कई बदलावों के साथ आधार की संवैधानिक वैधता बरकरार
नई दिल्ली, 26 सितम्बर (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कुछ बदलावों के साथ आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और इसे सामाजिक लाभ के वितरण तक सीमित कर दिया।
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही बैंक खातों और मोबाइल कनेक्शन हासिल करने के लिए इसकी आवश्यकता को खारिज कर दिया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि आधार स्वैच्छिक होगा, न कि अनिवार्य।
पीठ ने यह भी कहा कि मेटाडेटा तैयार नहीं किया जाएगा और इसे लोगों व कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिए सुलभ बनाया जाए।
एक अलग फैसले में न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार विधेयक को धन विधेयक के तौर पर पारित करना संविधान के साथ धोखा है, क्योंकि यह कोई धन विधेयक नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि आधार योजना के तहत जुटाए गए डेटा के बल पर लोगों की निगरानी का एक जोखिम भी है और इस डेटा का दुरुपयोग भी किया जा सकता है।
अदालत ने आधार अधिनियम की धारा 57 को रद्द कर दिया, जो निजी कंपनियों को अपनी सेवाओं तक पहुंच के लिए लोगों से उनके आधार नंबर की मांग करने की इजाजत देती थी।
अदालत ने यह भी कहा कि ‘आज तक हमने आधार अधिनियम में ऐसा कुछ नहीं पाया है, जो किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन करता हो।’
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी ने फैसला पढ़ते हुए आधार कानून के उस प्रावधान को भी रद्द कर दिया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाले से आधार डेटा साझा करने की इजाजत देता था।
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति सीकरी के बहुमत के फैसले ने धन विधेयक के रूप में आधार अधिनियम को पारित किए जाने को मंजूरी दे दी।
फैसले में कहा गया, हमारा यह मानना है कि आधार योजना के तहत जुटाए गए डेटा को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं।
अदालत ने कहा, मोबाइल कनेक्शन जारी करने और बैंक खाता खोलने के लिए आधार को लिंक करना असंवैधानिक है।
पीठ में न्यायाधीशों के बहुमत ने कहा कि आधार को आयकर रिटर्न के साथ जोड़ना वैध है।
फैसले में कहा गया है कि ‘सर्वश्रेष्ठ से विशिष्ट होना बेहतर है, क्योंकि सर्वश्रेष्ठ आपको नबंर एक बनाता है, लेकिन विश्ष्टि होना आपको केवल एक बनाता है।’
पीठ ने कहा, विशिष्टता, आधार और अन्य पहचान सबूतों के बीच का एक मौलिक अंतर है। आधार और अन्य पहचान सबूतों के बीच एक मौलिक अंतर है, क्योंकि आधार की नकल नहीं की जा सकती और यह एक विशिष्ट पहचान है।
उन्होंने कहा, आधार नामांकन के लिए यूआईडीएआई द्वारा नागिरकों का न्यूनतम जनसांख्यिकीय और बॉयोमीट्रिक डेटा जुटाया गया है। हमारा मानना है कि आधार योजना के तहत जुटाए गए डेटा को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं।
अदालत ने कहा कि आधार का मतलब अधिकारहीन तबके को गौरव देना है। लेकिन, आधार के माध्यम से एकत्र किए गए डेटा को छह महीने से ज्यादा नहीं रखा जा सकता है।
अदालत ने कहा, आधार के माध्यम से सत्यापन में विफल रहने पर किसी भी व्यक्ति को सामाजिक कल्याण योजना के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, हम सरकार को निर्देश देते हैं कि वह सुनिश्चित करे कि समाज कल्याण योजनाओं का लाभ पाने के लिए किसी अवैध आव्रजक को आधार जारी न हो।
अदालत ने कहा कि सीबीएसई और यूजीसी जैसे शिक्षा संस्थान आधार को अनिवार्य नहीं बना सकते।
अदालत ने कहा, स्कूली शिक्षा के लिए आधार जरूरी नहीं रहेगा, क्योंकि न तो यह कल्याण है और न ही सब्सिडी। अदालत ने कहा कि सर्व शिक्षा अभियान को आधार की जरूरत नहीं है।