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साहित्य की सत्ता राजनीति की सत्ता से कमतर नहीं : रामवचन राय

पटना, 22 अप्रैल (आईएएनएस)| समाजवादी धारा से जुड़े साहित्यकार रामवचन राय का कहना है कि सत्ता का चरित्र हमेशा साहित्यकारों के दमन का नहीं रहा है तथा साहित्य की सत्ता राजनीति की सत्ता से कमतर नहीं होती।

उन्होंने कहा कि साहित्य से परिवर्तन अत्यंत धीमी गति से होता है, जबकि राजनीतिक सत्ता त्वरित परिवर्तन का कारक है। पटना के तारामंडल में दैनिक जागरण द्वारा आयोजित दो दिवकीय ‘बिहार संवादी’ के पहले दिन शनिवार को ‘साहित्य का सत्ता विमर्श’ पर चर्चा सत्र में राय ने कहा कि समाज तथा साहित्य के विकास के लिए संस्कृति की उदारवादी धारा के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। साहित्य की परिभाषा के सवाल पर उन्होंने कहा कि साहित्य अपने मूल स्वभाव में सामूहिकता का ही समुच्चय है।

इस सत्र में आमंत्रित अतिथि प्रो. रामवचन राय तथा रेवती रमन से अनीश अंकुर ने बातचीत की।

रेवती रमन ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्यकार राजनीति के आगे मशाल जैसी जलने वाली सच्चाई है तथा साहित्य और राजनीति का संबंध द्वंद्वात्मक है और साहित्य की अपनी एक सत्ता है। साहित्य की सत्ता राजनीति को मशाल दिखाने का कार्य करती है।

बिहार संवादी के दूसरे सत्र ‘नया समाज और राष्ट्रवाद’ में उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने कहा कि भारतीय संस्कृति का विकास कई घटकों से हुआ है तथा राष्ट्रवाद का उल्लेख दुनिया की सबसे प्राचीन रचना ऋग्वेद में भी आता है। उन्होंने कहा कि भारत का राष्ट्रवाद कभी आक्रामक हो ही नहीं सकता।

दीक्षित ने कहा, दुनिया में महात्मा गांधी से बड़ा आदमी नहीं हुआ तथा विश्व को परिवार मानने की भावना हमारे देश से ही आई, जिसे महात्मा गांधी ने मूर्त रूप देने की कोशिश की। संविधान बनने के पहले से ही वंदे मातरम देश के आंदोलनों का बीजमंत्र रहा है तथा यह हमारे राष्ट्रवाद का प्रतीक है।

डॉ एस.एन. चौधरी ने कहा कि राष्ट्रवाद को औद्योगिक परिवर्तन से जोड़कर देखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद के विकास में गांधीजी का योगदान अत्यंत अहम है तथा उनकी यह विशेषता थी कि उन्होंने कभी अपने आंदोलन को हिंसात्मक नहीं होने दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि राष्ट्रवाद का प्रतीकों से कोई संबंध नहीं है।

बिहार संवादी के तीसरे सत्र में ‘बिहार- मीडिया की चुनौतियां’ चर्चा सत्र में राणा यशवंत, सदगुरु शरण, विकास कुमार झा तथा मारिया शकील ने अपने विचार रखे।

मारिया शकील ने कहा कि मीडिया की सबसे बड़ी चुनौती है कि आज उसकी विश्वसनीयता खतरे में हैं। उन्होंने ध्यान आकृष्ट किया कि पत्रकारिता के लोगों को ऑफिस छोड़कर ग्राउंड में जाकर काम करना होगा तथा मीडिया में ग्राउंड रिपोर्ट की सच्चाई दिखाना सबसे जरूरी है। उन्होंने कहा कि कथ्य पवित्र होता है विचार नहीं, और इसलिए हमें पत्रकारिता में कथ्य पर विचारों का रंग नहीं डालना चाहिए।

राणा यशवंत ने कहा कि बिहार में संवाद अपने आप में एक चुनौती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पत्रकारिता का स्थान अलग-अलग है।

सदगुरु शरण ने कहा कि बिहार का मनोबल बढ़ाना बिहार के मीडिया की सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि बिहार की पत्रकारिता को सबसे पहले अपने नायक चुनने होंगे। साथ ही बिहार की मीडिया को अपनी प्राथमिकता निर्धारित कर बिहार की तरक्की का माध्यम बनना होगा।

कार्यक्रम का संचालन विकास कुमार झा ने किया। उन्होंने कहा कि पत्रकारों में सही रिपोर्टिग की भूख होना अत्यंत आवश्यक है।

संवादी बिहार के लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों का मंच है, जहां साहित्यक, सामाजिक सांस्कृतिक मसलों पर संवाद किया जा रहा है। संवादी बिहार में बिहार के लेखकों की रचनात्मकता बेहतर तरीके से दुनिया के सामने लाने का उपक्रम भी होगा और इस उत्सव में स्थानीय प्रतिभा को तरजीह देते हुए बिहार की कथा भूमि पर चर्चा होगी।

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