अटल को था मिथिला से प्रेम : डॉ़ बीरबल
नई दिल्ली, 17 अगस्त (आईएएनएस)| पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को श्रद्धांजलि देने के लिए दिल्ली की सड़कों पर शुक्रवार को जनसैलाब उमड़ पड़ा। अटल की अंतिम यात्रा में शामिल मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष व ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक डॉ़ बीरबल झा ने उनके मिथिला प्रेम को याद किया। उन्होंने कहा कि मां सीता की धरती मिथिला से वाजपेयी जी का विशेष लगाव था। वे मिथिला के सांस्कृतिक इतिहास से परिचित थे। जब कभी मिथिला आते थे तो यहां के लोग अपने सांस्कृतिक इतिहास से उन्हें परिचय कराते थे। मिथिलांचल के हर जिले से वे परिचित थे।
डॉ़ झा ने कहा, अटल जी चुनाव प्रचार के जब मिथिला आते थे तो उस दौरान प्रकांड विद्वान मंडन मिश्र और उनकी विदुषी पत्नी भारती की चर्चा किए बगैर नहीं रहते थे। वे कहते थे कि ये वही धरती है, जहां आज से हजार वर्ष पूर्व न्याय किया गया था। आप की जिम्मेदारी है कि अपना मत सोच समझकर डालें। जब वे प्रधानमंत्री बने तो इस लगाव को नहीं भूले।
उन्होंने आगे बताया कि सन् 1934 के विनाशकारी भूकंप में मिथिला क्षेत्र दो भागों में बंट गया था। दरभंगा-मधुबनी, सहरसा-सुपौल से अलग हो गया था। इसे एक करने का अटल जी ने बीड़ा उठाया और अपने प्रधानमंत्रित्व काल में दो भाग में बंटे मिथिला को जोड़ने के लिए कोसी नदी पर पुल का शिलान्यास किया, जो 2012 में बनकर तैयार हुआ और आम जनता को समर्पित कर दिया गया। इस तरह 78 वर्षो के बाद फिर मिथिलांचल एक हो गया। यह सब अटल जी की ही देन है।
डॉ़ झा ने कहा कि भगवान राम का ससुराल मिथिला दूरदर्शी वाजपेयी को हमेशा याद रखेगा। अपने प्रधानमंत्रित्व काल में ही अटल जी ने मिथिलावासी को दूसरा तोहफा दिया, और वह था मिथिला की भाषा मैथिली को संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल करना। इस खातिर दशकों से आंदोलन चल रहा था। देश में कई सरकारें आईं, गईं मगर मैथिली को संवैधानिक भाषा का दर्जा अटल जी ने ही दिलाया। इसके लिए मिथिला के लोग उनका चिरऋणी रहेंगे।
उन्होंने श्रद्धांजलि देते हुए कहा, अटल जी दलगत राजनीति से ऊपर उठ चुके थे। आज उमड़ी भीड़ इसकी गवाही दे रही है। कौन पक्ष, कौन विपक्ष यह पता ही नहीं चल रहा है। यह अटल जी के व्यक्तित्व का ही करिश्मा है। सही मायने में, भारतीय राजनीति में अटल जी अजातशत्रु थे।
डॉ़ झा ने कहा कि अटल जी एक युगद्रष्टा नेता थे। उन्हीं के नेतृत्व में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, स्वर्ण चतुभुर्ज योजनाओं की शुरुआत की गई। इसी का परिणाम है कि आज हर गांव पक्की सड़क से जुड़ गया है। वाजपेयी भले ही अर्थशास्त्र के छात्र न रहे हों, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को सही राह पर लाने में उनका अहम योगदान रहा है।