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आर्थिक संरचनाओं में बदलाव से बदलती है व्यापारिक रणनीति : पुरी

नई दिल्ली, 31 अगस्त (आईएएनएस)| देश के पूर्व राजनयिकों का मानना है कि भारत को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की वार्ता शुरू करनी चाहिए और वार्ता जारी रखते हुए और उभरते हुए बहुपक्षी व्यापार प्रणाली को आकार प्रदान करना चाहिए। हाल ही में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय आवासन और शहरी मामलों के राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बदलते दौर में देशों की व्यापार संबंधी रणनीतियों में बदलाव आ रहा है।

हरदीप सिंह पुरी यहां जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) में जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के उपसंकायाध्यक्ष (वाइस डीन) मोहन कुमार द्वारा लिखी गई किताब ‘निगोशिएशन डायनामिक्स ऑफ डब्ल्यूटीओ, एन इनसाइडर अकाउंट’ का विमोचन किया।

पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में पुरी ने कहा कि देशों की व्यापार रणनीतियां उनकी आर्थिक संरचनाओं के साथ बदल जाती है। उन्होंने इस संदर्भ में एक उदाहरण देते हुए कहा, एक जमाना था जब अमेरिका डब्ल्यूटीओ में सेवा व्यापार को शामिल करने पर जोर देता था और भारत ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और अन्य देशों के साथ मिलकर इस मसले को कमजोर बनाने में जुटा था। मगर आज स्थिति पूरी तरह बदल गई है।

उन्होंने कहा, भारत 2,700 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था है और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 50 फीसदी विदेशी क्षेत्र से प्राप्त होता है जिसमें वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य शामिल है। हमारी जीडीपी में 57 फीसदी योगदान सेवा क्षेत्र का है। लिहाजा, आज हमारी दिलचस्पी सेवा क्षेत्र में सुधार कार्य को आगे बढ़ाने में है।

भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के पूर्व अधिकारी ने कहा, व्यापार वार्ताकार और डब्ल्यूटीओ के बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को समझने और इसके इतिहास को जानने में रुचि रखने वालों को डॉ. मोहन कुमार की किताब पढ़नी चाहिए, ताकि उन्हें मालूम हो कि जीएटीटी (जनरल एग्रीमेंट ऑन टेरिफ एंड ट्रेड) से कैसे डब्ल्यूटीओ की उत्पत्ति हुई। साथ ही, उनलोगों को भी यह किताब पढ़नी चाहिए जो डब्ल्यूटीओ के गतिरोध को जानने में रुचि रखते हैं।

उन्होंने कहा कि किताब में विकासशील देश के वार्ताकार के दृष्किोण को स्पष्ट किया गया है। पुरी ने कहा, इस किताब में डब्ल्यूटीओ के साथ हमारी वार्ताओं का इतिहास खंगालने में मदद मिलती है। यह एक विशिष्ट पुस्तक है और इसमें डब्ल्यूटीओ की वार्ताओं में शामिल रहे डॉ. मोहन कुमार की तकनीकी विशेषज्ञता और उनका नजरिया जानने को मिलता है। किताब में विकासशील देशों के राजनयिकों और व्यापार नीति को अमल में लाने वाले अधिकारियों की समझ के बारे में भी प्रचुर सामग्री है।

डॉ. मनमोहन कुमार ने कहा कि उनकी किताब में तीन मुख्य संदेश हैं। उन्होंने कहा, इसमें डब्ल्यूटीओ के तीन सम्मेलनों में जो कुछ हुआ उसका उल्लेख किया गया है। मैंने डब्ल्यूटीओ का इतिहासकार बनने की कोशिश की है क्योंकि आप तथ्यों को नहीं बदल सकते हैं।

उन्होंने कहा, मेरा मत है कि वार्ता से असंतोष पैदा हुआ, जिससे बाद में भी वार्ता संबंधी भारत के रुख पर एक छाप बनी रही और डब्ल्यूटीओ के संबंध में हमारा संशय बना रहा। दूसरी बात है कि भारत की वार्ता वास्तव में सुखद रही। मेरा तर्क यह कि भारत को वार्ता से बाहर होने के बजाय वार्ता के अधीन रहना चाहिए। जब हम वार्ता में शामिल नहीं होते तो वार्ता के नतीजों को हम मानने के लिए बाध्य होते हैं। हमेशा ऐसे नतीजे भारत के लिए विपरीत रहे हैं। किताब में मेरा तीसरा संदेश यह है कि चीन का भारत से खुद को दूर रखने को लेकर है क्योंकि सिर्फ हमारा ही देश एक रंग-ढंग का है। मैं भारत से एकला चलो का आह्वान करना चाहूंगा, अगर पास इसे पंसद करें।

डॉ. कुमार ने कहा कि डब्ल्यूटीओ के खात्मे की बात काफी अतिशयोक्तिपूर्ण है। उन्होंने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा, डब्ल्यूटीओ को दोबारा बुनियादी तौर पर नया आकार दिया जाएगा।

बतौर आईएफएस अधिकारी 36 साल की अपनी सेवा के दौरान डॉ. मोहन कुमार ने कतिपय विदेशी कार्यभार का संपादन किया है। वह 2015 से 2017 तक फ्रांस में भारत के राजदूत रह चुके हैं। वह जीएटीटी और डब्ल्यूटीओ में भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार रहे हैं।

पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में जेजीयू के संस्थापक कुलपति सी. राजकुमार ने कहा कि उनके विश्वविद्यालय का सौभाग्य है कि वहां डॉ. कुमार समेत तीन राजनयिक बतौर प्रोफेसर अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालयों में आज अनुसंधान, ज्ञान, सृजन और प्रकाशन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, हम इस बात को लेकर चेतनाशील हैं कि अकादमिक क्षेत्र के लोग अनुसंधान की संस्कृति को विकसित करने में शामिल हों। हमारी इस पहल से संस्थान को दुनिया में विशिष्टता और श्रेष्ठता प्राप्त होगा।

पुस्तक विमोचन के दौरान एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया, जिसका संचालन जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के डीन श्रीराम चौलिया ने किया। परिचर्चा में हिस्सा लेने वालों में पूर्व वाणिज्य सचिव राजीव खेर, डब्ल्यूटीओ में भारत के पूर्व राजदूत जयंत दासगुप्ता, आईआईएफटी में सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्टडीज के प्रमुख अभिजीत दास और जवाहरलाल नेहररू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर जयती घोष शामिल थे।

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