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रेटिना के पतले होने से हो सकता है पार्किन्संस रोग

नई दिल्ली, 22 अगस्त (आईएएनएस)| आंख के पीछे तंत्रिका कोशिकाओं की परत रेटिना के पतले होते जाने का पार्किन्संस रोग (पीडी) से संबंध हो सकता है। एक अनुसंधान में इस बात का खुलासा हुआ है। एक अध्ययन के मुताबिक, रेटिना का पतलापन मस्तिष्क कोशिकाओं की क्षति से जुड़ा हुआ है, जो डोपामाइन का उत्पादन करती हैं। डोपामाइन से गति को नियंत्रित किया जाता है। यह पीडी का एक हॉलमार्क है जो मोटर क्षमता को कम करता है। अगर अन्य अध्ययनों में भी इसकी पुष्टि हो जाती है तो रेटिना स्कैन न केवल इसके शीघ्र उपचार का रास्ता खोल सकता है, बल्कि इससे उपचार की अधिक सटीक निगरानी भी संभव हो सकेगी।

पार्किन्संस रोग की शुरुआत (ईओपीडी) 40 साल की उम्र से पहले भी हो सकती है। 60 साल की उम्र में इसकी प्रसार दर प्रति एक लाख आबादी में 247 है।

हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, पार्किन्संस की बीमारी तब होती है जब डोपामाइन का उत्पादन करने वाली मस्तिष्क कोशिकाओं में समस्या उत्पन्न हो जाती है। यह बीमारी 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में से एक प्रतिशत तबके को प्रभावित करती है। इसका कोई इलाज नहीं है, हालांकि कई दवाएं कुछ समय के लिए लक्षणों में सुधार ला सकती हैं।

उन्होंने कहा, बीमारी के तीन से पांच चरण होते हैं। स्टेज-1 और स्टेज-2 में लोगों को झटके लगते हैं और वे चलने में कठिनाई महसूस कर सकते हंै। स्टेज-3 में लक्षण खराब हो सकते हैं और संतुलन व धीमी गति से चलने वाले नुकसान का कारण बन सकते हैं। उन्नत चरणों में, उन्हें बुनियादी कार्यों के लिए देखभाल करने की आवश्यकता हो सकती है। युवा और बूढ़े लोगों, दोनों में यह स्थिति होती है। यह स्थिति, सिर पर आघात, पर्यावरण के लिए विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने या पारिवारिक इतिहास के कारण हो सकती है। शुरूआत में एक न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श करना कंडीशन के बेहतर प्रबंधन में मदद कर सकता है।

डॉ. अग्रवाल ने बताया, हालांकि पार्किन्संस का कोई इलाज नहीं है लेकिन कुछ उपचार से जटिलताओं की रफ्तार को कम किया जा सकता है। हालांकि, जिन लोगों की अवस्था गड़बड़ा जाती है, उन्हें सर्जरी की सिफारिश की जा सकती है। यदि आपको कोई लक्षण दिखाई देता है तो एक न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श करना महत्वपूर्ण हो सकता है। सामान्य जीवनशैली में कुछ परिवर्तन लाकर (जैसे कि आराम और व्यायाम में), शारीरिक चिकित्सा के जरिये, व्यावसायिक चिकित्सा से और बोलने की चिकित्सा से लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

डॉ. अग्रवाल ने सुझाव देते हुए कहा, हाइड्रेटेड रहना हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है, पार्किन्संस वाले लोगों को तो खास तौर से। प्रत्येक दिन छह से आठ गिलास पानी पीना चाहिए। पार्किन्संस से बचाव में विटामिन डी को उपयोगी पाया गया है, इसलिए ताजी हवा और धूप प्राप्त करने से लक्षणों मंे सुधार हो सकता है। विभिन्न प्रकार के व्यायाम और शारीरिक चिकित्सा क्षमताओं में सुधार ला सकते हैं और पार्किन्संस की प्रगति को धीमा कर सकते हैं। पूरक आहार लेने और व्यायामक करने के बारे में पहले अपने डॉक्टर से परामर्श कर लें।

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