‘जन्मजात हृदय रोग की अनिवार्य जांच पर राष्ट्रीय नीति की जरूरत’
नई दिल्ली, 29 मई (आईएएनएस)| राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में शिशु मृत्युदर (आईएमआर) 34 प्रति 1000 जीवित जन्मों पर आधारित है।
इन शिशु मौतों में से लगभग 10 प्रतिशत के लिए अकेले जन्मजात हृदय रोग (सीएचडी) को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मंगलवार को एक परिसंवाद के दौरान चिकित्सा विशेषज्ञों ने इस गंभीर रोग पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय नीति की जरूरत महसूस की है। परिसंवाद के दौरान बताया गया कि देश में लगभग 1.5 लाख शिशु सीएचडी के साथ पैदा होते हैं। गर्भावस्था के दौरान समय पर स्क्रीनिंग कराने से इस गंभीर रोग पता लगाया जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए भारत के सभी स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों में सीसीएचडी स्क्रीनिंग अनिवार्य बनाने की राष्ट्रीय नीति तैयार करवाने के लिए अभियान शुरू करने पर जोर दिया गया।
सीसीएचडी स्क्रीनिंग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भारत आने वाले एक विशेष बायोमेडिकल वैज्ञानिक, डॉ. अन्ना डि-वहल ग्रेनेली ने भी चर्चा में भाग लिया।
चर्चा में भाग लेते हुए हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, कई नवजात शिशुओं में सीसीएचडी होता है, लेकिन अक्सर इसका पता डिस्चार्ज होने के बाद ही चल पाता है। निदान या डायग्नोसिस में ऐसी देरी से बार-बार अस्पताल में भर्ती होने की संभावना बढ़ती है और लंबी अवधि में मृत्युदर बढ़ती जाती है। इस प्रकार, न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग यह सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति हो सकती है कि उचित स्क्रीनिंग तंत्र के अभाव में किसी शिशु की मृत्यु न हो जाए।
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार करने की जरूरत है, जो देश में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों में भी सीसीएचडी की अनिवार्यता सुनिश्चित करेगी। ऐसा होना संभव है, यदि सभी प्रासंगिक हितधारक इस अभियान में शामिल हो जाएं और इसका समर्थन करें।
स्वीडन के ट्रोलहैटन स्थित एनयू हॉस्पिटल ग्रुप के कार्डियोलॉजी हेड डॉ. अन्ना ग्रेनेली ने कहा, पल्स ऑक्सीमेट्री शिशुओं में महत्वपूर्ण हृदय दोषों का पता लगाने में एक सिद्ध तकनीक है। हालांकि, अपने शोध के दौरान मैंने पता किया कि सभी पल्स ऑक्सीमीटर समान नहीं हैं। सीसीएचडी प्रोग्राम लॉन्च करने वाले संस्थानों को सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद एक विश्वसनीय तकनीक का चयन करना चाहिए।
उन्होंने कहा, जांच और उपचार में देरी होने पर सीसीएचडी से प्रभावित मामलों के नतीजे खराब निकल सकते हैं। शिशु अस्पताल छोड़े, उससे पहले ही इन स्थितियों की जांच जटिलताओं और मृत्युदर को रोक सकती है। मुझे यकीन है कि हम भारत में इस क्षेत्र में भी सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और अनिवार्य स्क्रीनिंग के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनवा सकते हैं।
डॉ. ग्रेनेली ने कहा कि शिशुओं में सीसीएचडी के कुछ संकेतों को समझा जा सकता है, जैसे- त्वचा के रंग में बदलाव, साइनोसिस (त्वचा, होंठ व नाखूनों में नीलापन), चेहरे, हाथों, पैरों या आंखों के आसपास सूजन, सांस तेजी से चलना या दूध पीते समय सांस तेज होना, सिर के चारों ओर पसीना आना।
नेशनल नियोनैटोलॉजी फोरम के अध्यक्ष डॉ. बी.डी. भाटिया ने कहा, सीसीएचडी के कारण मरने वाले शिशुओं की संख्या के मामले में वर्तमान दशा गंभीर है। इसीलिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति को जल्द से जल्द लागू करने की जरूरत है। पल्स ऑक्सीमेट्री स्क्रीनिंग न केवल सस्ती है, बल्कि प्रति बच्चे में 2 से 3 मिनट से भी कम समय लेती है, यानी इसमें लागत से कहीं अधिक लाभ है।
उन्होंने कहा, स्क्रीनिंग को बुनियादी प्रशिक्षण के बाद आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी लागू कर सकते हैं। हमें यकीन है कि प्रासंगिक हितधारकों के बीच इस तरह की उच्चस्तरीय बैठक और चर्चा से हमें सर्वसम्मति तक पहुंचने में मदद मिलेगी और सकारात्मक नतीजे मिलेंगे।
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक एवं एचओडी, डॉ. सीतारमण राधाकृष्णन ने कहा, कम ऑक्सीजन स्तर से जुड़े सीएचडी के साथ पैदा होने वाले बच्चों को स्क्रीन करने के लिए पल्स ऑक्सीमेट्री एक बहुत ही सरल और सस्ता टूल है। इस उपकरण द्वारा ली गई ऑक्सीजन रीडिंग का विश्लेषण करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। इसके लिए स्पष्ट दिशानिर्देश उपलब्ध हैं।
जेपी हॉस्पिटल की बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मिता मिश्रा ने कहा, पल्स ऑक्सीमेट्री के साथ सीसीएचडी की स्क्रीनिंग का प्राथमिक लाभ अस्पताल से नवजात की छुट्टी से पहले ही स्थिति की समय पर पहचान होना है। पल्स ऑक्सीमेट्री के साथ यूनिवर्सल स्क्रीनिंग होना सिर्फ शारीरिक परीक्षा करने से बेहतर है। सीसीएचडी को प्राथमिकता देने में अन्य देशों के अनुभव का भी लाभ लेना चाहिए।
परिसंवाद के दौरान बताया गया कि केरल में तमिलनाडु सरकार के कुछ अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों- जैसे मणिपाल ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, सेंट मार्थाज हॉस्पिटल, बेंगलुरू और क्लाउनाइन हॉस्पिटल ने सफलतापूर्वक स्क्रीनिंग सिस्टम को अपनाया है। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल ने भी नवजात सीसीएचडी स्क्रीनिंग के महत्व को पहचाना है और इसे नीति के रूप में अपनाने की दिशा में काम जारी है। अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की जरूरत है।