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‘कीटनाशी दवाओं का 37 हजार करोड़ का देसी उद्योग खतरे में’

नई दिल्ली नई दिल्ली, 6 जून (आईएएनएस)| देसी कीटनाशी दवा विनिर्माता कपंनियों ने बुधवार को कहा कि आयातित कीटनाशी दवाएं किसानों के लिए महंगे साबित हो रहे हैं और इससे घरेलू उद्योग प्रभावित हो रहा है।

कंपनियों ने कहा कि इससे 37,000 करोड़ रुपये का कीटनाशी दवाओं का देसी उद्योग खतरे में है। पेस्टिसाइट्स मैन्युफैक्च र्स एंड फॉम्युर्लेटर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया (पीएमएफएआई ) के अध्यक्ष और कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया स्मॉल एंड मीडियम पेस्टिसाइट्स मैन्युफैक्च र्स (सीएपीएमए) के चेयरमैन प्रदीप दवे ने यहां एक प्रेसवार्ता में कहा, घटिया क्वालिटी के कीटनाशकों के आयात से देश के किसानों को नुकसान हो रहा है, जबकि घरेलू उद्योग पर संकट छा गया है। यह स्थिति 2007 में सरकार द्वारा कीटनाशकों के आयात को मंजूरी प्रदान करने से पैदा हुई है।

उन्होंने कहा कि पहले विदेशी कंपनियां भी भारत में कीटनाशक व तृणनाशक बनाती थीं, मगर अब उन्होंने अपने मैन्युफैक्चरिंग टेक्निकल्स व फॉम्र्युलेशन प्लांट बंद कर दिए हैं और इन दवाओं का आयात करके यहां बेचती हैं।

दवे ने कहा कि मौजूदा सरकार से इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने की उम्मीद थी, मगर सरकार ने अब तक उनकी मांगों पर गौर नहीं किया है।

उन्होंने कहा कि आयात बढ़ने से देसी उद्योग प्रभावित हुआ है और किसानों पर भी आर्थिक बोझ बढ़ा है क्योंकि आयातित उत्पाद महंगे हैं।

उन्होंने बताया कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद बिसपायरिबैक सोडियम का दाम घरेलू बाजार में 8,000 रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि यही तृणनाशक जो भारतीय कंपनी बनाती है उसकी कीमत महज 3,000 रुपये प्रति किलोग्राम है। इसका उपयोग धान की फसल में किसान करते हैं।

एसोसिएशन ने सरकार से टेक्निकल ग्रेड को रजिस्टर किए बिना रेडीमेड पेस्टिससाइड फॉम्युर्लेशन के आयात को मंजूरी नहीं देने की मांग की है।

दवे ने बताया कि कीटनाशकों के कारोबार में ज्यादातर चीन, यूरोप और अमेरिकी कंपनियां भारत में अपने पैर पसार रही हैं जबकि घरेलू कंपनियों बंद होने की कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख कार्यक्रम ‘मेक-इन इंडिया’ की सफलता पर सवाल उठता है।

दवे ने कहा कि 37,000 करोड़ रुपये का कीटनाशकों का देसी उद्योग खतरे में है।

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