जहां पर शंकराचार्य ने मानी थी हार
नई दिल्ली, 4 अगस्त (आईएएनएस)| मिथिला सदियों से दर्शन का केंद्र रहा है। यहां का इतिहास काफी गौरवमयी रहा है। इसीलिए देश-विदेश के लोग यहां की सांस्कृतिक विरासत को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आज वाद-विवाद को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। कानून बनाने के लिए आज पूरी दुनिया में सांसद, विधायक आपस में सदन में वाद-विवाद करते हैं और उससे जो निचोड़ निकलता है, उसे कानून का शक्ल देते हैं। इसी आधार पर आगे देश में शासन-प्रशासन चलता है और न्यायमूर्ति न्याय करते हैं।
मिथिला की यह अद्भुत विशेषता है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व यह व्यवस्था कायम थी। हर कुछ तर्क की कसौटी पर कसने के बाद ही उसे स्वीकार किया जाता था। मिथिला के प्रकांड पंडित मंडन मिश्र व उनकी पत्नी भारती की ख्याति इसीलिए पूरी दुनिया में है। आज जिस समतामूलक समाज की स्थापना व ‘सबको न्याय सबको सम्मान’ की बात हो रही है, मिथिला में आज से हजारों वर्ष पूर्व कायम थी।
जहां तक शिक्षा की बात है, तो वहां उस समय भी स्त्री-पुरुषों के साथ ही समाज के निचले स्तर के लोगों के साथ भी किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता था। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें यहां देखने के लिए मिलता है। कहा जाता है कि जब पंडित मंडन मिश्र का घर जानने के लिए शंकराचार्य का शिष्य वहां कुएं में पानी भरने वाली महिला से बात की तो उसने उत्तर संस्कृत में दिया। यह साबित करता है कि यहां के निचले समाज की महिलाएं भी पढ़ी-लिखी थीं।
कहा जाता है कि शंकराचार्य सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए केरल से देश भ्रमण पर निकले थे। इस दौरान उन्होंने देश के चारों कोने पर चार मठों की स्थापना की। साथ ही अपने अद्वैतवाद का प्रचार-प्रसार भी किया। इस दौरान जब उन्हें किसी स्थानीय विद्वान के बारे में पता चलता था तो वे उनसे शास्त्रार्थ किया करते थे और जीतने पर उनसे अपना क्षत्रप स्वीकार करवाते थे।
मिथिला के प्रकांड पंडित मंडन मिश्र की ख्याति के बारे में शंकराचार्य को जानकारी थी। वे जब मिथिला पहुंचे तो पंडित मंडन मिश्र से मिलने की इच्छा जताई। शंकराचार्य के शिष्य खोजते-खोजते मंडन मिश्र के गांव माहिष्मती जो आजका महिषी है, पहुंचे। महिषी बिहार के सहरसा जिला में है। इस गांव में पहुंचने पर शंकराचार्य के शिष्यों ने देखा कि दो महिलाएं कुएं से पानी भर रही हैं और आपस में संस्कृत में वार्तालाप कर रही हैं। एक शिष्य ने पानी भरने वाली महिला से पूछा कि बताएं पंडित मंडन मिश्र का घर कौन सा है? इस पर एक महिला ने उत्तर देते हुए कहा कि आप इसी रास्ते से आगे जाएं और जिस घर के द्वार पर पिंजड़े में बंद दो तोता आपस में संस्कृत में शास्त्रार्थ कर रहे हों, समझिए वही घर पंडित मंडन मिश्र का है।
पानी भरने वाली उस महिला ने संस्कृत के श्लोक में उनको जवाब दिया :
(स्वत: प्रमाणं पुरुत: प्रमाणं शुकांगना: यत्र गिरोगिरन्ति, शिष्योपशिष्यैगियमानं तमुपैहि मंडन मिश्र धामं।)
शंकराचार्य के घर पहुंचने पर पंडित मंडन मिश्र व उनकी विदुषी पत्नी भारती ने मिथिला की परंपरा के अनुसार शंकराचार्य का भव्य स्वागत किया। शंकराचार्य के आगमन की खबर सुनकर आस-पड़ोस के पंडित भी आ पहुंचे। सेवा-सत्कार के बाद शास्त्रार्थ होना था। दोनों के बीच निर्णायक की तलाश होने लगी।
उपस्थित पंडितों ने कहा कि आप दोनों के शास्त्रार्थ में हार-जीत का निर्णय करने के लिए विदुषी भारती सबसे उपयुक्त होंगी। दोनों के बीच कई दिनों तक शास्त्रार्थ चला। अंत में भारती ने शंकराचार्य को विजयी घोषित कर दिया। मगर उन्होंने शंकराचार्य के समक्ष एक शर्त रख दी। कहा, पंडित मंडन मिश्र विवाहित हैं और मैं उनकी अर्धागिनी हूं। अभी आप आधे शास्त्रार्थ को ही जीते हैं, अभी मेरे साथ आपको शास्त्रार्थ करना होगा।
कहा जाता है कि शंकराचार्य ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली और दोनों के बीच शास्त्रार्थ हुआ। शंकराचार्य शास्त्रार्थ जीत रहे थे, पर भारती ने जो अंतिम प्रश्न किया, वह उन पर भारी पड़ गया। उनका अंतिम प्रश्न गृहस्थ जीवन में स्त्री-पुरुष के संबंध के व्यावहारिक ज्ञान से जुड़ा था। संन्यासी शंकराचार्य को गृहस्थ जीवन के व्यावहारिक पक्ष का ज्ञान नहीं था। शंकराचार्य ने अपनी हार स्वीकार कर ली और सभा मंडप ने विदुषी भारती को विजय घोषित कर दिया।
इससे साबित होता है कि मिथिला में महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में बराबर की भागीदारी निभाती थीं। घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए ज्ञान अर्जित कर शास्त्रार्थ भी करती थीं और समाज में कोई लिंगभेद नहीं था। पती-पत्नी के बीच एक-दूसरे के पूरक का संबंध होता था।
(लेखक डॉ. बीरबल झा ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक एवं मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं। )