बिकवाली के दबाव में रूई बाजार में छाई मंदी
नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)| बिकवाली के दबाव में घरेलू रूई बाजार में मंदी का माहौल बना है। एक महीने में हाजिर बाजार में रूई का भाव तकरीबन 2,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी में 356 किलो ) टूट चुका है। वायदे में भी रूई का भाव इस महीने तकरीबन छह फीसदी लुढ़का है।
जानकार बताते हैं कि आगामी कॉटन (रूई) सीजन 2018-19 (अक्टूबर-सितंबर) में आवक जोर पकड़ने से कीमतों में नरमी आने की आशंकाओं से बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना स्टॉक निकालने की जल्दबाजी में दिख रही है, जिससे 30 सितंबर 2018 को समाप्त हो रहे कॉटन सीजन के आखिरी महीने में बिकवाली का दबाव बढ़ गया है।
उधर, अमेरिका और चीन के बीच छिड़ी व्यापार जंग से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी रूई का कारोबार ठंडा पड़ गया है। जाहिर है कि दुनिया में सबसे ज्यादा रूई की खपत चीन में है और अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा रूई निर्यात है। ऐसे में व्यापारिक हितों के टकराव के कारण दोनों देशों के बीच रूई का व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिसका असर दुनियाभर के रूई बाजार पर देखा जा रहा है।
भारतीय वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर इस कारोबारी सप्ताह के आखिरी दिन शुक्रवार को कॉटन का अक्टूबर डिलीवरी सौदा पिछले कारोबारी सत्र के मुकाबले 140 रुपये यानी 0.64 फीसदी की गिरावट के बाद 21,850 रुपये प्रति गांठ (एक गांठ में 170 किलो) पर बंद हुआ। अक्टूबर वायदा अनुबंध 11 सितंबर 2018 को 23,240 रुपये प्रति गांठ की ऊंचाई पर था, जो 28 सितंबर को 21,770 रुपये तक लुढ़क गया। इस तरह इस महीने वायदे में करीब छह फीसदी की गिरावट आई है।
अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर दिसंबर डिलीवरी कॉटन वायदा करीब 1.7 फीसदी की गिरावट के साथ 76.37 सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुआ। इससे पहले वायदे में 76.27 सेंट प्रति पाउंड तक की गिरावट आई जो पिछले साल 21 दिसंबर 2017 के बाद का सबसे निचला स्तर है। आईसीई पर कॉटन का भाव इस साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया।
कॉटन बाजार के जानकार मुंबई के गिरीश काबरा ने बताया कि अमेरिका में कॉटन का निर्यात घटने से कीमतों में गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर के कॉटन बाजार का रुख अमेरिकी बाजार में कॉटन के भाव में तेजी या मंदी से तय होता है, यही कारण है कि भारतीय वायदा बाजार में भी लगातार मंदी का रुख देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि एक तरफ बिकवाली का दबाव है दूसरी तरफ लेवाल आगे आवक बढ़ने से दाम में और नरमी की उम्मीद कर रहे हैं।
बाजार सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एक सितंबर 2018 को बेंचमार्क गुजरात शंकर-6 (29 एमएम) कॉटन का भाव 47,500-48,000 रुपये प्रति कैंडी था, जो 28 सितंबर 2018 को लुढ़ककर 45,500-46,500 रुपये प्रति कैंडी रह गया। इस तरह करीब एक महीने में कीमतों में 2,500 रुपये प्रति कैंडी की गिरावट आई।
कपास यानी नरमा की नई फसल की आवक धीरे-धीरे जोर पकड़ रही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, शुक्रवार को देशभर में कपास की आवक 30,000 क्विं टल थी। उत्तर भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हरियाणा और पंजाब में कपास की नई फसल का भाव 5,200-5,350 रुपये प्रति क्विंटल था।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने फसल वर्ष 2018-19 के लिए कपास (लांग स्टेपल यानी लंबा रेशा) का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,450 रुपये प्रति क्विं टल और मीडियम स्टेपल का 5,150 रुपये प्रति क्विं टल तय किया है।
कारोबारियों ने बताया कि इस समय नई फसल में 10-15 फीसदी नमी है, इसलिए भाव थोड़ा नरम है, लेकिन आने वाले दिनों में सरकारी खरीद शुरू होने पर कपास का भाव एमएसपी से नीचे रहने की संभावना कम है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट अतुल गंतरा का भी कहना है कि अगामी सीजन में कपास का भाव एमएसपी के ऊपर रहेगा। उन्होंने कहा कि फसल वर्ष 2018-19 के लिए सरकार द्वारा जारी अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार कॉटन का उत्पादन 324.8 लाख गांठ होने का आकलन किया गया है जोकि 2017-18 के 348.88 लाख गांठ के मुकाबले कम है।
गंतरा ने कहा कि एसोसिएशन आगामी वर्ष के लिए कॉटन के उत्पादन, खपत, आयात व निर्यात का आकलन एक अक्टूबर की बैठक के बाद जारी करेगा।