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उत्तराखंड में 50% रोजगार की कमी, 15 % बदहाल शिक्षा और 08% लचर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण लोगों ने छोड़े गांव

पिछले 10 वर्षों में 6,338 ग्राम पंचायतों से 3.8 लाख लोगों ने किया पलायन

उत्तराखंड में तेज़ी से खाली होते जा रहे गांवों की स्थिति और लोगों के पलायन को लेकर प्रदेश सरकार ने ( उत्तराखंड के ग्राम पंचायतों में पलायन की स्थिति) रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि राज्य में पिछले 10 वर्षों में 6,338 ग्राम पंचायतों से 3.8 लाख लोगों ने किया पलायन है। इसके साथ ही रिपोर्ट में लोगों के पलायन करने के कारण का भी ज़िक्र किया गया है।

रिपोर्ट पढ़ने से पहले पलायन की एक कहानी …

उत्तराखंड के अल्मोड़ा क्षेत्र के सुपई गाँव में वर्ष 1990 में 20 से ज़्यादा परिवार रहा करते थे। लेकिन आज इस गाँव में मात्र एक परिवार बचा है। सुपई गाँव के ही चंद्रशेखर तिवारी ( 70 वर्ष) अब अपने गाँव में नहीं रहते हैं। उनका परिवार हल्द्वानी पलायन कर गया है। चंद्र शेखर बताते हैं, ” मैं अभी कुछ दिनों पहले अपने गाँव गया था। वहां पर अब केवल पंडित जी का परिवार ही बचा हुआ है, क्योंकि उनका लड़का गाँव के पास के पास के ही एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाता है। गाँव पूरी तरह से सूनसान हो गया है।”

गांवों में हो रहे पलायन पर सरकार ने जारी की रिपोर्ट

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शनिवार को अपने आवास में ग्राम्य विकास और पलायन आयोग की प्रथम रिपोर्ट (उत्तराखंड के ग्राम पंचायतों में पलायन की स्थिति पर अंतरिम रिपोर्ट) का लोकार्पण किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा, ” प्रदेश के गांवों में रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराना, अच्छी शिक्षा और उत्तम स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करना सरकार का मुख्य लक्ष्य है। इनके सबके द्वारा पलायन पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है।”

उत्तराखंड के ग्राम पंचायतों में पलायन की स्थिति पर अंतरिम रिपोर्ट का लोकार्पण करते मुख्यमंत्री।

बड़ी तादात में ग्राम पंचायतों में हुआ पलायन

ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने आयोग की प्रथम रिपोर्ट के विषय में बताया, ” उत्तराखंड के 7,950 ग्राम पंचायतों का सर्वेक्षण जनवरी एवं फरवरी, 2018 में ग्राम्य विकास विभाग के माध्यम से कराया गया।

सर्वेक्षण के अनुसार ग्राम पंचायत स्तर पर मुख्य व्यवसाय कृषि 43 प्रतिशत एवं मजदूरी 33 प्रतिशत है। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों में राज्य की 6,338 ग्राम पंचायतों से 3,83,726 व्यक्ति अस्थाई रूप से पलायन कर चुके हैं। यह लोग घर में आते-जाते रहते हैं, लेकिन अस्थायी रूप से रोजगार के लिए बाहर रहते हैं। इसी अवधि में 3,946 ग्राम पंचायतों से 1,18,981 लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार ग्राम पंचायतों से 50 प्रतिशत लोगों ने आजीविका और रोजगार की समस्या के कारण, 15 प्रतिशत ने शिक्षा की सुविधा और आठ प्रतिशत ने चिकित्सा सुविधा के अभाव के कारण पलायन किया है।

पलायन करने वाले लोगों में 26 से 35 वर्ष की आयु वाले सबसे अधिक।

ग्राम पंचायतों से पलायन करने वालों की आयु 26 से 35 वर्ष वर्ग में 42 प्रतिशत, 35 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में 29 प्रतिशत और 25 वर्ष से कम आयु वर्ग में 28 प्रतिशत है। ग्राम पंचायतों से 70 प्रतिशत लोग प्रवासित होकर राज्य के अन्य स्थानों पर गए और 29 प्रतिशत राज्य से बाहर व लगभग एक प्रतिशत देश से बाहर गए। उन्होंने कहा कि राज्य में लगभग 734 राजस्व ग्राम/तोक/मजरा 2011 की जनगणना के बाद गैर आबाद हो गए हैं। इनमें से 14 अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से हवाई दूरी के पांच किमी. के भीतर हैं।

