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एक लॉर्ड ने ग्रामीण पंजाब में शिक्षा के जरिए उतारा मातृभूमि का कर्ज

संघोल (पंजाब), 24 जून (आईएएनएस)| उन्होंने भले ही एक बड़ी संपत्ति खड़ी कर ली हो और ‘ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमंस’ के एक सदस्य बन चुके हों, लेकिन जहां तक मातृभूमि से प्यार करने की बात है, तो वह अपनी जड़ों से गहरे तक जुड़े व्यक्ति हैं।

जी हां, ब्रिटेन के शीर्ष व्यवसायियों में से एक ‘लॉर्ड’ दिलजीत राणा ने कृषि प्रधान राज्य पंजाब के दूर दराज के गांवों के विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए पंजाब की ग्रामीण इलाकों में कई शिक्षण संस्थान स्थापित किए हैं।

चंडीगढ़ से लगभग 40 किलोमीटर दूर संघोल गांव में हड़प्पा खुदाई स्थल के दाहिनी तरफ स्थित ‘द कोर्डिया एजुकेशन कॉम्प्लेक्स’ को राणा ने राज्य के पिछड़े और ग्रामीण इलाके तक बेहतर शिक्षा पहुंचाने के उद्देश्य से स्थापित किया था। यह स्थान फतेहगढ़ साहिब जिले में आता है।

राणा ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में कहा, मैंने पंजाब के ग्रामीण इलाके में अच्छी शिक्षा पहुंचाने का निश्चय किया था, क्योंकि गांवों के अधिकतर विद्यार्थियों के पास गांव छोड़ने और उच्च शिक्षा पाने के साधन नहीं थे। हमारा पहला कॉलेज 2005 में शुरू हुआ। हमारे अब छह कॉलेज हैं, जिनमें स्नातक, परास्नातक पाठ्यक्रम चलते हैं।

लॉर्ड राणा एजु-सिटी 27 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली हुई है, जिसमें व्यापार प्रबंधन, हॉस्पिटलिटी और पर्यटन प्रबंधन, कृषि, शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।

राणा ने कहा, मेरी मां ज्वाला देवी का जन्मस्थान होने के कारण संघोल को मैंने शिक्षण संस्थान स्थापित करने के लिए चुना। परियोजना में प्रतिबद्धता, समय और धन का निवेश हुआ है। यहां आने वाले ज्यादातर छात्र ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों से होते हैं, जिसके कारण उन्हें पढ़ाना एक चुनौती है।

पंजाब मूल के राणा 1955 में इंग्लैंड चले गए थे और तब उनका वहां बसने का कोई मन नहीं था। उत्तरी आयरलैंड में कुछ समय बिताने के बाद रेस्तरां, होटल और अन्य व्यवसाय के जरिए छह करोड़ पाउंड का साम्राज्य खड़ा करने में उन्होंने काफी कड़ी मेहनत की।

ग्रामीण पंजाब में शिक्षा जैसी परोपकारी पहल करने वाले राणा को दुख है कि उन्हें भी दफ्तरशाही और नौकरशाही से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ा।

राणा कहते हैं कि विश्वविद्यालय परिसर स्थापित करने के लिए न्यूनतम 35 एकड़ भूमि की अनिवार्यता आड़े आ रही थी।

उन्होंने कहा, यहां कानून पुराने हैं। दुनियाभर में कई विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में इससे भी कम जमीन है। यहां नियमों में बदलाव किए जाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने के लिए दो करोड़ रुपये जो राज्य सरकार को वहन करने हैं, लगभग 2.5 वर्षो से अटके हैं, जिससे हमें आर्थिक समस्या हो रही है।

उन्होंने कहा, ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बेहतर शिक्षक ढूढ़ना भी एक मुश्किल काम है। परियोजना की प्रगति देखने के लिए मैं तीन-चार महीनों में भारत का दौरा करता हूं।

देश का विभाजन देख चुके और खुद एक शरणार्थी परिवार से ताल्लुक रखने वाले राणा ने कहा कि वह जब भारत के पंजाब आए थे तो उनके पास कुछ नहीं था। राणा का परिवार विभाजन के बाद पाकिस्तान के लायलपुर से भारत के पंजाब आकर बस गया था।

1980 के दशक में उत्तरी आयरलैंड में सांप्रदायिक हिंसा में उनके कुछ प्रतिष्ठानों पर 25 से ज्यादा बम विस्फोट हुए थे, लेकिन राणा हिंसाग्रस्त क्षेत्र में भी दृढ़ बने रहे। इसके बाद वह यूनाइटेड किंगडम के सबसे सफल और सम्मानित व्यवसायियों में शुमार हो गए। वह उत्तरी आयरलैंड में भी समाज कल्याण के काम करते रहते हैं और ब्रिटिश सरकार उनकी सेवाओं का सम्मान करती है।

उत्तरी आयरलैंड में भारत के मानद महावाणिज्यदूत के तौर पर नियुक्त राणा ‘ग्लोबल ऑर्गनाइजेशन ऑफ पीपुल ऑफ इंडियन ऑरिजिन’ के अध्यक्ष भी हैं।

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