जहां गीत गाकर सोते को जगाने की है परंपरा
नई दिल्ली, 1 जुलाई (आईएएनएस)| दुनिया में मिथिला ही ऐसा क्षेत्र है जहां पर एक दूसरे को गीत गाकर सुबह में जगाने की परंपरा है। इसे पराती कहते है इस परंपरा को बचाने में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का योगदान कहीं ज्यादा है। पराती का मतलब है सुबह की अगवानी में गया जाने वाला गीत।
मिथिला के लोगों की दिनचर्या कुछ ऐसी है कि सूर्योदय से पहले अपने विस्तर छोड़ देते हैं और गीत संगीत की दैनिक क्रिया शुरू हो जाती है। मानो यहा हर घर अपने आप में गायन का केंद्र है गीत-संगीत व चित्रकला यहां के लोगों की सांसों में रच बस गया है। फलत: यह एक जीवन शैली बन गई है
यहां निरक्षरों में गाने की कला के प्रति अतिशय अनुराग देखने को मिलता है। यद्यपि साक्षरता दर पिछले एक दशक की तुलना में काफी बढ़ी है। यहां की गायन परंपरा सही मायने में अद्भुत एवं देखने सुनने योग्य है, यह गीत-संगीत की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी से चलती आ रही है। इसे संरक्षित करने में बड़े बुजुर्गों का बहुत बड़ा हाथ है, लेकिन प्रवासी मैथिलों में यह परंपरा घट रही है।
बच्चों के जन्म से लेकर व्यक्ति के मृत्यु र्पयत गीत गाने की अनोखी परंपरा है। जीवन के हर क्षण व उत्सव के लिए अलग-अलग सुर-ताल गीत एवं संगीत है। घर में मेहमान आने पर स्वागत गीत की परंपरा है और प्रस्थान के लिए विदाई गीत, भोजन व मेहमानवाजी के लिए अलग गीत है। बारह महीनों के लिए गीत माला बना हुआ है जिसे बारहमासा कहते है, बदलते रितु के हिसाब से गीत का प्रयोग होता है, वसंत में सुर लय ताल बदल जाते हैं।
भारत कृषि प्रधान देश है मिथिला एक ऐसा भूभाग है जहां पर कृषि वारिश पर आधारित है वारिश के लिए इंद्रदेव को गाना गाकर रिझाया जाता है जिस गीत को जटा-जटिन कहते हैं, प्रकृति पूजन के लिए अलग गीत है।
सीता की धरती मिथिला की भाषा मैथिली है जो सीता का पर्याय भी है। इस भाषा को अंग्रेजी भाषाविद जार्ज ग्रियसर्न ने दुनिया की मधुरतम भाषा की संज्ञा दी थी, ग्रियर्सन भारत में भाषाई सर्वेक्षण पर बहुत बड़ा काम किया था मैथिली की मधुरता को बयां करते हुए उन्होंने लिखा था जब दो मैथिली महिलाएं किसी रंजिश वस आपस में झगड़ती हैं तो महसूस होता है कि वे गाना गा रही हैं। इस क्रिया में वे सूर्य व अग्नि को साक्षी बनाती हैं।
यहां की जीवन शैली कुछ ऐसा है कि जिंदगी उत्सव मनाने जैसा है, विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार कि गीत गाये जाते हैं, बच्चों के जन्म पर शुभ आगमन को दर्शाते हुए सोहर गीत, बच्चा लड़का हो या लड़की जन्म के छठे दिन छठियारी मनाई जाती है इस अवसर पर छठियारी गीत गाया जाता है।
अमूमन जन्म के तीन साल बाद पहली बार कैची से बाल काटने की परंपरा है और इसके लिए पूजा-अर्चना की जाती है। इस संस्कार में मुंडन गीत गाने की परंपरा है। इस गाने में पारंपरिक वाद्ययंत्र का भी प्रयोग किया जाता है। इसमें ढोलक का स्थान प्रमुख है।
उम्र के पांच सात व नौ वर्ष में उपनयन संस्कार की परंपरा है, इस परंपरा में सर के बाल उस्तुरे से काटा जाता है। एक वृहद यज्ञोपवीत यज्ञ किया जाता है। समाज के सभी जाति-वर्गों का सरिक होना अनिवार्य माना जाता है। इस यज्ञोपवीत संस्कार में जनेऊ गीत गाने की परंपरा है। कई वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है, जिसमें ढोल-बांसुरी आवश्यक है।
परीक्षण का अर्थ है परीक्षा लेना। स्वास्थ्य की सलामती के लिए दुआ करना। इस स्वास्थ्य लाभ की कामना को भी संगीत में पिरोया गया है। स्वास्थ्यवर्धन के लिए चुमने की परंपरा है। जिसे चुमाउन कहते हैं। और इस अवसर पर चुमाउन गीत महिला टोली बनाकर गीत गाती हैं। जो बिहंगम श्य पैदा करता है। ललाट पर तिलक, लाल व पीत वस्त्र देखने को मिलता है।
आमतौर पर वर व कन्या के पिता को समधि कहा जाता है। समधि का स्थान काफी ऊंचा होता है। उनके साथ काफी हास्य-व्यंग्य किया जाता है। गाली को संगीत में पिड़ोकर समधि को सुनाया जाता है। जो बड़े ही रोचक होता है। संगीतमय गाली शायद ही दुनिया के किसी कोने में होगा। इस गाली को बुरा नहीं माना जाता है, बल्कि लुत्फ के साथ ठहाका लगाते हैं। धन्य है मिथिला की संगीत दुनिया व जीवन शैली। मिथिला अपने आप में एक दर्शन है।
बेटी का स्थान मिथिला में सर्वोपरि है माना जाता आ रहा है कि हर कण में यहां बेटी है। चूंकि सीता का जन्म मिट्टी के गर्भ से हुआ था। अपनी बेटी के प्रति असीम अनुराग को व्यक्त करने के लिए समदाउन गीत गाया जाता है। इस गीत के दौरान पुरुष हो या स्त्री सबके आंखों से आंसू बहने लगता है। मानो, रोने-रुलाने के लिए भी गीत-संगीत है।
मिथिला में विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले गीत :
बच्चों के जन्म पर सोहर : आंगन में चान उतरलै लैह बौआ जन्म लेलक ललना रे..
मुंडन संस्कार : हजमा नहुँ नहुँ कटिहें बौआ के केस रे…
जनेऊ के अवसर पर : मड़वा पर बैसल छथि बड़वा भिखाड़ी बनि क’..
परिछन गीत : परिछन चलियो सखी सुंदर जमाय हे सेहाओन लागय..
विवाह गीत : जेहने किशोरी मोरी तेहने किशोर हे विधना लगावल जोड़ी ..
डहकन : समधी को खाना खिलाने के दौरान गया जाता है। गीत : सुनाउ हिलिमिल क’ समधि के डहकन सुनाउ ..
समदाउन गीत बेटी के विदाई पर : बड़ रे जतन सँ सिया धिया के पोसलहुँ सेहो रघुवर लेने जाय.
विरह गीत : बाबा के दुलारी धिया नैहर मे रहलौं बड़ दुख माय गे सासुर में सहलौं आदि।
मिथिला में अतिथि सत्कार को देखकर कहा जा सकता है कि सही मायने में ‘अतिथि देवो भव’ की परिकल्पना को मिथिला सौ फीसदी पूरा करता है।
(लेखक ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक एवं मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं)