‘देश में अब बेटों से अधिक बेटियों को लिया जा रहा है गोद’
चौकीदार के साथ आस-पड़ोस के लोग बच्ची को लेकर मुकुंदगढ़ के सरकारी अस्पताल पहुंचे, जहां से बच्ची को झुंझुनू के बीडीके अस्पताल रेफर किया गया। फिलहाल बच्ची इस अस्पताल में भर्ती है और उसकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है। बच्ची का इलाज कर रहे शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. वी.डी. बाजिया ने बताया कि बच्ची को जन्म के चार से पांच घंटे बाद ही लावारिस छोड़ा गया है और यह भी नहीं लग रहा है कि इसकी डिलिवरी प्रशिक्षित चिकित्सा स्टाफ व चिकित्सक द्वारा कराई गई है।
चाहे छह डिग्री की ठंड में मां ने बच्ची को छोड़ दिया हो लेकिन बीडीके अस्पताल के स्टाफ ने अपना नाता बच्ची के साथ जोड़ लिया है। बच्ची की देखभाल के लिए न केवल एक विशेष टीम लगाई गई है बल्कि बच्ची के नामकरण से लेकर उसकी देखभाल करने तक की योजना बनाई जा रही है। बच्ची को अस्पताल में ही नाम देकर पूरी तरह स्वस्थ किया जाएगा और फिर जयपुर भेजा जाएगा।
बच्ची को गोद लेने वालों के फोन भी बजने लगे हैं। चिकित्सकों के अलावा मीडियाकर्मियों के पास ऐसे एक दर्जन से अधिक लोगों के फोन आए हैं, जिन्होंने बच्ची को गोद लेने की मंशा जाहिर की है लेकिन केंद्र सरकार के नए नियम-कानून के मुताबिक अब बच्ची को गोद लेने के लिए केंद्रीय दत्तक ग्रहण एजेंसी को आवेदन करना होगा, इसके बाद ही बच्ची को गोद लिया जा सकेगा।
झुंझुनू जिले के ही भानीपुरा गांव में कुछ माह पहले एक नवजात बच्ची को कोई शिव मंदिर के बाहर चबूतरे पर छोड़ गया। सुबह मंदिर के पुजारी को यह बच्ची मिली। पुलिस की सहायता से उस बच्ची को झुंझुनू के बीडीके अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बीडीके अस्पताल के स्टाफ ने बच्ची को लक्ष्मी नाम दिया।
बुहाना की सुनीता का नवजात बेटा भी अस्पताल में भर्ती था। उसे दूध पीने में तकलीफ थी। सुनीता ने बताया उसके तीन बेटे हैं, बेटी चाहती थी लेकिन चौथा भी बेटा हो गया। अस्पताल में लक्ष्मी के बारे में सुना तो उसे ही बेटी मान उसे अपना दूध पिलाया। सुनीता ने कहा कि मैं तो चाहती थी कि लक्ष्मी मुझे ही मिल जाए। उस वक्त सुनीता सहित सात-आठ दंपतियों ने अस्पताल में लक्ष्मी को गोद लेने की इच्छा जताई थी।
मुरादाबाद से करीब 15 किलोमीटर दूर झाड़ियों में किसी बच्ची की रोने की आवाज सुनकर गांव में रहने वाली जायदा वहां पहुंची तो देखा कि एक मासूम जोर-जोर से रो रही है। जायदा ने बच्ची को उठाया और गांव की शब्बो को साथ बच्ची को लेकर पुलिस थाने पहुंची। शब्बो ने पुलिस वालों से कहा कि बच्ची को उसको दे दें। लेकिन, पुलिस ने मना कर दिया। बच्ची को बाल कल्याण समिति मुरादाबाद को सौंप दिया गया था जहां बच्ची को गोद लेने के लिए 250 से ज्यादा लोगों ने इच्छा जताई।
हरियाणा में भी बेटियों के प्रति सोच मे बदलाव आ रहा है। ऐसे समाज में जहां बेटों की चाह में बेटियों को कोख में ही मार देने की घटनाएं भी होती रहती हैं। इस माहौल के बीच सोच में बदलाव की रोशनी दिख रही है। हरियाणा में एक दंपति ने बेटा पैदा होने पर उसे अन्य दंपति को गोद दे दिया और उनकी बेटी को अपना लिया।
हिसार जिले के किरढान गांव के अनूप सिंह और उनकी पत्नी सीता ने अपने नवजात बेटे को किसी और दंपति को गोद दे दिया और उनकी बेटी को गोद ले लिया। इस दंपति ने बेटी की चाह में दूसरे बच्चे को जन्म देने का फैसला लिया। लेकिन इसे बेटा ही पैदा हुआ। इसके बाद इस दंपति ने अपने नवजात बेटे के बदले बेटी गोद ले ली। उनका बेटा जिनकी गोद में गया है, उनकी भी चाहत पूरी हो गई।
दूसरा परिवार हिसार के गांव किशनगढ़ का रहने वाला है। दोनों परिवारों में आपस में पहले से कोई रिश्तेदारी व जान-पहचान नहीं थी। अस्पताल में ही दोनों परिवारों का परिचय हुआ मगर आज दोनों परिवारों के बीच गहरा रिश्ता कायम हो गया है।
उपरोक्त उदाहरण इस बात को दर्शाते हैं कि आज लोगों की सोच में तेजी से बदलाव आ रहा है। बेटी बचाओ और देश बचाओ वाले नारे पर लोग अब अमल करने लगे हैं जिस कारण देश में अब बेटी को गोद लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है।
सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश में अब लोग नई सोच के तहत बेटों के बजाय बेटी को गोद ले रहे हैं। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि पिछले छह सालों में जितने बच्चे गोद लिए गए हैं, उनमें तकरीबन 60 फीसदी लड़कियां है। रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा बच्चियां महाराष्ट्र में गोद ली गईं।
बच्चियों को गोद लेने के मामले में महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक का स्थान आता है। कर्नाटक में कुल 286 बच्चे गोद लिए गए, इनमें 167 लड़कियां थीं। कर्नाटक के बाद तीसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल का नाम आता है। कारा के मुताबिक महाराष्ट्र बच्चियों को गोद लेने के मामले में सिर्फ इसलिए आगे नहीं है क्योंकि यह राज्य बड़ा है, बल्कि इसका एक बड़ा कारण राज्य में अधिक गोद देने वाली संस्थाओं का होना भी है।
अब समाज में लड़कियों को लेकर नजरिया बदल रहा है। लोगों को लगने लगा है कि बच्चियों को संभालना ज्यादा आसान है। इन आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरीखे राज्यों के भी परिवार लड़कियों को गोद लेना अधिक पसंद कर रहे हैं जहां पुरुषों और महिलाओं के लिंग अनुपात में एक बड़ी खाई है।
साक्षरता की दृष्टि से अग्रणीय झुंझुनू जैसे जिले में जहां एक तरफ बेटी के जन्म लेते ही मरने के लिए लावारिस छोड़ने की घटना सामने आती है वहीं झुंझुनू जिले की मोहना सिंह व प्रिया शर्मा जैसी बेटियां भी हैं जो आज देश में फाईटर प्लेन उड़ा कर जिले का पूरे देश में मान बढ़ा रही हैं।
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के झुंझुनू, सीकर, चूरू सहित अन्य कई जिलों में बेटियों की शादी के समय बेटों की तरह घोड़ी पर बैठा कर निकासी (बिंदौरी) भी निकाली जाने लगी है जो समाज में बेटियों के बढ़ते मान का द्योतक है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)