चीन के निवेश से पाकिस्तान के कर्जजाल में फंसने का जोखिम : हुसैन हक्कानी
नई दिल्ली, 17 अप्रैल (आईएएनएस)| अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी का कहना है कि चीन की अरबों डॉलर के बुनियादी ढांचा निवेश संबंधी परियोजना से जुड़कर पाकिस्तान के उनके बिछाए कर्ज के जाल में फंसने का जोखिम है।
उन्होंने आईएएनएस के साथ साक्षात्कार में कहा कि पाकिस्तान को अपना ध्यान भू-राजनीति के बजाए भू-आर्थिक क्षेत्र की ओर केंद्रित करने की जरूरत है। इसके साथ ही पाकिस्तान को अपने लोगों की भलाई के लिए भारत और अफगानिस्तान सहित पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को भी सुधारने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि इस संघर्ष की वजह उनकी अदूरदर्शी विदेश नीति भी है और जब तक पाकिस्तान अपने दृष्टिकोण में बदलाव नहीं करेगा, तब तक बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके अलग-थलग पड़ने का जोखिम है।
हक्कानी ने कहा, क्या इससे (सीपीईसी) से वास्तव में पाकिस्तान को कोई लाभ हुआ है? आर्थिक रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) से कुछ अवसर मिले हैं, लेकिन एक बार फिर ये सिर्फ बुनियादी ढांचागत परियोजनाएं हैं। जहाजों के लिए बंदरगाह लाभदायक है। ट्रकों के लिए सड़क उपयोगी है।
पाकिस्तान की राजनीति के सबसे तेजतर्रार राजनयिकों में से एक हक्कानी वर्ष 2008 से 2011 तक अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे।
उन्होंने कहा कि इन परियोजनाओं पर आर्थिक गतिविधियां सिर्फ तभी संभव होगी, जब सुरक्षा स्थिति शांतिपूर्ण होगी और जब ये परियोजनाएं आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होगी, वरन पाकिस्तान बड़े कर्ज के जाल में फंस सकता है।
हक्कानी (61) चार किताबें लिख चुके हैं, जिसमें उनकी हालिया किताब ‘रिइमेजनिंग पाकिस्तान’ है, जो उनका विवादास्पद संस्मरण है। यह उन्होंने अमेरिका में राजदूत के दौरान लिखा था।
इस संस्मरण में शक्तिशाली पाकिस्तानी सेना पर नियंत्रण करने के लिए अमेरिका की मदद मांगी गई, पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल हुई और हक्कानी को पद छोड़ना पड़ा। वह 2011 में पाकिस्तान लौट आए, लेकिन उन्होंने एक साल के बाद ही देश छोड़ दिया और फिर वह कभी भी वहां नहीं गए।
उनकी हालिया किताब में पाकिस्तान की स्पष्ट अवधारणा का आह्वान किया गया है। इसमें पाकिस्तान की विचारधारा पर दोबारा विचार करने और भारत से दुश्मनी की तुलना में एक नए राष्ट्रीय उद्देश्य की पहचान करने पर जोर दिया गया है।
हक्कानी ने आईएएनएस को बताया, पाकिस्तान ने भारत के साथ समानता चाहते हुए अपनी विदेश नीति के विकल्पों को सीमित किया है। यहां तक कि अमेरिका, पाकिस्तान के बीच विचार-विमर्श भी हमेशा आर्थिक और सैन्य सहायता को लेकर ही हुए हैं।
हक्कानी ने सुझाया कि पाकिस्तान को अपने राजनैतिक और सैन्य आकाओं के सुझावों के बजाय अर्थव्यवस्था पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, पाकिस्तान को सिर्फ भू-राजनीतिक हितों के संदर्भ में सोचना बंद करने की जरूरत है। उसे भू-आर्थिक संदर्भ में सोचना शुरू करना चाहिए, ताकि बाकी की दुनिया उसे समस्या के तौर पर नहीं देखे। फिलहाल, पाकिस्तानी नागरिकों के नजरिए से पाकिस्तान और बाकी की दुनिया की नजर में पाकिस्तान दो अलग-अलग चीजें हैं।
उन्होंने कहा कि कश्मीर एक विवाद है, लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों पक्षों के लोगों के लिए मिलर काम करने की जरूरत है, ताकि उनका जीवन ज्यादा सामान्य रहा।
हक्कानी ने कहा, पाकिस्तान की भूमिका से कश्मीर के लोगों को लाभ नहीं हुआ। मुझे लगता है कि पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यह कहना शुरू कर देना जरूरी होगा कि हम अन्य विवादों को सुलझाने से पहले भारत के साथ बेहतर संबंध चाहते हैं और कश्मीर के लोगों को एक बेहतर जीवन का अवसर दे सकते हैं।
उन्होंने कहा कि विदेश नीति के कारक के रूप में धर्म का कुछ साल पहले तक पाकिस्तान के लिए कुछ लाभ था, लेकिन अब सऊदी अरब और ईरान सहित मुस्लिम देश अपने हितों की तरफ देखते हैं।