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बच्चों को अच्छी शिक्षा देना ही सबसे बड़ी पूजा : जगदीश गांधी

जहां आज पूरे देश में निजी स्कूलों के प्रबंधकों पर तरह-तरह के आरोप लग रहे हैं वहीं इसके विपरीत वर्ष 2002 के यूनेस्को प्राइज फॉर पीस एजुकेशन पुरस्कार से सम्मानित लखनऊ के सिटी मोन्टेसरी स्कूल के संस्थापक-प्रबंधक एवं भूतपूर्व विधायक डॉ. जगदीश गांधी और उनकी धर्मपत्नी डॉ. भारती गांधी की लगभग 59 वर्ष स्कूल संचालन के बाद भी मात्र 15,45,340.53 (पन्द्रह लाख पैंतालीस हजार तीन सौ चालीस रूपये एवं तिरपन पैसे) की सम्पत्ति देश के अन्य प्रतिष्ठित स्कूल प्रबंधकों के लिए एक उदाहरण है। गौरतलब है कि सिटी मोन्टेसरी स्कूल गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में एक ही शहर में सबसे अधिक बच्चों वाले स्कूल के रूप में दर्ज है।

5 अप्रैल, 2018 को घोषित सम्पत्ति के अनुसार इन दोनों के पास कुल मिलाकर रू0 15,45,340.53 (पन्द्रह लाख पैंतालीस हजार तीन सौ चालीस रूपये एवं तिरपन पैसे) की सम्पत्ति है। डॉ. जगदीश गाँधी व डॉ. (श्रीमती) भारती गांधी ने घोषित किया है कि उनके पास अचल सम्पत्ति के रूप में कुछ भी नहीं है। वे विगत 59 वर्षों से किराये के मकान में रहते हैं, उनके पास अपना कोई मकान नहीं है और न ही किसी प्रकार की जमीन व प्रॉपर्टी आदि है।

किसी भी बैंक में उनका कोई लॉकर आदि नहीं है और न ही किसी प्रकार की विदेशी मुद्रा, सोना, चांदी अथवा किसी प्रकार के आभूषण हैं। इसके अलावा किसी भी बैंक में उनके नाम पर कोई चालू खाता (करन्ट एकाउन्ट) नहीं है और न ही कोई फिक्स डिपाजिट है। इन दोनों प्राख्यात शिक्षाविदों ने घोषणा की है कि उपरोक्त वर्णित सम्पत्तियों के अलावा अन्य किसी भी प्रकार की कोई भी अन्य व्यक्तिगत सम्पत्ति उनके पास नहीं है। यह जानकारी डा गांधी की वेबसाइट  www.jagdishgandhiforworldhappiness.org  पर भी उपलब्ध है।

डॉ. गांधी ने उत्तर प्रदेश से 5 वर्षों तक विधायक रहकर भी जनसेवा व समाज सेवा की है। इस अवधि में या इसके पहले या बाद में भी इन्होंने कभी भी प्रदेश सरकार या भारत सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली है। गांधी दम्पत्ति का जीवन एक खुली किताब की तरह है। इन्होंने सदैव ही अपने जीवन में सादगी को ज्यादा महत्व दिया है। इन दोनों का मानना है कि बच्चों की सर्वोत्तम शिक्षा ही परमात्मा की सबसे बड़ी पूजा है।

इस प्रकार बच्चों की शिक्षा के माध्यम से धन कमाना इनका उद्देश्य कभी भी नहीं रहा है, अपितु बच्चों की शिक्षा के माध्यम से समाज की सेवा करना ही इनका उद्देश्य है। गांधी दम्पत्ति द्वारा वर्ष 1959 में जिस विद्यालय को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने के लिए ‘जय जगत’ के ध्येय वाक्य को अपनाते हुए मात्र 5 छात्रों से शुरू किया गया था उस विद्यालय में वर्तमान में 55,000 से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

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