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अर्जुन वाजपेयी ने कंचनजंघा फतह कर रचा इतिहास

सेराम (नेपाल), 25 मई (आईएएनएस)| पर्वतारोही अर्जुन वाजपेयी ने विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी (8,000 मीटर से अधिक) कंचनजंघा को फतह कर इतिहास रच दिया है।

इतिहास इसलिए क्योंकि वह इस चोटी को फतह करने वाले सबसे कम उम्र के पर्वतारोही हैं। अपनी इस उपलब्धि को अपने नाम जोड़कर सुबह तड़के हेलीकॉप्टर से जब वह पूर्वी नेपाल स्थित अपने गांव पहुंचे तो लोग उनका स्वागत करने के लिए उमड़ पड़े।

24 वर्षीय इस पर्वतारोही ने 20 मई को यह उपलब्धि हासिल की थी। चोटी पर चढ़ाई के दौरान उन्हें बदलते मौसम से जूझना पड़ा और जब वह अपना चोटी फतह करने के करीब थे, तब उन्हें ऑक्सीजन की कमी का भी सामना करना पड़ा।

अपनी पूरी दुर्गम यात्रा के दौरान वह जरा भी भयभीत नहीं हुए, जिसमें हिमस्खलन, चट्टानों के गिरने और दरारों को पार करते हुए वह आगे बढ़ते गए।

अर्जुन वाजपेयी 8,000 मीटर से अधिक ऊंची चोटी को फतह करने वाले दुनिया के सबसे कम उम्र के पर्वतारोही बन गए हैं। अब उनका अगला लक्ष्य तिब्बत के न्यालम काउंटी में स्थित शीशपांगम चोटी (8,013 मीटर) है।

दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा पर बिताए 15 मिनट के अपने अनुभव बयान करते हुए वाजपेयी कहते हैं कि यह बहुत ही शानदार अनुभव रहा।

वाजपेयी ने आईएएनएस से कहा, यह वही स्थान है, जहां मैं हमेशा पहुंचना चाहता था। यह वही जगह है, जहां पहुंचने के लिए मैं वर्षो से कोशिश कर रहा हूं। इसलिए जब मैंने चढ़ाई शुरू की तो पूरी तरह भावनाओं से भरा हुआ था, पूरे 100 प्रतिशत। मेरे भीतर न कोई और इच्छा, न कोई दूसरा सपना, और न तो किसी तरह की अशांति।

उन्होंने 20 मई को भारतीय समयानुसार सुबह 8.05 बजे चोटी फतह की और कहा कि वह शिविर चार के बाद की यात्रा से काफी चकित थे, क्योंकि यह लगातार ऊपर उठती जा रही थी।

उन्होंने कहा, आम तौर पर किसी पहाड़ी पर ऐसे स्थान होते हैं, जहां आप अपने पीट्ठ बस्ते को कुछ पल के लिए उतार सकते हैं। लेकिन शिविर चार (लगभग 7,400 मीटर) के बाद, वहां ऐसा कोई स्थान नहीं था, जहां आप अपना पिट्ठ बस्ता उतार सकें। वहां कोई ऐसी जगह नहीं, जहां आप थोड़ा आराम कर सकें। यह जटिल था और एक बिंदु के बाद परेशान करने वाला और थकाऊ था।

उन्होंने कहा कि लगभग 8,300 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद भी चोटी दिखाई नहीं दे रही थी और ऐसा लग रहा था कि चढ़ाई कभी खत्म ही नहीं होगी।

वाजपेयी ने कहा, यह जैसे अंतहीन लग रहा था। मेरे पैर ठंडे हो गए। मैं 12-13 घंटे से लगातार चढ़ाई करता जा रहा था।

उन्होंने कहा कि चढ़ाई का अंतिम बिंदु बहुत लंबा था और इसके लिए पहाड़ की पूरी चौड़ाई को पार करना था और यह एक दूसरी बड़ी चुनौती थी।

अर्जुन वाजपेयी के भीतर पर्वतारोही बनने की इच्छा उस समय जागी, जब वह अपने दादा-दादी के साथ बचपन में सहयाद्रि पर्वतमाला गए थे।

उन्होंने वर्ष 2009 में पर्वतारोहण के प्राथमिक और उन्नत पाठ्यक्रम किए और अगले वर्ष माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) की चढ़ाई की। वर्ष 2011 में उन्होंने लोत्से (8,516 मीटर) और मनास्लु (8,156 मीटर) की चढ़ाई की।

अगले चार वर्षो में कोई सफलता नहीं मिली और वर्ष 2012 में चो ओयू (8,201 मीटर) की चढ़ाई के दौरान उन्होंने मौत को करीब से देखा, जब उनके शरीर के बाएं हिस्से को लकवा मार गया।

स्वस्थ होने के बाद उन्होंने वर्ष 2013 में मकालू (8,481 मीटर) पर चढ़ाई की कोशिश और 2014 में उन्होंने एक बार फिर कोशिश की, लेकिन जब वह मंजिल के करीब पहुंच चुके थे, तभी उन्हें वापस लौटना पड़ा था।

अंतत: वर्ष 2016 में उन्होंने मकालू और चो ओयू फतह कर ली। वर्ष 2017 में उन्होंने कंचनजंघा पर चढ़ाई का प्रयास किया, लेकिन खराब मौसम के कारण वह चोटी तक नहीं पहुंच पाए।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में शेरपाओं और पर्वतारोहियों के बीच समन्वय काफी बेहतर था और हालांकि, प्रारंभ में खराब मौसम होने के बावजूद अंतत: सफलता मिल ही गई।

उन्होंने बताया, मैंने धरती पर नीचे तीन पहाड़ियों को देखा। और उस क्षण मेरे भीतर अपनी यात्रा की स्मृतियां कौध उठीं। मुझे लगा कि हम इस यात्रा में कितने दूर आ गए हैं। हम कितने संघर्ष किए हैं। हमने कितने ऊंचे सपने देखे हैं। सपने कितने ऊंचे हो सकते हैं। वे सपने आपको कितना प्रेरित कर सकते हैं। और वे कैसे आपको यहां पहुंचा सकते हैं।

पेय ब्रांड माउंटेन ड्यू 2016 से वाजपेयी के साथ उनके पर्वतारोहण में सहयोग कर रहा है।

पेप्सिको इंडिया में माउंटेन ड्यू के निदेशक नसीब पुरी ने कहा कि वे अपनी यात्रा के जरिए युवाओं को असाधारण उपलब्धि हासिल करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।

उन्होंने कहा, हम युवाओं को वास्तविक शिखर (जो हम सभी के भीतर है) फतह को प्रेरित करने की कोशिश करते हैं।

सेराम गांव 3,870 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कंचनजंघा के अग्रिम आधार शिविर से लगभग 1,500 मीटर नीचे है।

वाजपेयी का अगला लक्ष्य अनुपूरक ऑक्सीजन लिए बगैर 8,000 मीटर की किसी चोटी को फतह करना है।

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