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जीवन की अनिश्चितता में ही इसकी सुंदरता : जोशुआ पोलॉक

लखनऊ, 13 मई (आईएएनएस)| जीवन की अनिश्चितता में ही इसकी सुंदरता है। बिना कल की चिंता किए आनंदित रहना चाहिए। आनंद हृदय से होता है। हृदय पर आधारित ध्यान हमें आत्मा से रूबरू कराता है। तब जाकर प्रेम, स्वीकार्यता, विनम्रता, सेवा और करुणा जैसे गुणों की अनुभूति होती है। यही है ‘द हार्टफुलनेस वे ऑफ मेडिटेशन’। यह कहना है ‘द हार्टफुलनेस वे’ के सह लेखक जोशुआ पोलॉक का।

दैनिक जागरण की ‘मुहिम हिंदी हैं हम’ के अंतर्गत आयोजित जागरण वातार्लाप में ‘अध्यात्म, ध्यान और साहित्य’ का मर्म टटोला गया। किताब ‘द हार्टफुलनेस वे’ के विमोचन के साथ ही सह लेखक जोशुआ पोलॉक ने पाठकों की जिज्ञासाओं को शांत किया। आइएएस पार्थ सारथी सेन शर्मा ने लेखक से संवाद किया। अनुवादक ऋषि रंजन ने भी लोगों के सवालों के जवाब दिए। आयोजन गोमती नगर स्थित जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में हुआ।

जोशुआ पोलाॉक ने कहा कि योग सूत्रों के आठ चरण हैं। पतंजलि ने आठ चरणों को मिलाकर एक मार्ग प्रस्तुत किया, जिसे अष्टांग योग के रूप में जाना जाता है। इन पर चलकर दिव्य से जुड़ सकते हैं। ये आठ योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि है। हार्टफुलनेस पद्धति में भी इनका अपना स्थान है।

जोशुआ पोलॉक ने कहा कि बौद्ध धर्म और पतंजलि आदि पर केंद्रित कई किताबें पढ़ीं। बड़े धर्म गुरुओं और उनके शिष्यों को भी पढ़ा। हमेशा लगा दर्शन शास्त्र शिक्षित करता है पर परिवर्तित नहीं। इसके लिए एहसास और अभ्यास जरूरी है। इसी से अध्यात्म की यात्रा शुरू की। इस यात्रा को कमलेश डी. पटेल ‘दाजी’ ने मुकाम तक पहुंचाया। यौगिक प्राणाहुति के साथ वार्ता आगे बढ़ी।

जोशुआ पोलॉक ने कहा कि यौगिक प्राणाहुति ही हार्टफुलनेस पद्धति का प्राण तत्व है। उन्होंने समझाया, हवा हर समय हमारे चारों ओर है, लेकिन हम उस पर ध्यान नहीं देते जब तक वह चलने न लगे। इसी तरह प्रति क्षण हमारे साथ रहने वाले ईश्वर पर भी हम गौर नहीं कर पाते। प्राणाहुति के द्वारा वह उपस्थिति सूक्ष्म रूप में जीवंत हो उठती है। दिव्य ऊर्जा हमारी ओर चलने के साथ हमारे अंदर संचारित होने लगती है। हृदय में होने वाला स्पंदन हमेशा उस आदि शक्ति का एहसास कराता है।

अनुवादक ऋषि रंजन ने कहा कि हार्टफुलनेस पद्धति का उद्देश्य ट्रांसमिशन (परिवर्तन) है। यह घर बैठे ही दिव्य से जुड़ने का अनुभव है। इसके लिए यौगिक प्राणाहुति के साथ सफाई (सोच के तरीकों और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं आदि से मुक्ति) और प्रार्थना का भी अपना महत्व है।

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