IANS

छठ महापर्व देता पर्यावरण स्वच्छता का संदेश

 नई दिल्ली, 12 नवंबर (आईएएनएस)| बिहार और उत्तर प्रदेश का लोकपर्व छठ प्रकृति की अराधना का महापर्व है, जो पर्यावरण को स्वच्छ बनाने का संदेश देता है।

 अनादि काल से मनाए जाने वाले इस पर्व में धरती पर ऊर्जा का संचार करने वाले भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की जाती है। त्योहार से पहले नदी, तालाब, पोखर आदि जलाशयों की सफाई का काम शुरू हो जाता है।

छठ पर्व मनाने का साक्ष्य ऋग्वेद में मिलता है। छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक अथवा लोकजीवन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण और जीवनशैली के बीच के संबंधों को भी रेखांकित करता है। आज जब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘स्वच्छ भारत अभियान’ और ‘नमामि गंगे’ जैसे कार्यक्रम को लेकर जागरूकता मिशन चला रहे हैं, तो लोकपर्व छठ के महत्व का जिक्र करना अधिक प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि इस पर्व में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है और सफाई का पूरा कार्य सामूहिक जनभागीदारी से संपन्न होता है।

अब छठ पूजा न सिर्फ बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में होती है, बल्कि देश के उन सभी प्रांतों में छठ मनाया जाने लगा है, जहां प्रवासी पूर्वाचली स्थायी तौर पर निवास करते हैं। विदेशों में प्रवासी पूर्वाचली समुदाय छठ त्योहार मनाते हैं। मुंबई से लेकर मॉरीशस और अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया हर जगह छठ के घाट सजते हैं और व्रती सूर्यदेव को अघ्र्य देते हैं।

देश-विदेश के विभिन्न क्षेत्रों में लोग जिस तरह छठ पर्व मनानाया जाने लगा है, उससे लगता है कि अब यह भारतीय लोक संस्कृति की पहचान बन गया है। आज आप दुनिया के किसी भी कोने में छठ का नाम लीजिए, आपको बिना कुछ कहे भारतीय के रूप में पहचान लिया जाएगा। इस ²ष्टिकोण से छठ पूजा का उपयोग दुनियाभर में फैले भारतवंशियों को जोड़ने या फिर वर्तमान सांस्कृतिक कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए भी क्या जा सकता है।

भारतीय संस्कृति और समाज में धर्म-कर्म, पूजा, उपासना-पद्धति की व्यवस्था इस प्रकार से की गई है कि देवी-देवता के साथ-साथ यहां मानव एवं मानवेतर सत्ताओं को भी समान महत्व मिला है। यही कारण है कि यहां मनुष्य जीवन से जुड़े सभी पक्षों और जरूरतों को यथोचित सम्मान और आदर दिया जाता है।

भारत में जगतस्रष्टा ब्रह्मा, पालनकर्ता विष्णु और संहारकर्ता शिव समेत नाना देवों पूजा की जाती है, तो प्रकृति और पर्यावरण को भी पूजनीय माना गया है। इसलिए पर्वत-पहाड़, पेड़-पौधे, नदी-तालाब, सांप-बिच्छू और चंद्र-सूर्य आदि की पूजा होती है। इस संदर्भ में जहां तक सूर्य की पूजा का सवाल है, तो भारतीय विज्ञान एवं पौराणिक कथाओं में इसका विशेष महत्व रहा है।

सूर्य को संसार में ऊर्जा का मूल स्रोत माना गया है। भारतीय परंपरा में सूर्य की पूजा का उद्देश्य भी यही है कि इससे व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। प्राय: लोग अपनी दिनचर्या की शुरुआत सूर्य-पूजा से ही करते हैं। यह शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर ऊर्जा प्रदान करता है, जिसकी पुष्टि विज्ञान ने भी की है।

भारतीय पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने की षष्ठी को होने वाली छठ पूजा भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। यह बदलते हुए मौसम और पर्यावरण के सर्वथा अनुकूल पर्व है, जिसकी तैयारी की शुरुआत लोग ताल, तलैया, नदी, पोखर और तालाबों की सफाई से करते हैं। यह वही समय है जब सर्दी शुरू होती है और हमारे जीवन के लिए सूर्य की गर्मी का महत्व बढ़ जाता है।

कहा जाता है कि कोई डूबते सूर्य को प्रणाम नहीं करता, लेकिन छठ ही एक ऐसा पर्व है, जिसमें लोग सिर्फ उगते सूर्य को ही अघ्र्य नहीं देते, बल्कि वे डूबते सूर्य को भी अघ्र्य देते हैं।

लोकपर्व छठ का सांस्कृतिक महत्व के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है, क्योंकि षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है। इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (अल्ट्रा वॉयलेट रेज) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र होती हैं, इस कारण इसके संभावित कुप्रभावों से मानव जीवन की यथासंभव रक्षा करने का सामथ्र्य प्राप्त होता है।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार, चूंकि यह परिवर्तन कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छठे दिन होता है, इसलिए इसका नाम छठ रखा गया है। छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। कार्तिक मास के अलावा चैत्र में भी छठ का त्योहार मनाया जाता है।

इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात को भुलाकर लोग एक साथ जलाशयों में मनाते हैं। इस पर्व में अमीर-गरीब सबको मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद बनाना होता है। प्रसाद में भी मौसमी फल, ईख, कंद-मूल आदि की प्रधानता होती है।

इस लोकपर्व के केवल सफाई और स्वच्छता वाले पक्ष को ही महत्व दिया जाए तो निश्चित रूप से इसे स्वच्छता का ‘राष्ट्रीय पर्व’ कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। अब कई राज्यों में छठ का अवकाश भी होने लगा है और देश की राजधानी दिल्ली में इसके लिए अलग से बजट निर्धारित किया जाने लगा है।

(लेखक डॉ. बीरबल झा ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक व मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)

Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close