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स्कूल ने पेश की शिक्षा के समान अवसर की बानगी

लखनऊ, 24 जून (आईएएनएस)| भारत की संसद द्वारा वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार कानून बनाने से करीब दो दशक पहले एक अध्यापिका ने समाज के हर तबके के बच्च्चों को एक साथ समान शिक्षा प्रदान करने के मकसद से लखनऊ में एक निजी स्कूल खोला था।

यह स्कूल आज सामाजिक समाकलन में शिक्षा के समान अवसर की बानगी पेश करता है।

स्कूल में उच्च सामाजिक दर्जा और आर्थिक रूप से संपन्न परिवार से लेकर गरीब, सुविधाहीन और वंचित परिवार के बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है और उनकी शैक्षणिक तरक्की में उनकी आर्थिक व सामाजिक पृष्ठभूमि बाधक नहीं है।

मूल रूप से केरल निवासी लक्ष्मी कौल घरों में काम करने वाली आया, ड्राइवर, चपरासी जैसे कम आय वाले लोगों के बच्चों को अपने स्कूल में पढ़ाती हैं। उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि उनके बच्चों के साथ स्कूल में कोई भेदभाव न हो।

शहर के बीचोबीच इंदिरानगर इलाके में कौल का ‘केकेएकेडमी’ नामक स्कूल में चार्टर्ड अकाउंटेंट, डॉक्टर, वकील जैसे पेशेवरों के बच्चे भी पढ़ते हैं। मतलब, यहां गरीब और अमीर की शिक्षा में कोई अंतर नहीं है।

कौल ने अपनी बेटी को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने के लिए 1989 में इस स्कूल की स्थापना की थी।

लक्ष्मी कौल ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, उस समय भी स्कूल काफी महंगे थे। गरीब तबकों के लिए अपने बच्चों को निजी स्कूल भेजना काफी महंगा था। मैं और मेरे पति (अरविंद कौल) इससे चिंतित थे। एक दिन हमने सोचा कि क्यों न अपना स्कूल खोला जाए।

कौल ने 1980 के दशक के आरंभ में ही भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) बेंगलुरू में प्रबंधन का गुर सीखा था लेकिन कॉरपोरेट की नौकरी उन्हें रास नहीं आई और उन्होंने अपने जीवन में कुछ सार्थक करने को सोचा।

उन्होंने अपने घर के गैराज में पांच बच्चों के साथ स्कूल खोला। जल्द ही उसमें काफी बच्चे हो गए, क्योंकि स्कूल की फीस कम थी और लोगों के लिए यहां अपने बच्चों को पढ़ाना आसान था।

स्कूल में बच्चों की तादाद बढ़ने पर उन्होंने अपने घर से कुछ सौ मीटर की दूरी पर एक घर ले लिया।

उन्होंने बताया, बतौर प्रबंधन क्षेत्र के पेशेवर हमने यह महसूस किया कि लक्ष्य बहुत अच्छा है। मगर घर चलाने की भी जम्मेदारी थी, इसलिए फैसला लिया। फैसला लेना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन हम कहीं दांव लगाने को तैयार नहीं थे। आखिरकार मैं और मेरे पति ने यह तय कर लिया कि स्कूल को ही अपने बेहतर कौशल से संवारना है।

स्कूल का विस्तार अब कई गुना हो चुका है। इसमें 3,250 से भी ज्यादा बच्चे हैं और यहां पहली से लेकर सातवीं कक्षा तक बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था है।

उन्होंने कहा, हमारा मुख्य मकसद यह है कि गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सबको मिलनी चाहिए, चाहे वह किसी जाति वर्ग धर्म और विशेष वर्ग या आर्थिक पृष्ठिभूमि का हो।

कौल ने कहा कि इस स्कूल में पढ़ने वाले कई बच्चों के माता-पिता ऐसे हैं जो गर्व से कहते हैं कि साहब के बच्चे भी उसी स्कूल में पढ़ते हैं जिसमें उनके बच्चे पढ़ते हैं।

