बाघ, तेंदुए क्यों कर रहे मानव पर हमला?
नई दिल्ली, 19 अप्रैल (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के दुधवा-पीलीभीत क्षेत्र में वर्ष 2000 से 2013 के बीच बाघों और तेंदुओं के हमले में कम से कम 156 लोगों की मौत या वे घायल हुए।
एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसा लोगों के जंगलों में प्रवेश करने और इन जानवरों के लिए कोई और रास्ता नहीं छोड़ने की वजह से हुआ।
5000 वर्ग किलोमीटर में फैले दुधवा-पीलीभीत क्षेत्र में चार महत्वपूर्ण रिजर्व हैं, जिनमें दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, कतरनीघाट और किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और पीलीभीत टाइगर रिजर्व प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों में मनुष्य और बाघों के बीच संघर्ष चरम पर है।
ये सभी जंगल गांव से घिरे हुए हैं, लेकिन पीलीभीत में बाघों के हमले में सबसे ज्यादा लोग मरे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, पीलीभीत में इस वर्ष मार्च में कम से कम छह लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और 2017 में पांच विभिन्न बाघों द्वारा 21 लोग मारे गए थे। एक बाघ को नरभक्षी घोषित किया गया था और फरवरी 2017 में लखनऊ चिड़ियाघर भेजा गया था।
‘लिविंग विद द वाइल्ड : मिटिगेशन कंफ्लिक्ट बिटवीन ह्यूमंस एंड बिग कैट स्पीशीज इन उत्तर प्रदेश’ नामक रिपोर्ट में लोगों की मौत की वैकल्पिक वजह बताई गई है और तेंदुए की खराब रोशनी वाली ‘कहानी’ को खारिज कर दिया।
उत्तर प्रदेश वन विभाग और वाइल्ड लाइफ ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है, आश्चर्यजनक तरीके से, बाघ वनक्षेत्र या अपने जंगल के किनारों, खासकर गन्ने के खेत में जहां बाघ प्राय: रहने लगे हैं, में लोगों पर हमला करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर हमले ‘दिन में’ होते हैं, जिसमें बताया गया है सात से 70 वर्ष की आयु के लोगों पर हुए हमले दुर्घटनावश आमने-सामने आ जाने की वजह से होते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले में, वर्ष 2006 और 2012 के बीच 90.1 प्रतिशत मामले तेंदुए और बाघों के हैं। अन्य 9.9 प्रतिशत संघर्ष के मामले भालू, हाथी और मगरमच्छ द्वारा हुए हैं।
व्यवहार शास्त्र और पशुओं के व्यवहार के बारे में अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट में बताया गया है, बाघ भी चयनित आयु वर्गो के लोगों पर हमला नहीं करते हैं। हालांकि 50 प्रतिशत तेंदुए बच्चों और छोटे पशुओं जैसे भेड़, बकरी पर हमला करते हैं, जबकि बाघ बड़े जंतुओं जैसे भैंसों, घोड़ों और गायों पर हमला करते हैं।
डब्ल्यूटीआई के मानव-वन्यजीव संघर्ष में कमी लाने के विभाग के प्रमुख और रिपोर्ट के मुख्य निर्माता डॉ. मयूख चटर्जी ने कहा, बाघों के मामलों में, अधिकतर लोग लकड़ी इकट्ठा करने जंगल जाते हैं और तभी संघर्ष होता है। ऐसे भी कई मामले हैं जहां बाघों ने मानवों के आवास में प्रवेश कर मानवों की हत्या की है, लेकिन यह काफी कम है।
रिपोर्ट के अनुसार, बाघों द्वारा 87 प्रतिशत हमले जंगलों, इसके आस-पास और गन्ने के खेतों में किए गए हैं, जबकि 13 प्रतिशत हमले गांवों और घरों के पास किए गए।
चटर्जी के अनुसार, बाघों की तुलना में तेंदुओं ने जंगलों और इसके आस-पास केवल 7.94 प्रतिशत हमले किए।
रिपोर्ट के अनुसार, तेंदुओं ने इस दौरान 92.1 प्रतिशत हमले गांव या इसके आस-पास किए। इनमें से तेंदुओं ने 47.6 प्रतिशत हमले लोगों के घरों या घरों के आस-पास किए। तेंदुओं ने वहीं 15.87 प्रतिशत हमले गांव के अंदर किए, वहीं कृषि भूमि क्षेत्र में 28 प्रतिशत हमले किए।
रिपोर्ट के अनुसार, 2000 से 2013 के बीच बाघों के हमले में कम से कम 49 लोग मारे गए और 24 घायल हुए। वहीं तेंदुओं के हमले में 14 लोग मारे गए और 49 घायल हुए।
उत्तर प्रदेश को छोड़कर पूरे भारत में 2015-16 के दौरान 32 लोग मारे गए और 2016-17 में 13 लोगों की मौत हुई।
रिपोर्ट के अनुसार, पीलीभीत में जहां राष्ट्रीय औसत से ज्यादा बाघों और मानवों के संघर्ष के मामले सामने आए हैं, बड़े जंगली किनारों को कृषि के लिए प्रयोग किया जा रहा है। अवैध कब्जा इस क्षेत्र का बड़ा मुद्दा है।
आधिकारिक रिकार्ड के अनुसार, जनवरी 2017 तक जंगलों के 14.84 लाख हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जा किया गया, जिसमें से उत्तरप्रदेश में 22,869 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, ठंड के मौसम में अक्टूबर से फरवरी माह के दौरान बाघों ने मानवों पर ज्यादा हमले किए, क्योंकि इस दौरान लोग लकड़ी इकट्ठा करने जंगल क्षेत्र में जाते हैं।