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नेत्रहीनता के लिए रेटिनल बीमारियां अधिक परेशानी का कारण : विशेषज्ञ

नई दिल्ली, 11 मई (आईएएनएस)| क्रोनिया (आंख के अगले हिस्से) से जुड़ी बीमारियां के बारे में लोग आमतौर पर जानते है जबकि रेटिना (आंख के पिछले हिस्से) से जुड़ी बीमारियों के बारे में लोगों को आसानी से पता नहीं चलता।

विशेषज्ञों का कहना है कि अंधापन होने के कारणों की वजहों में आंखों से जुड़ी अन्य बीमारियों की तुलना में रेटिनल बीमारियां ज्यादा परेशानी का सबब बनती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, विभिन्न रेटिनल विकारों में उम्र से जुड़ी मैक्यूलर डिजनरेशन (एएमडी) और डायबिटिक मैक्यूलर इडिमा (डीएमई) दो ऐसी बीमारियां हैं, जिससे हमेशा के लिए आंखों की रोशनी खोने का डर रहता है। एएमडी और डीएमई को आसानी से मैनेज किया जा सकता है, अगर समय पर बीमारी की पहचान हो जाए।

एम्स के पूर्व चिकित्सक एवं सीनियर कंसलटेंट विटरियोरेटिनल सर्जन और ऑल इंडिया कोलेजियम ऑफ ओपथालमोलोजी के प्रेसिडेंट डॉ. राजवर्धन आजाद ने कहा, रेटिनल बीमारियों जैसे कि एएमडी में धुंधला या विकृत या देखते समय आंखों में गहरे रंग के धब्बे दिखना, सीधी दिखने वाली रेखाएं लहराती या तिरछी दिखना लक्षण है। आमतौर पर रेटिनल बीमारियांे की पहचान नहीं हो पाती क्योंकि इसके लक्षणों से दर्द नहीं होता और एक आंख दूसरी खराब आंख की क्षतिपूर्ति करती है। यह तो जब एक आंख की रोशनी बहुत ज्यादा चली जाती है और एक आंख बंद करके देखते हैं तो पता चलता है। इसलिए इसके लक्षणों को समझना जरूरी है और इसकी पहचान कर विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए ताकि आंखों की रोशनी को बचाया जा सके।

उन्होंने कहा कि जिस तरह से कैमरे के अंदर फिल्म में तस्वीर बनती है, ठीक उसी तरह हमारी आंख के रेटिना में ही विजन बनता है। अगर रेटिना क्षतिग्रस्त हो जाए तो आंख की रोशनी खुद ब खुद चली जाती है। एएमडी रेटिना के माकूला को नुकसान पहुंचाता है, जिससे केंद्रीय दृष्टि प्रभावित होती है।

एएमडी बुजुर्गो को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। यह दुनिया में 8.7 फीसदी दृष्टिहीनता के लिए जिम्मेदार है। डायबिटिक रेटिनोपैथी आंखों के पीछे रेटिना में मौजूद ब्लड वेसेल्स को क्षतिग्रस्त करता है। इस बीमारी के कारण विश्व के 4.8 फीसदी लोग दृष्टिहीन हैं।

डायबिटिक रेटिनोपैथी से डायबिटिक मैक्यूलर इडिमा (डीएमई) हो जाता है और यह बहुत आम है। जब क्षतिग्रस्त ब्लड वैसेल्स में सूजन आती है और ये लीक होकर रेटिना के मैक्यूला में पहुंच जाते हैं तो रेटिना की रोशनी प्रभावित होती है। इससे रेटिना के सामान्य रूप से देखने में दिक्कत होने लगती है।

समय पर बीमारी की पहचान व इलाज के लिए रोगी को रेटिनल बीमारी से जुड़े लक्षणों को समय रहते पहचानना जरूरी है। आमतौर पर एएमडी के लक्षणांे को बुजुर्ग अपनी उम्र से जुड़ी समस्या मान लेते हैं। डायबिटीज रोगियों को हर छह महीने में आंख विशेषज्ञ/रेटिनोलोजिस्ट से जांच कराने की सलाह दी जाती है क्योंकि उन्हें डायबिटिक रेटिनोपैथी होने का रिस्क सबसे ज्यादा होता है।

उम्र से जुड़े मेक्यूलर डिजनरेशन से दुनियाभर में करीब 8.7 फीसदी दृष्टिहीनता की चपेट में हैं। दुनियाभर में डायबिटिक रेटिनोपैथी से 4.8 फीसदी लोग अंधकार में जी रहे हैं।

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