पानी को समवर्ती सूची में रखे जाने पर विचार
एजेंसी/ नई दिल्ली: देशभर में जारी गर्मी के प्रकोप के चलते जलआपूर्ति की समस्या भी गहरा गई है। हालात ये हैं कि कई राज्यों में सूखे के हालात हैं। तो दूसरी ओर भू जल स्तर में भी गिरावट आ गई है। ऐसे में लोगों को कई तरह की सुविधाऐं नहीं मिल रही है। अब यह मांग की जा रही ह कि क्या जल को संविधान की समवर्ती सूची में रखा जाए। दरअसल जल संपदा पर प्रदूषण की मार भी पड़ रही है। एसे में जल को सहेजने की जरूरत महसूस की जा रही है। यह बात सामने आई कि जब तक जल का उपयोग गांवों में होता था स्थिति ठीक रही लेकिन जैसे ही शहरीकरण बढ़ा जल का अपव्यय और प्रदूषण बढ़ गया।
इस मामले में इनोवेटिव इंडिया फउंडेशन के संयोजक सुधीर जैन ने कहा कि जल को आखिर कौन विषय के तौर पर रखे कुछ भी क्लियर नहीं है। क्या पानी सतह का है, फिर पाताल का पानी किसका है। क्या भूतल का पानी है तो वह किसका है। और क्या सरकार पानी की अधिकारी है या फिर केवल न्यासी है। यह विचार करने जरूरत हैं। इस मामले में पर्यावरणविद उमा राउत ने जल को समवर्ती सूची में लेने की मांग की।
उनका कहना था कि यदि ऐसा होता है तो राष्ट्रीय संसाधन के तौर पर इसका उपयोग ठीक तरह से होगा और इसका संरक्षण हो सकेगा। बुंदेलखंड विकास मोर्चा के आशीष सागर ने भी कहा कि आखिर सूखे के हालात में राज्यों को क्या परेशानी है। क्या केंद्र और राज्य मिलकर ठीक तरह से कार्य कर सकते हैं या फिर पानी पर एकाधिकार हो जाता है तो तानाशाही बढेगी। इन सभी सवालों पर चिंतन किया जा रहा है।