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मंत्रिमंडल ने चीनी उद्योग के लिए 5,538 करोड़ के पैकेज को दी मंजूरी

नई दिल्ली, 26 सितम्बर (आईएएनएस)| केंद्र सरकार ने आगामी गन्ना पेराई सत्र 2018-19 (अक्टूबर-सितम्बर) चीनी निर्यात प्रोत्साहन नीति की घोषणा करते हुए घरेलू चीनी उद्योग को राहत प्रदान करने के मकसद से 5,538 करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी प्रदान की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडीय समिति (सीसीईए) ने बुधवार को आगामी चीनी सीजन 2018-19 (अकूटबर-सितम्बर) में चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन होने की संभावनाओं के मद्देनजर चीनी मिलों को संकट से उबारने के लिए इस बाबत फैसला लिया।

मंत्रिमंडल के फैसले की जानकारी मीडिया को देते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इस नीति का मकसद आगामी सीजन में उत्पादन ज्यादा होने के कारण चीनी का घरेलू स्टॉक खपत से ज्यादा होने से पैदा होने वाले संकट का समाधान तलाशना है।

मंत्रिमंडल के इस फैसले से देश से चीनी के निर्यात को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है, जिससे चीनी मिलों को गन्ना उत्पादकों को उनके बकाये का भुगतान करने में मदद मिलेगी।

जेटली ने कहा, इस नीति का पहला मकसद चीनी सत्र 2018-19 में निर्यात सुगम बनाने के लिए चीनी मिलों को आंतरिक परिवहन, ढुलाई व अन्य प्रभारों पर सहायता प्रदान करना है।

इसके तहत बंदरगाह से 100 किलोमीटर के अंदर स्थापित मिलों के लिए 1000 रुपये प्रति टन, तटीय राज्यों में बंदरगाह से 100 किलोमीटर आगे स्थापित मिलों के लिए 2500 रुपये प्रति टन तथा तटवर्तीय राज्यों के अलावा दूसरी जगहों की मिलों के लिए 3000 रुपये प्रति टन की दर या वास्तविक खर्च आधार पर खर्च वहन किया जाएगा। इस पर लगभग कुल 1375 करोड़ रुपए का खर्च आएगा और इसका वहन सरकार करेगी।

उन्होंने आगे कहा, दूसरा मकसद चीनी मिलों को प्रोत्साहन के रूप में पेराई सत्र 2018-19 में पेराई किए गए गो के दाम (एफआरपी) में 13.88 रुपये प्रति क्विंटल की दर से राहत प्रदान करना है।

किसानों को गो के दाम का भुगतान करने में मिलों को की जाने वाली वित्तीय मदद चीनी सत्र 2018-19 में दोगुनी से अधिक बढ़ाकर 13.88 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। यह राशि सीधे किसानों को भुगतान की जाती है। चीनी पेराई सत्र 2017-18 में प्रोत्साहन की यह दर 5.50 रुपये प्रति क्विं टल थी।

यह सहायता केवल उन मिलों की दी जाएगी जो खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा निर्धारित शर्तें पूरी करती हैं। आधिकारिक बयान के मुताबिक, इस पर कुल 4163 करोड़ रुपये का खर्च आएगा और सरकार इसका वहन करेगी।

चीनी के दाम में गिरावट के कारण चीनी सत्र 2017-18 में चीनी मिलों के पास नकदी का संकट रहा है, जिसके कारण किसानों के बकाये का भुगतान समय पर नहीं हो पाया है। किसानों की बकाया राशि मई 2018 के अंतिम सप्ताह में 23,232 करोड़ रुपये हो गई थी।

चाालू चीनी सत्र 2017-18 में किसानों के बकाये का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई अहम कदम उठाए, जिसके तहत चीनी आयात को नियंत्रित करने के लिए आयात शुल्क 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया गया और चीनी उद्योग को चीनी निर्यात की संभावना तलाशने में प्रोत्साहन के लिए चीनी निर्यात पर सीमा शुल्क वापस ले लिया गया।

चीनी वर्ष 2017-18 में सरकार ने न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) के तहत 20 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा निर्धारित किया था। मगर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी का दाम भारतीय बाजार के मुकाबले काफी कम होने के कारण यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया।

मांग से ज्यादा आपूर्ति होने कारण कीमतों में आई भारी गिरावट को थामने के लिए सरकार ने चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य या फैक्ट्री गेट डिलीवरी चीनी रेट 29 रुपये प्रति किलोग्राम निर्धारित किए।

इसके अलावा 30 लाख टन चीनी के सुरक्षित भंडार यानी बफर स्टॉक बनाने का निर्देश दिया गया और बफर स्टॉक बनाने पर होने आने वाली लागत का भुगतान करने का निर्णय लिया गया।

ब्राजील की तर्ज पर चीनी का उत्पादन कम करके इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देने के मकसद से सरकार ने मिलों को इथेनॉल उत्पादन क्षमता का विकास करने के लिए 4440 करोड़ रुपये का आसान कर्ज मुहैया करवाने का फैसला लिया। कर्ज पर ब्याज में मदद के लिए सरकार ने 1332 करोड़ रुपये वहन करने का निर्णय लिया।

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