IANS

मोदी ‘विजय-वरदान’ पाने को हुए सीता के शरणागत

नई दिल्ली, 14 मई (आईएएनएस)| चाहे नारी शक्ति की महिमा कहें या भगवान राम की अर्धागिनी का आकर्षण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगने लगा है कि आखिरकार जगत जननी सीता ही अगले आम चुनाव में उन्हें विजय दिला सकती हैं। इसलिए मोदी सीता का वरदान पाने के लिए सीता के शरण में जनकपुर पहुंचे।

राम के सहारे भारतीय जनता पार्टी 2014 में सत्ता में आई और उसके बाद से इक्का-दुक्का उदाहरण छोड़ भारत के विभिन्न प्रांतों में भाजपा का विजयरथ लगातार गतिमान है। मोदी पिछले सप्ताह अपने दो दिवसीय नेपाल दौरे से लौटे हैं। मोदी ने नेपाल के जनकपुर से अपने दौरे की शुरुआत की और इस दौरे को प्रधानमंत्री का दौरा के बजाय एक ‘तीर्थयात्री की तीर्थयात्रा’ करार दिया।

निसंस्सदेह प्रधानमंत्री के राजकीय दौरे से कहीं ज्यादा यह उनकी तीर्थयात्रा ही थी, जिसके कूटनीतिक महत्व से अधिक राजनीतिक फायदे देखे जा रहे हैं। इसलिए जनकपुर के मंदिरों के दर्शन कर रहे मोदी की तस्वीरों से भाजपा को कर्नाटक चुनाव में वोट मिलने के कयास लगाए गए।

इसमें कहीं दो राय नहीं कि राममंदिर निर्माण के वादे के रथ पर सवार होकर ही मोदी के सबल नेतृत्व में भाजपा 2014 में सत्ता में आई और 2019 फतह करने के लिए इसके पास अब कोई वादा काम करने वाला नहीं है। लोकसभा चुनाव 2019 में उनके वादे-इरादे पर जनता अब भरोसा नहीं करेगी। विकास का मुद्दा भी 2004 के ‘इंडिया शाइनिंग’ की तरह हवा-हवाई साबित होने जा रहा है। ऐसे में भाजपा को एक ऐसी शक्ति की जरूरत है, जो उसे 2019 में दोबारा अजेय बहुमत दिला सके।

मोदी शायद इस बात को जान चुके हैं, इसीलिए वह आदिशक्ति की शरण में गए और जनकपुर में माता जानकी की पूजा-अर्चना की। दरअसल, मोदी को अगला आम चुनाव जीतने के लिए सीता के वरदान की दरकार है। उन्हें लगा कि सीता के शरण में जाने से उनपर राम की कृपादृष्टि अपने आप ही हो जाएगी, लोगों की सारी शिकायतें अपने आप दूर हो जाएंगी, यानी दैवीय चमत्कार होगा।

सीता नारीशक्ति का प्रतीक हैं। त्रेता युग में जनकपुर मिथिला के राजा जनक की राजधानी थी, जिनकी गोद ली गई पुत्री थी सीता। दुनिया में शायद गोद लेने की प्रथा का आरंभ में यहीं से हुआ होगा। एक राजा ने कन्या को गोद लिया था। सीता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है। जनक की पालिता पुत्री जानकी का जन्म बिहार के सीतामढ़ी में हुआ था।

जनकपुर आज नेपाल का हिस्सा है। सुगौली की संधि के तहत तत्कालीन मिथिला का एक बड़ा हिस्सा नेपाल में शेष हिस्सा बिहार में अवस्थित है। ‘सीता बिन राम अधूरा’ यह जनश्रुति मिथिला में प्रचलित है।

मोदी के नेपाल दौरे से जो नेपाल और भारत के रिश्तों में नई स्फूर्ति आई है, वह सीता के साथ राम की संर्पूणता का परिचायक है, जिसके सहारे मोदी की 2019 की नैया पार उतरेगी।

मोदी को इस बात का भलीभांति अहसास है कि राम की कृपादृष्टि अब सीता के सहारे ही मिल सकती है, इसलिए वह सीता के शरण में गए। मोदी ने अपनी इस यात्रा के दौरान 11 मई को जनकपुर से अयोध्या के बीच बस सेवा की शुरुआत की, जिससे दोनों देशों के बीच परस्पर सांस्कृतिक संबंध मजबूत होगा। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने जनकपुर के सौंदर्यीकरण पर 100 करोड़ रुपये खर्च करने का ऐलान किया। जनकपुर के विकास पर किया गया खर्च सीता की नगरी के महत्व को रेखांकित करता है।

सीता नारी सशक्तीकरण की भी पौराणिक मिसाल है। सीता को सबसे प्रतिव्रता नारी कहा जाता है। भगवान राम ने भी एकपत्नी व्रत धारण किया था। सीता शायद दुनिया में पहली लड़की होगी, जिसने अपने वर का चयन खुद किया था। सीता के विवाह के लिए जो स्वयंवर करवाया गया था, उसमेंभगवान राम को अपनी परीक्षा देनी पड़ी थी।

कहा जाता है कि राजा जनक को भगवान शिव ने एक धनुष दिया था, जिसे शक्ति-स्वरूपा सीता रोज अपने बाएं हाथ से उठाकर धनुष की जगह को लीपती थीं। यह देख राजा जनक हैरान थे कि जिस धनुष को उठाने की ताकत बड़े-बड़े शूरमाओं में नहीं है, उसे सीता अपने बाएं हाथ से उठा लेती हैं। जनक ने सीता के विवाह के लिए शर्त रखी कि जो धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी के साथ सीता की शादी होगी। यह योग्यवर की तलाश की परंपरा का भी सूचक है।

इसलिए नारी सशक्तीकरण का इससे बड़ा उदाहरण और कोई दूसरा नहीं हो सकता। सीता की धरती पर प्रागैतिहास काल में भी नारी का समाज में ऊंचा स्थान था।

नेपाल में सिर पर पाग, कपाल पर तिलक धारण किए और मधुबनी पेंटिंग अंकित अंगवस्त्र और परंपरागत कुर्ता पहने मोदी ऐसे लग रहे थे, जैसे वह मिथिलांचल के किसी वैवाहिक समारोह में शिरकत करने पहुंचे हों। निस्संदेह यह भगवान राम और माता सीता के विवाह की स्मृति ताजा करने का एक अवसर था। भारत सरकार ने मिथिलांचल के इसी ‘पाग’ पर वर्ष 2017 में डाक टिकट जारी किया था।

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