समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं : विधि आयोग
नई दिल्ली, 1 सितम्बर (आईएएनएस)| विधि आयोग ने कहा कि देश में इस समय ‘समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है, न ही वांछनीय’। इसके साथ ही आयोग ने विवाह और तलाक कानूनों में कुछ ऐसे बदलाव करने की सलाह दी है, जिसे सभी धर्मो के पर्सनल लॉ में समान रूप से लागू किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी. एस. चौहान (जिनका कार्यकाल शुक्रवार को समाप्त हुआ) की अगुवाई में आयोग ने शुक्रवार को ‘फैमिली लॉ रिफार्म्स’ पर 185 पन्नों का परामर्श पत्र पेश किया और कहा कि जरूरी नहीं है कि एक एकीकृत राष्ट्र को ‘एकरूपता (यूनिफॉर्मिटी)’ की जरूरत हो।
आयोग ने अपने परामर्श पत्र में कहा कि ‘सांस्कृतिक विविधता को इस हद तक जोखिम में नहीं डालना चाहिए कि एकरूपता का हमारा आग्रह ही हमारे देश की अखंडता के लिए खतरे का कारण बन जाए।’
सभी धर्मो के पर्सनल लॉ में विवाह और तलाक में संशोधन करने की सलाह देते हुए आयोग ने व्याभिचार को तलाक का एक आधार बनाने व पुरुषों व स्त्रियों के लिए तलाक प्रक्रिया को सरल बनाने का सुझाव दिया है।
परमार्श पत्र के अनुसार, सभी पारिवारिक कानून व्याभिचार को तलाक का आधार मानते हैं लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि पति-पत्नी दोनों के लिए यह प्रावधान उनकी पहुंच में हो।
आयोग ने कहा कि आईपीसी की धारा 498 (दहेज उत्पीड़न) का इस्तेमाल महिलाओं ने अपने मुश्किल वैवाहिक संबंध से तुरंत बाहर निकलने के लिए किया है।
इसमें कहा गया है कि निकाहनामे में स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख होना चाहिए कि ‘बहुविवाह एक अपराध है’ और इसे सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होना चाहिए।
पत्र के अनुसार, इसे द्विविवाह पर एक नैतिक पक्ष के तौर पर लेने या एक ही विवाह की प्रथा को महिमामंडित करने के प्रयास के तौर पर नहीं लेना चाहिए, बल्कि तथ्य यह है कि केवल पुरुषों को कई महिलाओं से विवाह करने का अधिकार है, जोकि गलत है।
आयोग ने विवाह के लिए लड़कों व लड़कियों, दोनों की उम्र कम से कम 18 करने की अनुशंसा की और कहा कि इसमें कोई भेद नहीं होना चाहिए।
इसके साथ ही आयोग ने संसद से लिव-इन-रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों की वैधता को लेकर कानून बनाने की भी सिफारिश की।