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कस्तूरबा गांधी ने यरवदा जेल लिखना सीखा

भोपाल, 11 अप्रैल (आईएएनएस)। महात्मा गांधी पत्नी कस्तूरबा गांधी को लिखना सिखाना चाहते थे, मगर वह सफल नहीं हो सके, कस्तूरबा गांधी ने लिखना पुणे की यरवदा जेल में सीखा।

उनकी गुरु थी, 14 साल की दशरी बाई। कस्तूरबा को लिखने में महत्वपूर्ण मदद देने वाली इस बालिका का धन्यवाद देते हुए गांधी ने कहा था कि जो मैं नहीं कर सका, वह एक बच्ची ने कर दिखाया।

बात 1932 की है, स्वदेशी आंदोलन करते हुए गुजरात के दक्षिणी हिस्से में बड़ी संख्या में लोगों की गिरफ्तारी हुई। उसमें 14 वर्षीय दशरी बाई भी थी। उन्हें पुणे की यरवदा जेल भेजा गया। इसी जेल में कस्तूरबा गांधी भी कैद थी। जेल में जब दशरी से काम कराया जाता तो उन्हें उस पर दया आती थी।

आजादी की लड़ाई में अपने परिवार के योगदान को याद करते हुए दशरी बाई के बेटे अशोक चौधरी ने आईएएनएस से कहा, उनकी तीन पीढ़ियों ने आजादी की लड़ाई लड़ी है, मां जब महज 14 साल की थी, तभी गिरफ्तार हुई थीं। उन्हें यरवदा जेल भेजा गया। जहां वह कस्तूरबा गांधी से मिली। वह बहुत छोटी थी, जब भी जेल में उनसे काम कराया जाता तो कस्तूरबा व्यथित हुआ करती थीं।

चौधरी बताते हैं कि एक दिन कस्तूरबा ने दशरी से पूछा कि तुम लिख पढ़ लेती हो, तो दशरी ने उन्हें बताया ‘हां’। इस पर कस्तूरबा ने दशरी से कहा कि मुझे लिखना सिखाओ। यह सुनते ही दशरी अचरज में पड़ गई कि इन्हें मैं कैसे सिखाउं।’

चौधरी ने कहा कि उनकी मां ने जो किस्सा उन्हें सुनाया उसके मुताबिक, दशरी ने कस्तूरबा को लिखना सिखाया। कस्तूरबा एक पत्र गांधी जी को लिखना चाहती थी, उन्होंने दशरी से कहा कि तुम लिख दो, इस पर दशरी ने इंकार कर दिया और कहा कि लिखें आप मैं उसमें सुधार जरूर कर दूंगी। कस्तूरबा ने पत्र लिखा, उसमें सुधार दशरी ने किया और गांधी जी को भेज दिया।

चौधरी के मुताबिक, गांधी जी के पास जब पत्र पहुंचा और उन्होंने जवाब दिया तो उसमें लिखा कि इस पत्र में लिखावट बदली लग रही है, किसने लिखा है, कस्तूरबा ने अपना बताया तो गांधी जी का सवाल था कि लेखनी बदली लग रही है, तो कस्तूरबा ने दशरी से लिखना सीखने की बात कही। इस पर गांधी जी ने कस्तूरबा को लिखा जो काम मैं नहीं कर पाया, उसे बच्ची ने कर दिखाया।

चौधरी ने आगे बताया कि, उनकी मां के नाना शिक्षक थे और वे राजशाही, सूदखोरों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। उन्होंने अपने गांव बेरछी में गांधी जी को बुलाया, उसके बाद उनका परिवार पूरी तरह आजादी की लड़ाई में लग गया। मां तो बचपन से ही आंदोलन का हिस्सा बन गई।

चौधरी कहते हैं कि, अफसोस इस बात का है कि गांधी ने जिस भारत की कल्पना की थी, वह आज तक नहीं बन पाया है। गांधी चाहते थे कि देश के कमजोर से कमजोर आदमी को लगे कि सत्ता उसकी है, मगर ऐसा नहीं हो पाया। वास्तव में जिस वर्ग का शासन होना चाहिए था, उस पर कोई और शासन कर रहा है।

देश में बढ़ रहे जातिवाद, सांप्रदायिक हिंसा से चौधरी व्यथित हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक दल आज अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। गांधी कभी भी जातिवाद, संप्रदाय के पक्षधर नहीं थे। उन्हें तो इसी के चलते शहीद होना पड़ा। वे कभी नहीं चाहते थे कि देश का बंटवारा हो और पाकिस्तान बने। नेताओं की संपत्ति बढ़ रही है, संवेदनशीलता कम हो रही है और प्रबंधन का जोर है। यह स्थितियां देश के लिए किसी भी सूरत में अच्छी नहीं हैं।

पूरा देश आज 11 अप्रैल को कस्तूरबा गांधी का 149वां जन्मदिन मना रहा है। जगह-जगह कार्यक्रम हो रहे हैं, मगर यह कम लोग ही जानते हैं कि, कस्तूरबा गांधी की शिक्षक 14 वर्षीय दशरी थी, जो आजादी के आंदोलन का हिस्सा बनी और सूरत से पुणे की यरवदा जेल पहुंची। जहां उन्होंने चार माह में कस्तूरबा को लिखना सिखा दिया।

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