IANS

छत्तीसगढ़ के ईरानी बदहाली से खुशहाली की ओर

रायपुर, 1 अगस्त (आईएएनएस)| कई पीढ़ियों पहले हजारों किलोमीटर दूर ईरान से भारत और फिर इस देश के मध्यवर्ती राज्य छत्तीसगढ़ की धरती पर आए ईरानियों की घुमंतू जिंदगी को गुजर-बसर के लिए अब एक स्थायी बसाहट मिल गई है। उनका एक जत्था करीब एक सौ साल पहले वर्तमान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर आया था, जहां आमापारा में ये लोग घोड़े आदि बेचने का कारोबार करते थे।

इनके रहने का कोई स्थायी ठिकाना नहीं था। लिहाजा, ये ईरानी परिवार यहां पंडरी इलाके में रायपुर से धमतरी जाने वाली छोटी लाइन की रेलवे पटरी के किनारे झुग्गी झोपड़ी बनाकर रहने लगे। अब लगभग एक सौ बरस की लंबी बदहाल जिंदगी से निकलकर ये लोग एक खुशहाल भविष्य की ओर बढ़ने लगे हैं। कालोनी के ईरानी परिवारों का कहना है सरकार की विशेष पहल से ही यह मुमकिन हो पाया है।

इस डेरे के 112 परिवारों के लगभग 500 सदस्यों को झुग्गी बस्ती के तंग माहौल से मुक्ति मिलने पर अब एक साफ-सुथरी बसाहट में स्वयं के पक्के मकान में रहने का एक सुकून भरा अहसास होने लगा है और उनके चेहरों पर रौनक आ गई है। सिर्फ तीन महीने पहले तक ये परिवार यहां पंडरी के पुराने रेलवे स्टेशन के पास पटरी के किनारे झुग्गियों में रहा करते थे। उनकी झुग्गी बस्ती को ‘ईरानी डेरे’ के नाम से पहचाना जाता था। मकान चाहे छोटा हो या बड़ा, अपना मकान अपना होता है।

प्रधानमंत्री आवास योजना सहित केंद्र और राज्य की विभिन्न आवासीय परियोजनाओं के तहत इसके लिए काम तेजी से चल रहा है। इसी कड़ी में केंद्र सरकार की बीएसयूपी योजना के तहत छत्तीसगढ़ सरकार और रायपुर नगर निगम के सहयोग से ईरानी परिवारों को शहर से लगे हुए दलदल सिवनी के पास नगर निगम के वार्ड नंबर 26 (कुशाभाऊ ठाकरे वार्ड) में पक्के मकानों की एक साफ-सुथरी आवासीय कॉलोनी की सौगात मिली है, जहां सीसी रोड, बिजली और पेयजल के लिए सार्वजनिक नल आदि की भी सुविधाएं दी गई हैं।

इस नवनिर्मित ईरानी कॉलोनी का नामकरण एकात्म मानववाद के प्रवर्तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर किया गया है। बच्चे स्कूलों से हंसते-खेलते लौटकर यहां की साफ-सुथरी सीमेंट की सड़कों पर मस्ती से क्रिकेट खेलते नजर आते हैं। रेलवे पटरी की झुग्गी बस्ती की तंग गलियों में ये बच्चे खेलने के लिए भी तरस जाते थे। झुग्गी बस्ती में जिन परिवारों को रसोई का कमरा भी नसीब नहीं था, अब उन्हें नई बसाहट के अपने मकानों में स्वच्छ किचन भी मिल गया है, जहां निश्िंचत होकर वे अपने परिवार की रसोई बनाती हैं।

किचन में रसोई गैस के चूल्हे और सिलेंडर, स्टेनलेस स्टील के बर्तन आदि व्यवस्थित रूप से रखने की पर्याप्त जगह है। कमरे में सीलिंग पंखा भी लगा हुआ है।

एक निम्न मध्यम वर्गीय मेहनतकश परिवार को आज के युग में औसत पारिवारिक जीवन के लिए जितनी बुनियादी सुविधाओं की जरूरत होती है, उनमें से अधिकांश सुविधाएं इन घरों में भी देखी जा सकती है।

पहले उनकी झुग्गी बस्ती के कच्चे घरों में आंगन या खुली जगह नहीं थी। इस वजह से उनके लिए कपड़े धोना और सुखाना भी बहुत मुश्किल था। अब नई बसाहट में इसके लिए अर्पाटमेंट के बाहर काफी जगह है। प्रदूषित वातावरण से निकलकर मई 2018 में स्वच्छ वातावरण वाली इस कॉलोनी में आने पर इन परिवारों के बच्चों, युवाओं, बुजुर्गों और महिलाओं के चेहरों पर अब हमेशा मुस्कान नजर आती है। कॉलोनी में इन परिवारों को छह अलग-अलग ब्लॉक्स में फ्लैट दिए गए हैं। प्रत्येक फ्लैट में किचन, हाल और लेट-बाथ की सुविधा है। बिजली की बेहतर और निरंतर आपूर्ति के लिए ट्रांसफार्मर भी लगवाया गया है।

