बाघ, गैंडे पर चीन के निर्णय से भारत में अवैध शिकार बढ़ेगा : विशेषज्ञ
नई दिल्ली, 2 नवंबर (आईएएनएस)| चीन द्वारा चिकित्सा व शोध के उद्देश्य के लिए बाघ की हड्डियों और गैंडे की सींग के इस्तेमाल से 25 साल पुराने प्रतिबंध को हटाने के परिणामस्वरूप संरक्षणवादियों में अवैध शिकार बढ़ने का भय पैदा होने लगा है।
संरक्षणवादियों ने भारत के वन्यजीवों की रक्षा के लिए कड़ी योजनाएं बनाने की बात कही है।
वन अधिकारियों का कहना है कि चीन के फैसले से वन्यजीव से बने उत्पादों की मांग में वृद्धि होगी। यह भारतीय जानवरों के लिए खतरा है। भारत 70 फीसदी जंगली बाघों व 80 फीसदी एक सींग वाले गैंडे का वास स्थान है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से अफ्रीकी देशों पर भी प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि, चीन ने करीब 6,000 बाघ फार्म बनाए हैं, लेकिन उनके उत्पादों की उतनी मांग नहीं, जितनी कि अवैध शिकार से बनने वाले उत्पादों की है।
वन्यजीव संरक्षणकर्ता व वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसअई) की संस्थापक बेलिंडा राइट ने आईएएनएस से कहा, “जंगल की तुलना में फार्म के बाघों को प्राप्त करना बेहद खर्चीला है। यह इस सच्चाई को बताता है कि उपभोक्ता मजबूती व शक्ति के लिए जंगली बाघों को तरजीह देते हें और मांग करते हैं।”
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अधिकारी के अनुसार, चीन मौजूदा समय में गैंडे के फार्म बनाने पर काम कर रहा है और उन्हें नेपाल व दूसरे देशों से खरीदने की योजना बना रहा है।
राइट कहती हैं कि चीन की घोषणा से वन्यजीव प्रचारकों की सालों से वन्यजीव सामनों की मांग पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास को धक्का लगा है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और महासचिव रवि सिंह का कहना है, “भारत को अपने बाघों व गैंडों की रक्षा करने की जरूरत है और भारत ऐसा करेगा। लेकिन इसके लिए हमें सख्त योजना बनाने की जरूरत है।”
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने चीन से अपने फैसले पर फिर से विचार करने का आग्रह किया है।
बाघ की हड्डियों व दूसरे भागों का इस्तेमाल चीन की पारंपरिक दवाओं में होता है, जिनके गुणों की पुष्टि चिकित्सा रूप से नहीं हुई है। चीन के गोरखधंधा कारोबारी बाघ के अलावा गैंडों, व दूसरे कई जानवरों जैसे छिपकली, तेंदुआ व हिम तेंदुआ व भालू को भी तरजीह देते हैं।