मुझे और मनजीत को विश्वास था, हम जीतेंगे : कोच अमरीश
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)| अपने खर्चे पर मनजीत सिंह चहल को दो साल तक प्रशिक्षण देने वाले कोच अमरीश सिंह का कहना है कि सभी लोगों ने मंजीत पर से पर से भरोसा खो दिया था, लेकिन ‘मैंने और मनजीत ने हार नहीं मानी, क्योंकि हमें विश्वास था कि हम जीत सकते हैं।’
अमरीश ने आईएएनएस के साथ साक्षात्कार में बताया कि मनजीत का स्वर्ण उनकी कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है।
उल्लेखनीय है कि मनजीत ने इंडोनेशिया में जारी 18वें एशियाई खेलों में पुरुषों की 800 मीटर रेस का स्वर्ण पदक अपने नाम किया। उन्होंने इस स्पर्धा को एक मिनट और 46.15 सेकेंड में समाप्त किया।
दो साल पहले खराब फॉर्म के कारण ओएनजीसी ने मनजीत के साथ किया करार खत्म कर दिया था। उस समय 27 साल के मनजीत को यह कह दिया गया था कि उनकी उम्र हो चुकी है और अब वह कुछ नहीं कर सकते। उनका करियर खत्म हो गया है।
भारतीय सेना के जाट रेजीमेंट में सूबेदार अमरीश के पास मनजीत दो साल पहले आए थे। नौकरी न रहने के कारण कोच अमरीश ने दो साल तक अपने खर्चे पर मनजीत को प्रशिक्षण दिया था। वह राष्ट्रीय शिविर में अप्रैल में शामिल हुए थे।
ऐसे में अपना आत्मविश्वास खोच चुके मनजीत को भारतीय सेना के एथलेटिक्स का मुख्य कोच सूबेदार अमरिश कुमार ने सहारा दिया। उन्होंने आईएएनएस से कहा, सभी ने यह कहा था कि इसकी उम्र हो चुकी है और यह कुछ नहीं कर पाएगा। केवल हम दोनों के विचार एक जैसे थे और मैंने इसे प्रशिक्षण जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
बकौल अमरीश, मेरा यह मानना है कि घोड़ा और आदमी तब तक बूढ़ा नहीं होता, जब तक उसकी अच्छी खुराक और प्रशिक्षण जारी रहती है। मैंने मनजीत से कहा कि वह कुछ नहीं कर सकते, यह गलतफहमियां हमें दूर करनी है और हमारे पास दो साल है। देखिए, आखिरकार हमने सफलता हासिल की।
अपनी क्षमता से हार मान चुके मनजीत ने अपने कोच से कहा था कि उनकी नौकरी छूट चुकी है और ऐसे में वह असहाय हैं। मनजीत खेल को छोड़ना चाहते थे।
इस घटना को बताते हुए कोच ने कहा, मैंने उनसे कहा कि नौकरी छोड़ो। हमारा लक्ष्य स्वर्ण पदक है। एक बार वो जीत लिया, तो नौकरी भी मिलेगी और प्रशंसा भी। इस सोच के साथ ही हमने प्रशिक्षण शुरू किया।
कोच ने कहा, मनजीत के बेटे का जन्म मार्च में हुआ था। लेकिन स्वर्ण पदक के लक्ष्य को ध्यान में रखकर वह अपने बेटे को देखने भी नहीं गए। उन्हें इस बात का अफसोस था लेकिन वह पहले स्वर्ण पदक जीतना चाहते थे। इंटर स्टेट में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था। जहां उन्होंने एक मिनट और 46.24 सेकेंड का समय लिया था, लेकिन यह काफी नहीं था क्योंकि हमारा लक्ष्य फिर भी स्वर्ण ही था। उसके दिमाग में एक ही चीज घूमती थी और वह था स्वर्ण पदक।
एशियाई खेलों में 800 मीटर की रेस से पहले मनजीत को प्रेरित करने के बारे में बताते हुए अमरीश ने कहा, मैंने मनजीत से कहा था कि रजत की तरफ मत देखना। केवल एक चीज है स्वर्ण। यह हमें तभी मिल सकता है कि हम रेस तेज करेंगे। मैंने कहा किकर्व के समय झटका मत देना। फ्रंट पर अपनी ऊर्जा व्यय करनी है। 80 मीटर के उस दायरे में अपनी सारी ताकत झोंकनी है, तभी स्वर्ण पदक मिलेगा।
मनजीत ने 18वें एशियाई खेलों में 1500 मीटर रेस के फाइनल में भी प्रवेश कर लिया है।