छोटी लाइन की रेल पटरी के किनारे ‘ईरानी डेरा’ के नाम से बनी झुग्गी बस्ती की तंग गलियों में तो सांस लेना भी मुश्किल होता था। अब नई कॉलोनी के खुले वातावरण में खुली और ताजी हवा के झोंके इनकी जिन्दगी को नई ताजगी और स्फूर्ति दे रहे हैं। इन परिवारों के पुरुष सदस्य शहर के मालवीय रोड के फुटपाथ पर चश्मा और घड़ी आदि बेचकर परिवार का खर्च चलाते हैं। पचासों साल से इस कारोबार के जरिए उनकी जिंदगी चल रही है।

रेल पटरी के किनारे झुग्गी बस्ती में जिंदगी का अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद करते हुए उन लोगों ने कई दशक कैसे बिता दिए, पता ही नहीं चला। ये लोग अपने घरों में फारसी भाषा में बातचीत करते हैं। कई पीढ़ियों से रायपुर शहर में रहने के कारण ये लोग हिंदी और छत्तीसगढ़ी भी अच्छी तरह जानते हैं।

लगभग 75 वर्ष की शाहजादी बानो कहती हैं, पंडरी के कच्चे मकान में बरसात से बचने के लिए हर साल हमें अपने खपरैल के छप्पर को प्लास्टिक शीट से ढकना पड़ता था। करीब 50 से 60 साल इसी तरह गुजार दिए। रमन सरकार ने इस नई कॉलोनी में हमें पक्का मकान दिया है, तो अब यह समस्या नहीं रह गई है।

इसी ईरानी डेरे में जिंदगी के संघर्ष की आंच में तपकर सुलेमान ईरानी और रूस्वा ईरानी जैसे उर्दू के मशहूर शायर भी हुए। इनमें से अली सज्जाद ‘रूस्वा ईरानी’ को छत्तीसगढ़ सरकार ने उर्दू भाषा और साहित्य की सेवा के लिए हाजी हसन अली सम्मान के रूप में राज्य अलंकरण से सम्मानित किया था। मरहूम शायर रूस्वा ईरानी ने कभी लिखा था-

दो रोटियों पे जिन्हें इत्मीनान होता है,

उन्हीं के कदमों तले आसमान होता है

बहुत से लोग हैं, जिनके सरों पर छत भी नहीं,

वो खुशनसीब हैं, जिनका मकान होता है।

वास्तव में ईरानी डेरे के इन मेहनतकशों ने अपनी मेहनत से अपने-अपने परिवारों के लिए रोटियों का इंतजाम तो पहले ही कर लिया था, लेकिन अब वे सचमुच बेहद खुशनसीब हैं, क्योंकि सरकार की संवेदनशीलता से उन्हें स्वयं का मकान मिल गया है।

नौजवान जाफर अली ने पंडरी की झुग्गी में रहकर राजधानी के गुजराती स्कूल से बारहवीं पास किया। वे अब नई बसाहट के अपने पक्के मकान में रहते हैं और अपनी कॉलोनी के स्कूली बच्चों को नि:शुल्क ट्यूशन भी पढ़ाते हैं।

ईरानी जमात के सलाम हुसैन ईरानी एक अच्छे शायर और कव्वाल हैं। सरताज अली पहलवान हैं और दो बार क्रमश: वर्ष 1979 तथा वर्ष 2004 में रायपुर शहर में आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में चौम्पियन रह चुके हैं। पुरानी झुग्गी बसाहट में रहते हुए उन्होंने पहलवानी भी सीखी और अब शहर के अलग-अलग हिस्सों में दूसरों को कुश्ती के दांव-पेच सिखा रहे हैं।

ईरानी जमात के शायर मोहसिन अली ‘सुहैल’ कहते हैं, पूर्वजों की धरती ईरान से अब इन परिवारों का कोई रिश्ता लगभग नहीं के बराबर रह गया है। हमलोग भारत की धरती और छत्तीसगढ़ की माटी में रच -बस गए हैं। जितना प्यार और सुकून हमें भारत में और विशेष रूप से छत्तीसगढ़ में मिलता है, उसे छोड़कर दुनिया में और कहीं भी जाने और रहने का जी नहीं करता। हमारी जिंदगी बदहाली से खुशहाली की ओर बढ़ रही है।

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