बुंदेलखंड की संस्कृति पर छाया आधुनिकता का खुमार
छतरपुर, 26 अगस्त (आईएएनएस)। आधुनिकता की मार से बुंदेलखंड के त्योहार भी नहीं बच पाए है, यही कारण है कि सावन के माह में नजर आने वाली चकरी, लट्टू, चपेटा और भंवरे की जगह आधुनिक खिलौनों ने ले ली है। हर तरफ बच्चों के हाथ में तरह-तरह की राइफल, हेलीकॉप्टर, हवाई जहाज आदि नजर आते हैं।
बुंदेलखंड सभ्यता और संस्कृति से परिपूर्ण इलाका रहा है, यहां हर त्योहार अपने ही रंग में रंगा होता है। इलाके में गरीबी भले हो मगर यहां के लोग त्योहारों को उत्साह और उमंग से मनाने में भरोसा करते हैं। वक्त गुजरने के साथ इस इलाके में भी आधुनिकता का रंग चढ़ने लगा है।
मध्य प्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात जिलों को मिलाकर बनने वाले बुंदेलखंड के बाजारों में रौनक पहले जैसी नहीं है, जो भी बच्चे खरीदारी करने पहुंच रहे हैं, उनकी मांग आधुनिक खिलौने हैं, उनकी न तो चकरी में दिलचस्पी है और न ही भंवरे, लट्टू खरीदना चाहते है। मनोज लखेरा बताते है कि उनके यहां आने वाले बच्चे नए-नए खिलौने मांगते है, उनमें सबसे ज्यादा चाइनीज खिलौने है।
बुजुर्ग महिला सावित्री अपने दौर को याद कर कहती है, उनके समय में सावन माह शुरू होते ही लगने लगता था कि रक्षाबंधन करीब आने वाला है। लड़कों के हाथ में जहां धागे से बंधी चकरी घूमती नजर आती थी, तो लड़कियां लकड़ी और लाख के तरह-तरह के चपेटे खरीदकर खेलते दिखती थीं। अब तो न चकरी नजर आती है और न ही चपेटे दिखते हैं।
समाजसेवी संजय सिंह का कहना है कि आधुनिकता का बढ़ता प्रभाव समाज पर भी नजर आता है। बुंदेलखंड के त्योहार इससे अछूते नहीं हैं। बाजार में भी वही खिलौने आते हैं जो बच्चे चाहते हैं और दुकानदारों को ज्यादा लाभ होता है। एक तरफ जहां चकरी, भंवरे, चपेटे बनाने वाले कारीगर कम हो रहे हैं, वहीं मांग भी कम होती जा रही है।
सिंह आगे कहते है कि सावन का माह आते ही बुंदेलखंड की सड़कों पर बांसुरी की धुन सुनाई देने लगती थी। एक बड़े बांस में सैकड़ों बांसुरी लगाकर बेचता नजर आ जाता था, अब तो इक्का- दुक्का स्थानों पर ही यह नजारा दिखता है।
बुंदेलखंड में रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। बहनें भाईयों की कलाई पर राखी बांधकर उनके सुखमय जीवन की कामना कर रही हैं, वहीं भाई बहनों को उपहार दे रहे हैं। राखियों में भी रेशम से ज्यादा आधुनिक राखियां कलाईयों पर बांधी जा रही हैं। एक तरफ बुंदेली खिलौने गायब हो गए तो दूसरी ओर रेशमी राखियां भी कम हो चली हैं।