SUCCESS STORY : एक गाँव जहां माँ पालती हैं सैकड़ों अंजान बच्चे
अनाथ, बेघर बच्चों के 'घर' के पूरे हुए 25 साल
महाराष्ट्र के लातूर में 29 सितंबर, 1993 को आए विनाशकारी भूकंप के बाद पीड़ितों की मदद के लिए 1994 में ‘एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेज लातूर’ की स्थापना की गई थी। इस आपदा के कारण अनाथ और बेघर हुए बच्चों को एक ऐसा ‘घर’ मिला, जहां उनके विकास के साथ साथ उन्हें ज़िम्मेदार नागरिक बनाया जा रहा है।
भूकंप प्रभावित लातूर क्षेत्र में एसओएस इंडिया ने शुरू की गई लगातार सहायता और प्रतिबद्ध सेवा का यह 25वां साल है। इन 25 वर्षों में ‘एसओएस इंडिया’ ने कई प्रभावित परिवारों और परित्यक्त बच्चों का क्रमश: परिवार आधारित देखभाल (एफबीसी) और परिवार विकास कार्यक्रम (एफएसपी) के माध्यम से पुनर्वास किया है। वर्तमान में 139 अनाथ एवं परित्यक्त बच्चे लातूर के अपने चिल्ड्रेन्स विलेज के 12 फैमिली होम्स में रह रहे हैं।
यहां अनाथ एवं परित्यक्त बच्चों को परिवार जैसा वातावरण प्रदान करने के लिए एसओएस इंडिया के एफबीसी कार्यक्रम का डिजायन तैयार किया गया है, ताकि बच्चों में विश्वास भरा जा सके।
एसओएस माताएं यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके बच्चों में उनके संरक्षक, अनुशासनात्मक और मित्र के रूप में अच्छे मूल्य पैदा किए जाएं। ये लोग एसओएस चरित्र तैयार करती हैं और यही सबसे बड़ा कारण है कि एसओएस इंडिया दूसरों के साथ खड़ा है। उनकी प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत के कारण आज कुल 171 युवा (91 लड़के एवं 77 लड़कियां) इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक, आईटी और हॉस्पिटैलिटी उद्योग पेशेवरों आदि के रूप में कई क्षेत्रों में स्थापित हैं।
लातूर गांव में, एसओएस मां के रूप में, शकुंतला ने अभी तक 30 बच्चों को पालकर बड़ा किया है, जिनमें उनके छह बेटे और चार बेटियां स्थापित हो गए हैं और शादी कर ली है। साझा करने के लिए इस तरह की कई बेहतरीन कहानियां हैं। सोनू लातूर गांव की पहली लड़की थी, जिसने इंजीनियरिंग को एक पेशे के रूप में लिया। इस गांव के समग्र माहौल में पलने वाले बच्चों में अर्चना, ज्योति, शिवाजी, पद्मा आदि कई बच्चे शामिल हैं।
एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेज ऑफ इंडिया की महासचिव, अनुजा बंसल कहती हैं, “लातूर के विनाशकारी भूंकप के बाद के पिछले 24 सालों के अपने कामों पर नजर डालने के लिए यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। सालों तक योगदान देने वाले अपने सह-कर्मियों की कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता एवं हमारे प्रायोजकों एवं दाताओं के सहयोग बिना लातूर गांव के बच्चों के जीवन को प्रभावित करने वाली यह यात्रा संभव नहीं होती।”
( इनपुट – IANS/ एडिए – लाइव उत्तराखंड डेस्क)