‘शरणार्थियों, आव्रजकों के एकीकरण के लिए सामाजिक स्वीकार्यता अहम’
सोनीपत, 18 मई (आईएएनएस)| ओ. पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने संयुक्त राष्ट्र की एक संगोष्ठी में कहा कि सामाजिक स्वीकार्यता शरणार्थियों और आव्रजकों के एकीकरण का सोपान है। यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ बिहैविअरल साइंसेज के प्रधान निदेशक एस. पी. साहनी ने कहा, शरणार्थियों और आव्रजकों का एकीकरण बहु-सामुदायिक दायित्व है जिसकी मेजबानी सरकार, गैर-सरकारी संगठन, समुदाय और स्थानीय निवासियों पर है।
वियना में 14 से 18 मई तक पांच दिवसीय संयुक्त राष्ट्र संगोष्ठी का आयोजन किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के अनुसार, दुनियाभर में 6.56 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें जबरदस्ती विस्थापित किया गया है। इनमें से 1.61 करोड़ परिषद के पंजीकृत शरणार्थी हैं जबकि 52 लाख संयुक्त राष्ट्र राहत कार्य एजेंसी में पंजीकृत हैं। इनमें से अनेक 18 वर्ष से कम उम्र के हैं।
करीब एक करोड़ लोग ऐसे हैं जिनको राष्ट्रीयता की पहचान और शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार और आवागमन की आजादी जैसे बुनियादी अधिकार देने से इनकार कर दिया गया है।
साहनी ने कहा कि सुरक्षा और बेहतर भविष्य की आशा में जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया है, उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी खतरा है। लिहाजा उन्हें अनुकूल व सर्वागीण विकास का माहौल प्रदान करने की जरूरत है।
कार्यक्रम में दुनियाभर से शरणार्थी संकट के विशेषज्ञ, मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने में अग्रणी, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के पेशेवर और कानूनी क्षेत्र के दिग्गजों ने हिस्सा लिया।