंदियों की रिहाई सुनिश्चित करवाने के लिए नई दिल्ली से ‘सेना के समर्थन के साथ’ एक दूत भेजने का आग्रह किया था।
भारतीन सेना हालांकि वहां नहीं गई, लेकिन नई दिल्ली वहां सभी लोकतांत्रिक संस्थानों को बहाल करने की अपनी मांग उठाती रही।
यह संकट सितंबर में तब समाप्त हुआ, जब संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में यामीन को हराया।
मोदी 17 नवंबर को सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे, जिसके बाद सोहिल इस महीने की शुरुआत में अपने पहले विदेशी दौरे के तहत भारत आए।
दोनों देशों के बीच यहां द्विपक्षीय वार्ता के बाद, नई दिल्ली ने मालदीव को 1.4 अरब डॉलर का ऋण दिया और दोनों पक्षों ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाकर हिंद महासागर में शांति व सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता जताई।
श्रीलंका में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने अक्टूबर में रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया और महिंद्रा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया, जिसके बाद वहां राजनीतिक उथल-पुथल का दौर शुरू हो गया।
विक्रमसिंघे की युनाइटेउ नेशनल फ्रंट पार्टी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री को पद से हटाना ‘असंवैधानिक’ है और कहा कि नई कार्यवाहक सरकार अपना कार्यभार नहीं संभाल सकती क्योंकि विश्वास मत प्रस्ताव में इसे हराया जा चुका है।
दो महीने तक चला राजनीतिक गतिरोध बढ़तों प्रदर्शनों के बीच 15 दिसम्बर को राजपक्षे के पीछे हटने और उसके अगले दिन विक्रमसिंघे के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद समाप्त हो गया।
यहां सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली ने श्रीलंका में हो रहे इन बदलावों पर कोई प्रतिक्रिया देने से खुद को दूर रखा।
भारत ने नेपाल के साथ भी अपने संबंधों को फिर से बेहतर करने की पहल की और के.पी.शर्मा ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने मई में वहां की यात्रा की।
मोदी के दौरे के दौरान, दोनों पक्ष वायु, भूमि, जल और लोगों के लोगों के संबंध के जरिए अपने व्यापारिक और आर्थिक संबंधों में बढ़ोतरी करने पर सहमत हुए। मोदी ने घोषणा करते हुए कहा कि भारत, नेपाल के विकास के लिए हमेशा शेरपा की तरह काम करता रहेगा।
भारत और नेपाल के बीच संबंधों में यह गर्माहट बहुत जरूरी पहल थी, क्योंकि ओली के इससे पहले के कार्यकाल में अक्टूबर 2015 से अगस्त 2016 के बीच सीमा पर हुई नाकाबंदी के लिए भारत को ठहराया गया था, जिससे नेपाल की अर्थव्यव्स्था को काफी हानि हुई थी।
यह भी माना जा रहा था कि ओली का झुकाव भारत से ज्यादा चीन की ओर है।
पूर्वी क्षेत्र में, रोहिंग्या शरणार्थियों के संकट का असर भारत पर भी पड़ा।
म्यांमार के रखाइन प्रदेश में अगस्त 2017 में अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय के विरुद्ध सेना की कार्रवाई की वजह से लगभग 730,000 रोहिग्याओं को म्यांमार छोड़ने और बांग्लादेश में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। इन लोगों को म्यांमार अपना नागरिक नहीं मानता है।
भारत एकमात्र देश है, जिसकी सीमा म्यांमार और बांग्लादेश दोनों से मिलती है, इसलिए इस संकट में नई दिल्ली की भूमिका काफी अहम हो गई थी।
बांग्लादेश में शरणार्थियों के लिए मानवीय सहायता भेजने के अलावा, भारत ने पिछले वर्ष रखाइन राज्य के साथ एक विकास कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किया, जो म्यांमार सरकार को विस्थापितों के लिए आवासीय बुनियादी ढांचे को बनाने में सहयोग करेगा।
इस महीने की शुरुआत में भारत ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की म्यांमार की यात्रा के दौरान ऐसी ही 50 आवासीय इकाईयों को म्यांमार के सिपुर्द किया। म्यांमार के नेतृत्व ने शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए नई दिल्ली की भूमिका की सराहना भी की।
यहां सूत्रों के अनुसार, भारत सतर्कता के साथ इस मुद्दे पर सोची समझी स्थिति अपना रहा है।
जहां तक बात द्विपक्षीय संबंधों की है, भारत, म्यांमार के एक महत्वपूर्ण विकास सहयोगी साझेदार के रूप में काम कर रहा है और इसके साथ ही भारत वहां कई आधारभूत परियोजनाओं पर भी काम कर रहा है।
बांग्लादेश के साथ, भारत के संबंध प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल में मधुर बने हुए हैं।
इस वर्ष ऊर्जा आपूर्ति, रेलवे कनेक्टिविटी से संबंधित तीन भारत समर्थित परियोजनाएं बांग्लादेश के लोगों के लिए समर्पित की गईं।
अफगास्तिान में स्थिति लगातार भारत का ध्यान खींचती रही। अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को लेकर नई दिल्ली का रुख रहा है कि वहां शांति प्रक्रिया अफगाननीत और अफगान प्रभुत्व वाली होने चाहिए और भारत वहां लगातार पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।
सूत्रों के अनुसार, सभी देश हालांकि वहां शांति प्रक्रिया में भारत की भागीदारी को महत्वपूर्ण मानते हैं।