माता-पिता और परिवार को छोड़ना आध्यात्मिक ज्ञान नहीं : न्यायालय
नई दिल्ली, 27 जुलाई (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने रोहिणी स्थित आध्यात्मिक विद्यालय में रह रही महिला कैदियों को उनके माता-पिता से कथित तौर पर नहीं मिलने देने को लेकर विद्यालय को शुक्रवार को कड़ी फटकार लगाई।
अदालत ने कहा कि माता-पिता को छोड़ना आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने आश्रम में रहने वाली लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन देने का अनुरोध करने के बाद अदालत ने आश्रम प्रबंधन से स्वच्छता पर लड़कियों को शिक्षित करने को भी कहा।
मुख्य कार्यवाहक न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की खंडपीठ ने कहा, आध्यात्मिक जागृति क्या है? माता-पिता और परिवार को छोड़ना आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है।
उच्च न्यायालय ने वकील को सलाह देते हुए कहा, विद्यालय में महिलाओं को माता-पिता सहित मानव जाति का सम्मान करना सिखाएं।
खंडपीठ ने लड़की के माता-पिता को कटघरे के सामने बुलाया और विद्यालय के वकील से उनकी दयनीय स्थिति देखने को कहा क्योंकि विद्यालय ने उन्हें अपनी बेटी से बात करने की इजाजत नहीं दी थी।
न्यायालय ने कहा, आज गुरु-पुर्णिमा है। हर बच्चे का पहला शिक्षक उसका माता-पिता है। उनका सम्मान कीजिए।
अदालत द्वारा नियुक्त समिति और मानव व्यवहार संस्थान तथा सहयोगी विज्ञान संस्थान (आईएचबीएएस) ने परिसर का निरीक्षण करने के बाद एक रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने पाया कि आपात स्थिति के मामले में वहां पर सुरक्षा के कोई उपाय नहीं है।
न्यायालय ने संस्थान को मामले को ध्यान में रखने और स्थिति में सुधार लाने के लिए काम करने का भी आदेश दिया।
अदालत सामाजिक सुधार के लिए काम करने वाली एनजीओ फाउंडेशन की अध्यात्मिक विद्यालय के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
अदालत ने इस तरह के मुद्दों को हल करने के लिए मध्यस्थता केंद्र को प्रतिदिन सुनवाई करने का आदेश दिया। न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 10 अगस्त की तिथि तय की है।
इस बीच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अदालत को बताया कि आश्रम के संस्थापक और खुद को देवता बताने वाले वीरेंद्र देव दीक्षित का पता लगाने के लिए वह पूरी कोशिश कर रहा है।
सीबीआई ने आश्रम में कथित तौर पर कई महिलाओं और नाबालिग लड़कियों को बंधक बनाने के मामले में दीक्षित के खिलाफ तीन मामले दर्ज किए हैं।
इससे पहले, उच्च न्यायालय ने मामले को सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया था और इसकी जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने को कहा था।
दिसंबर 2017 में उच्च न्यायालय के आदेश पर एक समिति ने संस्थान का निरीक्षण किया था और अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कैदियों को गंदे स्थानों और पशु जैसी स्थितियों में रखा गया था, जहां स्नान करने के लिए भी कोई निजी जगह नहीं है।