राज्य में 850 ऐसे गांव हैं, जहां पिछले 10 वर्षों में अन्य गांव/शहर/कस्बों से पलायन कर उस गांव में आकर लोग बसे हैं। राज्य में 565 ऐसे राजस्व ग्राम/तोक/मजरा हैं, जिनकी आबादी 2011 के बाद 50 प्रतिशत घटी है। इनमें से छह गांव अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से हवाई दूरी के पांच किमी. के भीतर है। रिपोर्ट के आधार पर नौ पर्वतीय जिलों के 35 विकासखंड चिंहित किए गए हैं, जिनमें आयोग की टीम जाकर लघु / मध्यम और दीर्घ अवधि की कार्ययोजना बनाएगी, जिससे यहां विकास तेज़ी से हो सके।

‘पटरी पर लाई जाएगी शिक्षा व्यवस्था’

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने प्रदेश सरकार की ओर से पलायन को कम करने के लिए किए जा रहे काम के बारे में कहा कि सरकार ने शिक्षा का स्तर उठाने के लिए कई कदम उठाए हैं। विद्यालयों में एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू करना इनमें से एक प्रमुख कदम है। इससे न  शिक्षा का स्तर ऊंचा उठेगा बल्कि विद्यार्थियों को एक समान शैक्षिक पाठ्यक्रम का अवसर भी मिलेगा।

‘ पलायन रोकने के लिए प्रदेश सरकार चला रही स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार से संबंधित कई योजनाएं।’ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत।

‘चिकित्सा क्षेत्र में उठाएंगे बड़े कदम’

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने पिछले एक वर्ष में प्रदेश में चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार करने के लिए बहुत से कदम उठाए हैं। एक वर्ष पहले जितने डॉक्टर प्रदेश में थे, उससे कहीं अधिक चिकित्सक इस वर्ष में नियुक्त किए गए हैं। डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए वाॅक-इन-इंटरव्यू लागू करने पर भी विचार किया जा रहा है, और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि इस दिशा में पॉलिसी के स्तर पर कोई परिवर्तन होना है, तो उसका प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाए।

उत्तराखंड में सरकार टेली रेडियोलॉजी और टेलीमेडिसिन की मदद से दुर्गम स्थानों को उन्नत चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है। अभी प्रदेश के 37 अस्पताल टेली रेडियोलॉजी/टेलीमेडिसिन से जुड़ चुके हैं। दूरस्थ क्षेत्र के अस्पतालों को दून अस्पताल, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज, अपोलो हॉस्पिटल और यहां तक की विदेशों के डाक्टरों से भी सीधे जोड़ा गया है। पिथौरागढ़ में विश्वस्तरीय आईसीयू स्थापित कर दिया गया है। उत्तरकाशी और चमोली में शीघ्र ही आईसीयू स्थापित किया जाएगा। एक आईसीयू की स्थापना में लगभग ढाई करोड़ रुपए का खर्चा आ रहा है। लेकिन सरकार हर जनपद अस्पताल में आईसीयू की स्थापना करने की योजना बना रही है।

‘रोजगार के खुलेंगे नए अवसर’

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन के कई कार्यक्रम प्रारंभ किए गए हैं। पं.दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना के एक वर्ष से भी कम समय के भीतर सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं। आजीविका मिशन, मुद्रा योजना, स्टार्टअप प्रोग्राम जैसे कार्यक्रमों का लाभ जल्द ही दिखना शुरू होगा।

मुख्यमंत्री ने सरकार के द्वारा हाल में ही लागू की गई पिरूल नीति का भी उल्लेख किया और उन्होंने कहा कि इस नीति से प्रत्यक्ष व  अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 60 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। महिलाओं को स्वरोजगार देने के लिए ग्राम एलईडी लाइटों की योजना लागू की गई है और शीघ्र ही ग्रोथ सेंटर योजना के अंतर्गत रेडीमेंट गारमेंट प्रशिक्षण का भी कार्य शुरू किया जाएगा।

 

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