बेघरों और अशक्तों को शरण दे रहा यह ‘गुरुकुल’
गुरुग्राम, 25 नवंबर (आईएएनएस)| जब मानसिक रूप से अशक्त रिंकू की देखभाल उसकी अकेली मां (सिंगल मदर) नहीं कर पाई तो वह उसे भारत के सबसे तेजी से उभरते शहर और चमकदार शीशे से लैस सैकड़ों बहुराष्ट्रीय कंपनी के ठिकाने गुरुग्राम के बाहरी क्षेत्र में स्थित बंधवाड़ी गांव के एक बेघर आश्रयगृह ले गई।
जब छह माह की गर्भवती सरिता देवी को उसके पति ने ठुकरा दिया, तो उसे भी एक अदालत ने सभी के लिए खुले इसी आश्रयगृह में भेजा था।
अब दोनों के पास न केवल अपना एक घर है, बल्कि अर्थ सर्वाइवर फाउंडेशन (ईएसएफ) में अपना एक नया परिवार भी है। ईएसएफ को गुरुकुल भी कहा जाता है। 300 मानसिक रूप से कमजोर लोगों समेत उनके जैसे 450 बेघर भी गुरुग्राम की चमक-धमक से दूर यहां दो एकड़ में बसे गुरुकुल में रहते हैं।
इस गुरुकुल की स्थापना रवि कालरा (49) ने 2008 में की थी, जोकि पहले एक मार्शल आर्टिस्ट थे।
यहां पहुंचने के लिए संकड़े और उबर-खाबड़ रास्ते को पार करना पड़ता है।
दिल्ली में पुलिस इंस्पेक्टर रहे अपने पिता के सख्त आचरण से प्रभावित, कालरा ने ताइक्वांडो सीखी है।
पैसे कमाने के बाद, उन्होंने ‘सेवा’ के माध्यम से इसे समाज को लौटाने का मना बनाया। वह हमेशा से जरूरतमंदों के जीवनस्तर को उठाने के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्हें उनकी राह तब मिली जब उन्होंने एक भिखाड़ी के बच्चे को दिल्ली के एक व्यस्त सड़क पर कूड़ा उठाते देखा।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, “मैंने महसूस किया कि अगर मैं समाज के लिए कुछ अच्छा नहीं करूंगा तो.. अपने पैसे का तिरस्कार करूंगा। उसी समय मैंने सभी कुछ छोड़ने और अपनी जिंदगी को सेवा के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया।”
उन्होंने कहा, “घटना के कुछ महीनों बाद, मैंने अपना संगठन शुरू किया और उसके बाद मैंने ठुकराए गए वरिष्ठ नागरिकों, शारीरिक और मानसिक रूप से अशक्त, पीड़ित महिलाएं और असाध्य बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।”
इसी वजह से इस गुरुकुल में रिंकू जैसा मानसिक रूप से अशक्त और सरिता जैसी बेघर महिला रह पा रही है।
जब रिंकू (36) से उसके परिवार के बारे में पूछा गया तो उसने आनंद राव की ओर प्यार भरा इशारा किया। राव खुद ही शारीरिक रूप से अशक्त हैं लेकिन रिंकू की देखभाल अपने बेटे की तरह करते हैं।
राव (62) ने कहा, “हम यहां इसी तरह से कार्य करते हैं। यहां सभी का कोई न कोई दोस्त या साथी है जो उसकी देखभाल कर सके।”
गुरुकुल में, सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक एक डॉक्टर और तीन नर्स रहती हैं। यहां 450 निवासी पांच शयनगारों में रहते हैं, जिनमें से तीन महिलाओं और दो पुरुषों को लिए आवंटित हैं।
यहां मनोरंजन के लिए टीवी, किताब, अखबार और कैरम बोर्ड की भी सुविधाएं हैं।
अनाथ सरिता (27) को उसके पति ने छोड़ दिया था। जब वह पहली बार आश्रयगृह आई थी तब वह काफी डरी हुई थी।
उसने कहा, “मैंने सोचा मैं कैसे इस पागलघर में रहूंगी, लेकिन मेरे पास यहां के अलावा और कहीं जाने का विकल्प नहीं था। मैं अब इसके बारे में बहुत अलग सोचती हूं।”
सरिता ने कहा, “ये लोग अब मेरा परिवार बन गए हैं। मेरे पति मुझे वापस बुलाना चाहते हैं, लेकिन मैं अब उनके साथ नहीं जाना चाहती हूं।”
वह पहले एक घरेलू कामवाली थी और अब फाउंडेशन में एक कार्यकर्ता की तरह काम करती है।
अर्थ सर्वाइवर फाउंडेशन (ईएसएफ) बिना किसी सरकारी सहायता के चलाया जा रहा है। यहां रहने वाले 450 लोगों के लिए पर्याप्त बिछावन भी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद यहां के दरवाजे हमेशा बेघरों के लिए खुले रहते हैं।
संस्था के संस्थापक को भी यहां तक के सफर के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कालरा ने 15-20 लोगों के साथ दक्षिण दिल्ली के वसंतकुंज इलाके में अपनी सेवा शुरू की थी।
उन्होंने कहा, “उस जगह आग लग गई और हमें राजौरी गार्डन में कहीं और जाना पड़ा। हमारे वहां के केंद्र में पानी भर गया और हमें बंधवाड़ी आने से पहले कई जगहों को बदलना पड़ा। यहां मेरी अपनी जमीन थी।”
उन्होंने कहा, “गांव के लोगों ने शुरुआत में यह सोच कर इसकी इजाजत नहीं दी कि हम यहां पागल लोगों को ला रहे हैं। बाद में वह समझ गए कि हम अच्छा काम करने जा रहे हैं। आज गांव में सभी कोई इस जगह के बारे में जानता है।”
गुरुकुल में बीते तीन साल से रह रहे हर्ष गौतम एक दिव्यांग हैं। इसके बावजूद कालरा की अनुपस्थिति में वह संस्था के प्रशासनिक कार्यो को संभालते हैं।
गौतम को गैंग्रीन की वजह से अपने पैर गंवाने पड़े थे।
गौतम ने कहा, “मैंने इलाज में निजी सुरक्षा अधिकारी के तौर पर कमाए सारे रुपये फूंक दिए। गुरुकुल के लोगों ने मुझे सफदरजंग अस्पताल के बाहर से उठाया, जहां से मेरे पास जाने के लिए और कोई जगह नहीं था।”
गौतम ने कहा कि संस्था ने अब तक 5,000 लावारिश शवों का अंतिम संस्कार किया है।