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सरकार की अनुमति के बिना ऑफसेट साझेदार चुना नहीं जा सकता : कांग्रेस

नई दिल्ली, 25 सितम्बर (आईएएनएस)| राफेल विमान सौदा मामले में नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला जारी रखते हुए कांग्रेस ने मंगलवार को आरोप लगाया कि रक्षा खरीद नियमों के मुताबिक, ऑफसेट साझेदार को केवल भारत सरकार की अनुमति से ही चुना जा सकता है और मोदी सरकार इस मामले में ‘झूठ’ बोल रही है।

कांग्रेस ने इसके साथ ही सरकार से इस पर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा कि उसने सरकारी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के स्थान पर इस क्षेत्र में नई कंपनी को कांट्रैक्ट देने के मामले में एक निजी कंपनी को ऑफसेट कांट्रैक्ट देने के संबंध में नियमों का उल्लंघन नहीं किया है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा, रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2013/2016 से बिलकुल स्पष्ट होता है कि ऑफसेट साझेदार को रक्षा मंत्रालय और मंत्रालय की रक्षा अधिग्रहण इकाई के मूल्यांकन और जांच के बिना नहीं चुना जा सकता।

उन्होंने कहा, क्यों डीपीपी उल्लंघन में सभी नियमों और प्रक्रियाओं को ताक पर रख दिया गया? डीपीपी सभी खरीद प्रक्रियाओं के लिए मुख्य दस्तावेज है। जी2जी खरीद समेत सभी रक्षा उपकरण खरीद, डिफेंस ऑफसेट मैनेजमेंट विंग (डीओएमडब्ल्यू) द्वारा ऑफसेट साझेदार की जांच व मूल्यांकन को जरूरी बनाता है, ताकि ऑफसेट कांट्रैक्ट में चुनाव व क्रियान्वयन में सरकार की जवाबदेही व निगरानी बनी रहे।

सिब्बल ने कहा, क्या इस प्रक्रिया को छोड़ कर आगे बढ़ा गया या रक्षामंत्री ने इसे जानबूझकर दरकिनार कर दिया।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को यह सबूत दिखाने की जरूरत है कि उन्होंने ऑफसेट पार्टनर के रूप में रिलायंस डिफेंस का चुनाव डीपीपी ऑफसेट दिशानिर्देश के आधार पर किया है।

सिब्बल ने कहा, अगर कोई सबूत नहीं है तो इसका अर्थ है कि पूरा राफेल सौदा रक्षा खरीद प्रक्रिया का उल्लंघन है..रक्षा मंत्री झूठ बोलतीं हैं जब वह कहती हैं कि ऑफसेट पार्टनर के चयन में सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।

उन्होंने कहा कि डीपीपी 2016 के अनुसार, सरकार को ऑफसेट पार्टनर का चुनाव करने के वक्त प्रत्येक कदम में इससे संबंधित बदलाव के बारे में निश्चित ही बताना था।

सिब्बल ने कहा, इस निजी कंपनी में क्या विशेषता थी जिसके साथ एचएएल के स्थान पर करार किया गया? बिना प्रधानमंत्री के दिशानिर्देश के, दसॉ एविएशन जैसी एक व्यवसायिक कंपनी ने ऑफसेट पार्टनर के रूप में बिना अनुभव वाली एक कंपनी को चुना, जिसके पास न तो इमारत व जमीन है और ना ही कुछ और? क्या यह व्यवहार्य वाणिज्यिक निर्णय था?

मोदी के ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ नारे पर निशाना साधते हुए सिब्बल ने कहा, प्रधानमंत्री को अब अपना नारा बदलकर ‘न बताऊंगा, न बताने दूंगा’ कर लेना चाहिए।

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