उन्होंने कहा, ये सब कुछ ऐसी बातें हैं जो निर्बाध रूप से समाजिक समाकलन की सच्ची मिसाल पेश करती हैं। हमारे पास किसी भी बच्चे के माता पिता की ओर से कोई शिकायत नहीं आती है। जो हमारी संकल्पना को सही नहीं ठहराते हैं।

स्कूल के संस्थापक ने बताया, मैंने कभी बच्चों को उनकी पृष्ठिभूमि के आधार पर तुलना करते हुए नहीं पाया। सच तो यह है कि हमने उनको बहुत अधिक समझदार और मददगार पाया है। इसका श्रेय शिक्षकों को जाता है जो बिल्कुल भी भेदभाव नहीं करते हैं किसी प्रकार के पूर्वाग्रह हो सहन नहीं करते हैं। बच्चे भी इसका अनुकरण करते हैं।

उन्होंने बताया कि 2011 में स्कूल में एक सालाना अवार्ड शुरू किया गया। यह अवार्ड आईआईएम के प्रोफेसर जीके वैलेचा की याद में शुरू की गई। इस अवार्ड के लिए बच्चों का चयन उनकी अकादमिक प्रगति नेतृत्व कौशल और सीखने के लिए ललक और छात्रों व शिक्षकों के साथ घुलने मिलने के आधार पर किया जाता है। पिछले पांच साल में चार साल के दौरान उन्हीं बच्चों को यह अवार्ड मिले हैं जिनका खर्च स्कूल उठाते हैं। इस स्कूल से पढ़े कई बच्चे अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करते हैं और अपने अपने क्षेत्र में सफल हैं।

इस साल सीबीएसई बोर्ड की 10वीं कक्षा परीक्षा में 93 फीसदी अंक लाने वाला हृतिक वर्मा स्कूल की मेड का पोता है और 91 फीसदी अंक लाने वाला कनौजिया डाइवर का बेटा है। दोनों ने सातवीं तक की पढ़ाई हमारे स्कूल से की है। आईसीएससी बोर्ड परीक्षा में 92 फीसदी अंक लाने वाले कबीर अली के पिता दर्जी हैं।

स्कूल के प्रबंधन व संचालन के लिए बहुत कम शुल्क रखा गया है और स्कूल को कभी-कभी कुछ मदद भी मिल जाती है। खासतौर से कॉरपोरेट जगत में महत्वपूर्ण व शक्तिशाली पद संभालने वाले आईआईएम में लक्ष्मी के बैचमेट स्कूल के संचालन में उन्हें आर्थिक मदद करते हैं।

स्कूल में आज एक कंप्यूटर लैब जहां बच्चों के लिए कई टैबलेट हैं। इसके अलावा एक पुस्तकालय भी है जिसमें पुस्तकों का अच्छी संग्रह है।

प्रमुख आईटी कंपनी में कार्यरत स्कूल का एक छात्र हाल ही में अपनी गर्लफ्रेंड के साथ स्कूल आया था।

भावुक होकर लक्ष्मी ने बताया, लड़के ने कहा कि वह अपनी होने वाली पत्नी को अपने माता-पिता से पहले मुझसे मिलाना चाहता था।

आया फूलमी के तीन पोते-पोतियां इस स्कूल से पढ़कर निकलने के बाद अब ऊंचे दर्जे में दूसरे अच्छे स्कूल में पढ़ते हैं।

स्कूल में प्रथम आरटीई छात्र के रूप में दाखिल छात्र दुर्गेश की मां गुलाब देवी ने बताया कि पहले उनका बेटा बोल भी नहीं पाता था मगर अब वह बोले बिना रुकता ही नहीं है।

फार्मासिस्ट की बेटी श्रेया वर्मा ने भी कहा कि स्कूल ने उसकी जिंदगी बदल दी है।

महिला पुलिस इंस्पेक्टर की बेटी आव्या के गाने की तारीफ उसकी अध्यापिका भी करती है।

लक्ष्मी कौल ने कहा कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध काव्य पंक्ति ‘एकला चलो..’ से प्रेरणा लेकर वह समाज के हर तबके के बच्चों को शिक्षित करने के मिशन पर निकली थीं।

(यह साप्ताहिक फीचर श्रंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है)

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